Advertisement

मॉब लिंचिंग: अराजकता की आंधी

हरियाणा में चलती ट्रेन में 15 वर्षीय जुनैद की हत्या ने देश को झकझोरा. देश के विभिन्न हिस्सों में लगातार मॉब लिंचिंग की घटनाएं सामने आ रही हैं, आखिर क्या है वजह?

जुनैद के पिता जलालुद्दीन खंदावली में अपने घर में परिवार के साथ जुनैद के पिता जलालुद्दीन खंदावली में अपने घर में परिवार के साथ
सरोज कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 03 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 5:51 PM IST

रमजान का महीना खत्म होने वाला था और फरीदाबाद जिले के खंदावली गांव के मोहम्मद जलालुद्दीन के बेटे 15 वर्षीय जुनैद और 20 वर्षीय हाशिम अपने दोस्तों के साथ ईद की खरीदारी के लिए पुरानी दिल्ली गए थे. शाम को इक्रतार पर उनकी मां सायरा बेसब्री से अपने बेटों का इंतजार कर रही थीं, लेकिन उनका इंतजार मातम में बदल गया. उनका एक बेटा जुनैद नफरत और अराजकता की आंधी की भेंट चढ़ गया और बुरी तरह घायल बेटा शाकिर दिल्ली के एम्स में मौत से जूझ रहा है.

Advertisement

ईद से महज तीन रोज पहले 22 जून की शाम जलालुद्दीन के बेटे और उनके दोस्त पुरानी दिल्ली से खरीदारी कर ट्रेन घर लौट रहे थे. सभी दाढ़ी-टोपी और कुर्ते-पाजामे में अपनी सीट पर खामोशी से बैठे थे. हाशिम उस दिन के वाकये को याद करके सिहर उठते हैं, ''दिल्ली के ओखला स्टेशन से ही कुछ लोग सांप्रदायिक छींटाकशी कर रहे थे. हमें देशद्रोही और बीफ खाने वाला कहकर हमला कर रहे थे. हमने जिस बुजुर्ग को बैठने के लिए अपनी सीट दी, उन्होंने भी बाद में हमारी पिटाई की. अन्य यात्री हमें बचाने की बजाए मारने वालों को और उकसा रहे थे." उन लोगों ने बड़े भाई शाकिर को इसकी सूचना दी, वे बल्लभगढ़ स्टेशन पहुंचे तो हत्यारों ने उन्हें भी ट्रेन में खींच लिया. असावती स्टेशन पहुंचते-पहुंचते वे लोग जुनैद, शाकिर और हाशिम पर चाकुओं से हमला कर दिया. हाशिम की पीठ-जांघ अब भी टांके लगे हुए हैं. जीआरपी ने मामले की प्राथमिकी दर्ज कर ली और कुछ लोगों को गिरक्रतार कर लिया लेकिन सार्वजनिक स्थल पर हुई इस घटना के गवाह नहीं मिले, यहां तक कि इस छोटे से रेलवे स्टेशन के स्टेशन मास्टर और हर रोज खोमचे लगाने वालों को भी कुछ खबर नहीं! स्टेशन के सीसीटीवी कैमरे भी जुनैद बंधुओं की हालत को रिकॉर्ड नहीं कर सके! मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर और उनकी भाजपा सरकार के मंत्रियों ने इस घटना पर चुप्पी की चादर ओढ़ ली, जिस पर ज्यादातार लोगों को अफसोस तो हुआ पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि देश के मौजूदा माहौल में इस तरह की घटनाएं ''न्यू नॉर्मल" या नई हकीकत बन गई हैं.

