
भारतीय जनता पार्टी ने इस साल होने वाले गुजरात चुनाव के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो दिन के सूरत दौरे को भी गुजरात चुनाव की तैयारियों की शुरुआत से जोड़ा जा रहा है. पीएम मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के लिए गुजरात अहम है, क्योंकि दिल्ली जाने से पहले दोनों ने लंबे समय तक यहां राजनीति की है. मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने यहां 2002, 2007 और 2012 में चुनाव जीते हैं, लेकिन 2014 में उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद से ये राज्य पार्टी के लिए चुनौती बन गया है.
अमित शाह ने रखा 150 सीटों को लक्ष्य
मोदी के दिल्ली जाने के बाद से राज्य में कई चीजें बीजेपी के पक्ष में नहीं हुई हैं. यहां सबसे बड़ा बखेड़ा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदार समाज के आंदोलन ने किया. ऐसे में एक बार फिर राज्य की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी को पटेल-पाटीदार लोगों की नाराजगी को दूर करना होगा. हाल ही में 4 राज्यों में सरकार बनाने के बाद अमित शाह का अगला लक्ष्य गुजरात में 150 सीटें हासिल करना है, लेकिन पटेल समुदाय की नाराजगी के चलते इतनी सीटें हासिल कर पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा.
BJP का मैन वोट बैंक है पटेल समुदाय
गुजरात की कुल आबादी 6 करोड़ 27 लाख है. इसमें पटेल-पाटीदार लोगों की तादाद 20 प्रतिशत है. पटेल समुदाय की मांग रही है कि उन्हें ओबीसी स्टेटस दिया जाए, ताकि कॉलेजों और नौकरियों में उन्हें रिजर्वेशन मिल सके. राज्य में अभी ओबीसी रिजर्वेशन 27 प्रतिशत है. ओबीसी में 146 कम्युनिटी पहले से लिस्टेड है. पटेल-पाटीदार समुदाय खुद को 146वीं कम्युनिटी के रूप में ओबीसी की लिस्ट में शामिल कराना चाहती है. गुजरात में इस समुदाय के वोट को बीजेपी का प्रमुख वोट बैंक माना जाता है. बीजेपी के 40 विधायक और 6 सांसद इसी कम्युनिटी से हैं. लेकिन पटेल आंदोलन से उपजी नाराजगी को इस बार बीजेपी के लिए घातक माना जा रहा है. ऐसे में बीजेपी का अपने इस वोट बैंक को बचाए रखना बड़ी चुनौती है.
सरकार के खिलाफ पादीदारों का हिंसक आंदोलन
पटेल समुदाय का बीजेपी से नाराज होने का सबसे बड़ा कारण नेतृत्व माना गया. मोदी के बाद उनकी करीबी आनंदी बेन पटेल को राज्य की कमान सौंपी गई. लेकिन पार्टी की आंतरिक कलह और सरकार के विरोध में युवाओं की आवाज उठने लगी. नौकरी की समस्या से युवाओं ने सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. इस दौरान दलितों के खिलाफ अत्याचार का मसला भी बड़ा हो गया. सब बिखरता देख बाद में पार्टी ने आनंदीबेन पटेल को हटाकर विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाया. पाटीदार आंदोलन इतना बढ़ गया था कि उसने हिंसक रूप ले लिया था. स्थिति संभालने के लिए पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा, जिससे राज्य के अलग-अलग स्थानों पर कई लोगों की मौत हो गई. इसके बाद पाटीदारों ने तय किया था कि वे 2017 के चुनाव में बीजोपी को वोट नहीं देंगे.
हार्दिक पटेल बने बीजेपी के लिए चुनौती
गुजरात विधानसभा में कुल 182 सीटें हैं. ऐसे में 150 सीटें हासिल करने के लिए बीजेपी को पटेल-पाटीदार समुदाय के वोट की जरूरत पड़ेगी. इस कड़ी में बीजेपी के लिए सबसे बड़ी मुश्किल पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल हो सकते हैं. हार्दिक बीजेपी के खिलाफ बोलने से बिल्कुल नहीं चूक रहे हैं और वो लगातार विरोधी खेमों से मिल बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ा कर रहे हैं. शिवसेना ने तो हार्दिक पटेल को गुजरात में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है.
पटेल समुदाय के गढ़ से चुनावी बिगूल फूंका
ऐसे में बीजेपी के लिए पटेल समुदाय का वोट खास अहमियत रखता है. इसी कारण प्रधानमंत्री ने सूरत में विशाल रोड शो कर चुनावी बिगूल फूंका. सूरत पटेल समुदाय के गढ़ माना जाता है. यहां पीएम ने 11 किलोमीटर लंबा रोड शो किया और इस दौरान उनका जोरदार स्वागत हुआ. सूरत में पटेल समुदाय की अच्छी खासी आबादी है और 2015 में आरक्षण आंदोलन के दौरान यहां बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी. मोदी ने यहां 400 करोड़ रुपये की लागत वाले किरण मल्टी सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर का उद्घाटन किया. यह अस्पताल पाटीदार समाज के एक ट्रस्ट से जुड़ा हुआ है. साथ ही एक हीरा पालिशिंग इकाई का भी उद्घाटन किया. पीएम ने यहां सरदार पटेल को याद करते हुए कहा कि उन्होंने भारतीय राजनीति की दिशा बदली है.