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एक विधायक ऐसा भी, पढ़िए बदी साहब की अनोखी दास्तान

बदी साहब सुबह उठकर अपने कमरे की खुद साफ़ सफाई करके हमसे मिलने आये, कमरे की झाड़ू लगाने के विजुअल लेने से मना कर दिया, बोले ये तो मेरा व्यक्तिगत काम है, सभी अपने घर में करते हैं, इसको क्या दिखाना.

सादगी की मिसाल हैं निज़ामाबाद के एमएलए सादगी की मिसाल हैं निज़ामाबाद के एमएलए
कुमार विक्रांत
  • आजमगढ़,
  • 28 फरवरी 2017,
  • अपडेटेड 2:01 PM IST

आजमगढ़ शहर की गलियों में वो रहता है, उसका काफी परिवार बड़ा है, सब साथ हैं. इलाके में उसकी साख है, लेकिन उसका रसूख उसके रहन-सहन में नदारद है. हां उसका अंदाज़ बताता है कि वो वाकई आपका एमएलए है, नाम है आलम बदी.

उम्र 82 साल, 20 रूपये मीटर के टांडे के कपड़े का कुर्ता पायजामा, मामूली चप्पल, कान में छोटी सी सुनने की मशीन, हाथ में महज 1200 रूपये का मोबाइल, छरहरा बदन लेकिन चेहरे पर ग़ज़ब का आत्मविश्वास और सुकून. ये हैं 20वीं सदी में आजमगढ़ के निज़ामाबाद से तीन बार के विधायक आलम बदी.

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घर में झाड़ू लगाते मिले
शहर की गलियों में घुसकर जब 'आजतक' की टीम आलम बदी साहब के घर पहुंची, तो अचरज हुआ कि, ये तीन बार के विधायक और फिर से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आलम बदी का घर है. बदी साहब सुबह उठकर अपने कमरे की खुद साफ़ सफाई करके हमसे मिलने आये, कमरे की झाड़ू लगाने के विजुअल लेने से मना कर दिया, बोले ये तो मेरा व्यक्तिगत काम है, सभी अपने घर में करते हैं, इसको क्या दिखाना. चुनावी मौसम में उनके घर पर पार्टी का कोई झंडा या भोंपू नहीं है. हां, भारत का झंडा जरूर लगा है. चहल-पहल भी चुनावी नहीं दिखती, सादगी का पुलिंदा ही नज़र आता है.

आम तौर पर बदी साहब के घर आने वाले को छोटे से कप में बिना दूध की चाय मिलती है. घर में मेहमान के लिए नाश्ता बनाने और परोसने के लिए कोई नौकर भी नहीं है. उनके बेटे और पोते ही इस काम को करते हैं. सर्दी हो या गर्मी घर के टीन शेड के नीचे वो लोगों से रूबरू होते हैं. घर की पुताई हुए भी ज़माना बीत गया होगा.

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यूपी रोडवेज में सफर
बदी साहब के पास ठीक-ठाक गाड़ी तक नहीं है. पहले सेकेंड हैंड एम्बेसडर थी, तो पूरे इलाके में जानी जाती थी, क्योंकि कई बार बीच सड़क पर खड़ी हो जाती थी, कभी तेल ख़त्म, तो कभी बिगड़ भी जाया करती थी. अब बमुश्किल एक सेकेंड हैंड बुलेरो ली है, लेकिन उसका कम ही इस्तेमाल करते हैं. आखिर तेल डालाने का मसला आ जाता है. ऐसे में बदी साहब कभी किसी कार्यकर्ता की गाड़ी में बैठ जाते हैं या फिर सड़क पर जो मिला उससे ही लिफ्ट ले लेते हैं. विधानसभा सत्र के दौरान लखनऊ जाने के लिए वो यूपी रोडवेज की बस में अपने पास का इस्तेमाल कर लेते हैं.

बदी साहब मैकेनिकल इंजीनियर हैं, शुरुआत में गोरखपुर में नौकरी भी की, लेकिन नेहरू, बोस, गांधी से प्रेरणा लेकर समाजसेवा में आ गए. 1996 में पहली बार समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़े और जीत गए. तब से अब तक 3 बार चुनाव जीत चुके हैं, 5वीं बार लड़ रहे हैं. सिर्फ एक बार थोड़े से वोटों से हार गए थे.

दो लाख में लड़ा चुनाव
आलम बदी के चुनाव प्रचार की खास बात ये है कि वो सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक ही प्रचार करते हैं. उनका कहना है कि जब वो पूरे 5 साल 9 से 5 जनता की सेवा करता हूँ, तो चुनाव के दौरान वक्त को क्यों बदला जाए. दिलचस्प है कि, जिस एक बार बदी साहब चुनाव हारे, तो अगली सुबह भी 9 बजे इलाके में लोगों के बीच पहुंच गये. वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि, बदी साहब ने 2012 का चुनाव महज 2 लाख रुपय में ही लड़ा था. इस बार वो कहते हैं कि, अब तक 2 लाख ही चुनाव में खर्च आया है, कुछ दिन और हैं तो शायद कुछ हज़ार और खर्च हो जाएंगे.

