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कन्वर्जन शुल्क ना जमा करने पर रोहिणी में 325 दुकानें सील

दुकानदारों का कहना है कि दस साल पहले भी हमारी दुकानें सील की गईं थी. हाईकोर्ट के आदेश के बाद दुकानें फिर से खुलवाई गईं थी. कुछ दुकानदारों का यह भी कहना था कि ये एरिया ग्रीन बेल्ट में है तो यहां बुल्डोजर ही चलवा दें तो बेहतर होगा.

कन्वर्जन शुल्क ना जमा करने पर रोहिणी  में 325 दुकानें सील कन्वर्जन शुल्क ना जमा करने पर रोहिणी में 325 दुकानें सील
शुभम गुप्ता/रोहित
  • नई दिल्ली,
  • 28 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 7:42 PM IST

MCD ने कुछ दिन पहले ही दिल्ली में कन्वर्जन शुल्क ना देने वाले दुकानदारों की दुकानों को सील करने की मुहिम शुरू की है. 22  दिसम्बर से चल रही ये मुहिम डिफेंस कॉलोनी के मार्केट से शुरू हुई और अब रोहिणी तक जा पहुंची है. MCD ने दिल्ली के रोहिणी के राजपुर में 325 दुकानें सील कीं. टीम के साथ पुलिस फोर्स भी मौजूद थी जो विरोध करने वाले दुकानदारों को रोकती रही.

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दुकानदारों का कहना है कि दस साल पहले भी हमारी दुकानें सील की गईं थी. हाईकोर्ट के आदेश के बाद दुकानें फिर से खुलवाई गईं थी. कुछ दुकानदारों का यह भी कहना था कि ये एरिया ग्रीन बेल्ट में है तो यहां बुल्डोजर ही चलवा दें तो बेहतर होगा. यूं बार-बार हम दुकानदारों को परेशान करने का कोई मतलब नहीं है.

रेहड़ी-पटरी वालों की मौज, सील दुकानों के सामने लगाई दुकान

MCD के सील के बाद इस इलाके में सन्नाटा पसर गया. जो बाजार लोगों से भरा रहता था वहां दुकानों पर ताला लगा हुआ है. लेकिन इसका फायदा रेहड़ी-पटरी वाले छोटे दुकानदार खूब उठा रहे हैं. इन दुकानदारों ने सील की हुई दुकानों के सामने ही अपनी दुकान लगा ली और सामान बेचना शुरू कर दिया. जिससे सील की हुई दुकानों के मालिक और नाराज हुए. उनका कहना था कि MCD को ये लोग नहीं दिखते हैं. ये लोग हमारी दुकान के सामने अपनी दुकान लगाए हुए हैं. क्या इन्हें यहां से नहीं हटाना चाहिए.

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2006 में शुरु हुई थी मुहिम

दरअसल सीलिंग की ये कार्रवाई 2006 में चली सीलिंग और डिमॉलिशन की मुहिम के आगे की कड़ी है. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने रिहायशी इलाकों में चल रही मार्केट्स को सील करने के आदेश दिए थे और इस कार्रवाई की निगरानी के लिए मॉनिटरिंग कमेटी बनाई थी. इस वक्त दिल्ली के करीब 70 फीसदी बाजार सीलिंग की जद में आ गए थे और हड़कंप मच गया था. हजारों दुकानें सील कर दी गईं थी, इसके बाद आनन-फानन में केंद्र सरकार, एमसीडी और डीडीए जैसी एजेंसियां हरकत में आईं.

ऐसी सड़कों को जो रिहायशी इलाकों में गिनी जाती थीं, उनकी जमीन कानूनी तौर पर बदली गई. कुछ को मिक्स लैंड यूज की कैटेगरी में रखा गया और कुछ को कमर्शियल, ताकि सीलिंग से राहत मिल सके. इसके बाद 2007 के मास्टर प्लान में भी बदलाव करके सीलिंग से दिल्ली को राहत दिलाई गई थी. लेकिन इसके साथ ही ये नियम बनाया गया था कि रिहायशी इलाकों से कमर्शियल मार्केट कैटेगरी में तब्दील की गई सड़कों पर मौजूद दुकानदारों को कन्वर्जन चार्ज और पार्किंग चार्ज देने होंगे. करीब दो साल तक चली सीलिंग की कवायद के बाद मामला इन बदलावों की वजह से ठंडा पड़ गया था.

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