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RJ सायमा. अरे वही रेडियो मिर्ची की मशहूर रेडियो जॉकी जो हम सब के लिए रेडियो मिर्ची पर कई शोज लेकर आती हैं. जैसे पुरानी जींस, फिर क्या हुआ, मंटो सीरीज, मेरी डायरी का एक पेज. पुरानी जींस में तो वो हमें पुराने-पुराने मेलॉडी गाने सुनाती हैं. और हमारे साथ खूब सारी बातें भी शेयर करती हैं. उनके साथ एक बड़ी ही मजेदार बात ये है कि वो एक साहित्य-प्रेमी भी हैं. साहित्य आज तक में आ रही हैं 12-13 नवंबर को. तो हमने उनका इंटरव्यू कर लिया:
1. आपका सबसे पसंदीदा राइटर कौन है?
मेरे फेवरेट राइटर हैं सहादत हसन मंटो. रेडियो मिर्ची पर मैंने मंटो की कहानियों की एक सीरीज भी चलाई थी. जो कि रेडियो की फर्स्ट एवर ‘मंटो सीरीज’ थी. जिसे लोगों ने काफी पसंद किया. सहादत हसन मंटो ने सबसे पहले रेडियो पर ही अपनी कहानियां पढ़ के सुनाई थीं. ये उन्होंने पार्टीशन से भी पहले किया था. उस समय सिर्फ ऑल इंडिया रेडियो हुआ करता था. इसी तरह मैंने भी मंटो की कहानियों को रेडियो मिर्ची पर पढ़ कर सुनाई. हर फ्राइडे की रात को हम मंटो की कहानियां लेकर आते थे. मंटो की जो खास बात थी कि वो बेबाक अंदाज में लिखते थे. बहुत से राइटर इतने बेबाक ढंग से नहीं लिख पाते हैं. मंटो मेरे लिए सिर्फ एक लेखक नहीं हैं. मेरे लिए वो एक कायनात हैं.
मंटो की एक कहानी है जो मेरे जेहन से कभी नहीं निकलती है. उस कहानी का नाम है ‘खोल दो’. ‘खोल दो’ पढ़ते ही मुझे निर्भया और हर दिन जितनी निर्भया हिंदुस्तान में और पूरी दुनिया में बनती हैं, मेरी नजर के सामने खड़ी हो जाती हैं. फिर ऐसा लगता है कि वक्त तो गुजरा है पर हालात वही हैं.
2. आपका रेगुलर शो आता है रेडियो मिर्ची पर ‘पुरानी जींस’. जिसमें आप लोगों को पुराने गाने सुनाती हैं. तो कौन-कौन से गीतकार हैं जिनकी रचनाएं आपको अच्छी लगती हैं?
मुझे गीतकारों में शैलेन्द्र बहुत अच्छे लगते हैं. साहिर लुधियानवी बहुत अच्छे लगते हैं. मुझे नीरज के गीत और कवितायें बेहद पसंद हैं. और आज के गीतकारों में मुझे इरशाद कामिल, अमिताभ भट्टाचार्य, जावेद अख्तर, गुलजार बहुत अच्छे लगते हैं. इनके गीतों के लफ्ज बहुत ही खूबसूरत होते हैं.
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3. आप आज के हिंदी के लेखकों में किसे पढ़ती हैं ?
आज के हिंदी राइटर्स की बात की जाए तो गुलजार ने जो कहानियां लिखी हैं वो मुझे बहुत पसंद है. बाकी मुझे लगता है कि जो थोड़े पहले वाले जेनरेशन के हिंदी राइटर्स थे, उनकी राइटिंग ज्यादा अच्छी थी. मुझे गुलजार की किताब “रावी पार” मेरी फेवरिट है. जो कि एक मां और बच्चे की कहानी है. रावी पार किताब में पार्टीशन की त्रासदी है, जिसमे एक मां अपने जुड़वां बच्चों को लेकर ट्रेन के ऊपर बैठी हुई जा रही है. एक बच्चा ठंड की वजह से मर जाता है. जिसे लोग रावी नदी में बहाने के लिए कहते हैं और वो उसे बहा देती है. ठिकाने पर पहुंचने पर पता चलता है कि ज़िंदा बच्चा जो सो रहा था उसे बहा दिया और मरा हुआ उससे चिपका रह गया. बाकी ये अच्छी किताब है, आपको भी पढ़नी चाहिए.
4.अगर साहित्य की बात की जाए, लिखने की बात की जाए, तो आपने क्या सब लिखा है अभी तक?
देखिये, मैं कहानियां तो नहीं लिखती. पर मैं डायरी जरूर लिखती हूं. जिसे मैं रोज अपने शो में सुनाती हूं. मेरे शो में एक सेगमेंट भी आता है “मेरी डायरी का एक पेज” के नाम से. और अभी जो मैंने लेटेस्ट “मेरी डायरी का एक पेज” किया है. उसे आप मेरे फेसबुक पेज पर जाकर देख सकते हैं. जिसकी लाइनें कुछ इस तरह हैं:
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“मेरा आज का पेज. पेज का रंग वाइट, सफेद. क्या हो गया है हमें, क्यों इतने जजमेंटल और आलोचनात्मक हो गए हैं हम, क्यों अगर कोई हम जैसा नहीं तो वो बुरा है. क्यों उसकी सोच अगर हमसे अलग है तो वो कम बुद्धि का है. क्यों अगर वो कुछ अलग कहता है तो गलत कहता है. क्यों वो किसी और को चाहता है तो वो नकली है. क्यों वो अपनी सोच-विचार में किसी और के साथ है तो हमारे खिलाफ है. भूल गए हैं हम शायद कि खुदा ने हर शख्स को हमसे अलग बनाया है. वो हमसे अलग है हर तरह से. कभी-कभी हम उसमें खुद को पा सकते हैं और हम में वो शायद खुद की छवि देख सकता है. मगर इतना ही..बस इतना ही.. कभी वो हमारा आईना जरूर बन सकता है, लेकिन याद रहे आईना सामने वाले का गुलाम नहीं होता. उस आईने के पार इक और जहान है. जहां इक और दुनिया बसती है. शायद उस आईने के पार देखना भूल गए हैं हम.”
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