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बदी साहब के इस रुख से कई बार उनके घरवाले नाखुश रहते हैं. आपसी बातचीत में उनका दर्द छलक जाता है. बदी साहब के 6 बेटे हैं, जिसमें से 3 छोटे मोटे रोज़गार के लिए बाहर हैं, तो सबसे बड़े बेटे महज 15 हज़ार रुपये महीने की प्राइवेट नौकरी करते हैं. दूसरे बेटे की फर्नीचर की छोटी सी दुकान है, जिससे बस गुजर बसर ही हो पाता है. आजकल चुनाव के मौसम में वो दुकान बंद कर पिता के साथ प्रचार में जुटे हैं. छोटे बेटे पीए के तौर पर आलम बदी के साथ रहते हैं, लेकिन मजाल है कि, कोई भी आदेश या काम वो बिना बदी साहब के कर लें. उनका काम सिर्फ बदी साहब का आदेश मानने का होता है, वो सिर्फ फ़ोन मिलाते हैं, बात खुद बदी ही करते हैं.

आलम बदी कहते हैं 'ना मैं कमीशन खाता हूं और ना ही मेरे बेटे ठेकेदार से मिलकर खेल करते हैं'. इलाके में मशहूर है कि, बदी साहब की विधायक निधि का टेंडर जल्दी कोई ठेकेदार नहीं लेता, क्योंकि वो सड़क, नाला, या कोई भी काम खुद खड़े होकर कराते हैं. कमीशन लेते नहीं और कमी होने पर ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कराने से भी चूकते नहीं हैं.

शहीदों के नाम पर स्मारक
आलम बदी के बारे में उनकी ईमानदारी के साथ ही सभी धर्म और जातियों के लिए बराबर काम करने के किस्से भी हैं . हाल ही में बदी साहब ने इस इलाके के शहीदों के नाम पर 4 बड़े द्वार बनवाये हैं, जिसमें कोई भी मुस्लिम नहीं है. द्वार दिखाते वक़्त बदी साहब बड़े फक्र से बताते हैं कि, इससे आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलेगी.

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बदी साहब को मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव ने मंत्री बनने को कहा तो बदी ने इंकार कर दिया. वो कहते हैं कि, मैं आज तक टिकट या निशान मांगने नहीं गया, नेताजी और अखिलेश खुद ही भेज देते हैं. उन्होंने मंत्री बनने को कहा तो मैंने किसी नौजवान को बनाने का सुझाव दिया. बदी कहते हैं कि वो मंत्री बन जाते तो अपने इलाके से दूर हो जाते.

मुलायम को दिया कठोर सुझाव
वैसे बदी साहब मुलायम सिंह को ऐसा सुझाव दे चुके हैं, जिससे खुद मुलायम भी हक़्के बक्के रह गए. बदी बताते हैं कि मुलायम सिंह ने उनसे कहा कि कुछ ऐसा काम बताओ जिससे लोग मुझे याद रखें. जिस पर बदी ने मुलायम को सुझाया कि आप चुनाव जीतने के बाद सुनिश्चित करिये कि आपके विधायक और मंत्री चुनाव जीतने के पहले जिस घर में रहते थे, उसी में जीतने के बाद भी रहेंगे. बंगला और कोठी नहीं लेंगे, लाल बत्ती भी ना लगाएं, तो जनता आपको कभी नहीं भूलेगी.

बदी बताते हैं कि मेरा सुझाव सुनकर मुलायम ने कहा कि, मैं तो कर दूं, लेकिन आजकल तो सभी इसी के लिए विधायक बनते हैं, वो कैसे मानेंगे. वैसे अखिलेश को लेकर बदी खुलकर कहते हैं कि, वो मुंह में चांदी की चम्मच लेकर पैदा हुए हैं, लेकिन उनके संस्कार ऐसे हैं कि वो आगे जायेंगे. मेरे जाने पर वो कुर्सी से खड़े हो जाते हैं.

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आखिर में हमने बदी साहब से इज़ाज़त ली, तो पूछा कि आप इस उम्र में इतने फिट कैसे रह पाते हैं. उन्होंने तपाक से जवाब दिया 'मैं वेज, नॉन वेज दोनों खा लेता हूँ, लेकिन दिन भर में 2 रोटी, 2 अंडे और 2 गिलास दूध की खुराक है. कम खाओ, पैदल चलो और खूब पानी पियो, इसी पर चलता हूं.

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