
यूपी चुनाव के पहले चरण की वोटिंग के लिए अधिसूचना जारी होने में अब महज 8 दिन बाकी हैं. बहुजन समाज पार्टी ने दूसरे दलों को पीछे छोड़ते हुए तकरीबन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती जब 2007 के चुनावों में ऐतिहासिक जनादेश लेकर आई थीं तो उसके पीछे उनकी सोशल इंजीनियरिंग को बड़ा कारण माना गया था. खास बात ये है कि मायावती ने इस बार भी अपनी इस 'इंजीनियरिंग' पर पूरा फोकस किया है. यही वजह है कि दलितों को केंद्र में रखकर राजनीति करने वाली इस पार्टी ने सबसे ज्यादा टिकट सवर्ण उम्मीदवारों की दिए हैं.
दलित
यूपी में दलितों की आबादी 21-22 फीसदी है. इनमें जाटव सर्वाधिक 14% हैं. इनके वोटों पर मायावती की अच्छी पकड़ मानी जाती है. बाकी 12 से 14 फीसदी दलित जातियों में खटिक, पासवान, कोरी, खैरवार, धोबी, वाल्मीकि आदि शामिल हैं. मायावती ने अपने कुल 403 में से 87 टिकट दलित उम्मीदवारों को दिए हैं. यानी मायावती ने भी 21 फीसदी से ज्यादा अपने टिकट उस समुदाय को दिए हैं जिसकी यूपी की आबादी में तकरीबन इतना ही हिस्सा है.
मुस्लिम
2011 की जनगणना के मुताबिक यूपी में हिंदुओं की जनसंख्या 79.73 फीसदी (करीब 16 करोड़) है जबकि मुस्लिम यहां 19.26 फीसदी (3.84 करोड़) हैं. मायावती ने इस बार पहले से ज्यादा 97 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जो कि उसके कुल उम्मीदवारों का तकरीबन 25 फीसदी बैठता है.
सवर्ण
यूपी में अगड़ी जातियों की आबादी 18-20 फीसदी है. इसमें 8-9 फीसदी ब्रह्मण, 4-9 फीसदी राजपूत, 3-4 फीसदी वैश्य और बाकी त्यागी, भूमिहार और अन्य हैं. मायावती ने 113 टिकट सवर्णों को दिए हैं जो कि उनके कुल उम्मीदवारों का 28 फीसदी है। साफ है कि मायावती इन चुनावों में अपने कोर वोटर के प्रति आश्वस्त होकर दूसरों के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी में है.
ओबीसी
यूपी में पिछड़ी जातियों की आबादी 42-45% है. इनमें यादव सबसे अधिक 10 फीसदी, लोधी 3-4%, कुर्मी 4-5%, मौर्य 4-5% व अन्य 21% हैं. मायावती ने इस बार 106 उम्मीदवार इसी श्रेणी से उतारे हैं. यानी उनके तकरीबन 26 फीसदी उम्मीदवार अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं. अगर आबादी से परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो मायावती यहां थोड़ा पिछड़ती नजर आ रही हैं. इसकी एक वजह ये हो सकती है कि राज्य की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी इस वर्ग के वोटरों का सबसे बड़ा हिस्सा बटोरती रही है और माया ने फेल हो जाने के डर से यहां अपना दांव नहीं खेला हो.