Advertisement

नई और तल्ख हकीकत

घर वापसी, लव जिहाद, गोरक्षा, आत्मरक्षा शिविरों के नाम पर समुदाय विशेष के खिलाफ लंबे अरसे से बहुसंख्यकों के मन बैठाई जा रही बातें अब हिंसा के रूप में अभिव्यक्त हो रही हैं. जुनैद, पहलू खान, मुन्ना अंसारी और मोहम्मद इखलाक जैसे लोगों को भीड़ अपना निशाना बना रही है. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के समाजशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. निशात कैसर कहते हैं, ''ऐसे हमलों से पीड़ित समुदायों को ही प्रोवोक करने की कोशिश हो रही है. रिवर्स विक्टिमहुड यानी जो हिंसा कर रहे हैं, वहीं खुद को विक्टिम बताते हैं, इसके लिए इतिहास का सहारा लेते हैं और वर्तमान के कुकृत्यों को जस्टिफाइ करने की कोशिश करते हैं." लिहाजा, व्यक्ति की हत्या उन्हें ''जायज" या ''सामान्य" लगती है. रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव कहते हैं, ''जाहिर है, इस तरह का विमर्श सियासी नेताओं के लिए फायदेमंद है क्योंकि इससे उनका वोट बैंक लामबंद होता है. लोकतंत्र में पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सियासी रहनुमाओं की हुक्मउदूली नहीं कर सकते, अतः सबके बीच एक मौन सहमति लगती है." वैसे, पुलिस हमेशा की तरह तत्पर कार्रवाई करने की बात करती है. हरियाणा के पुलिस महानिदेशक बी.एस. संधू कहते हैं, ''इसमें कोई शक नहीं है कि यह जघन्य अपराध है. लेकिन यह किसी तरह से सांप्रदायिक या हेट क्राइम नहीं है." एक तो हेट क्राइम के बारे में हमारे कानून स्पष्ट नहीं हैं, दूसरी ओर पुलिस-प्रशासन और राजनेताओं का एक बड़ा वर्ग हकीकत को सार्वजनिक करने से कतरा रहा है. लेकिन सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक जॉन दयाल की चिंता बड़ी है. वे कहते हैं, ''पहले भी अधिकारियों और राजनेताओं पर इस तरह के आरोप लगते रहे हैं पर आम लोगों का ऐसे तत्वों का टूल बन जाना बहुत खतरनाक और चिंताजनक है."

Advertisement

नफरत की राजनीति

प्रो. निशात कैसर इस तरह के हमलों को नफरत की राजनीति का नतीजा मानते हैं, ''एक बात बहुत साफ है कि गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग या इस तरह की जो भी वारदातें हो रही हैं, यह सब सोची-समझी प्लानिंग का नतीजा है. उग्र-हिंदुत्व फोर्सेज में एक खास तरह का डिविजन ऑफ लेबर हो गया है. केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद हिंदुत्ववादी ताकतों को बहुत शह मिल रही है." जॉन दयाल का मानना है कि इसे सिर्फ मुसलमानों का मामला मानना उग्र-हिंदुत्व की नफरत की राजनीति के ट्रैप में फंसना है. वे कहते हैं, ''दलितों पर भी इसी तरह के हमले हो रहे हैं. दरअसल अपर कास्ट उग्र-हिंदुत्व की राजनीति मुसलमान, ईसाई समेत अल्पसंख्यक तबकों और दलितों के खिलाफ भी काम करती है."

भीड़ की हिंसा के मामले सामान्य तौर पर देशभर और खासकर हिंदीभाषी क्षेत्र से सामने आ रहे हैं. 27 जून को झारखंड के गिरिडीह में उस्मान अंसारी नामक शख्स के घर के पास गाय की लाश मिलने के बाद उनको बुरी तरह पीटा गया और घर में आग लगा दी गई. गिरडीह के डिप्टी कमिशनर उमाशंकर सिंह ने कहा, ''अब तक की जांच में सामने आया है कि गाय उस्मान की ही थी और कई दिनों से बीमार थी, जिसकी वजह से मौत हो गई. हमने कड़ी मशक्कत कर उस्मान की जान बचा ली." लेकिन रामगढ़ जिले के अलीमुद्दीन इतने खुशकिस्मत नहीं निकले. 29 जून सुबह नौ बजे भीड़ ने अलीमुद्दीन को पीट-पीटकर मार डाला और उनकी गाड़ी को आग के हवाले कर दिया. राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, ऑपरेशंस, आर.के. मलिक ''तत्पर कार्रवाई" की बात करते हुए कहते हैं, ''सरकार किसी को भी कानून अपने हाथ में नहीं लेने देगी."

 

Advertisement

भीड़ का झटपट ''न्याय" करना कानून-व्यवस्था से लोगों का भरोसा टूटना भी जाहिर करता है. इस अराजकता के शिकार पुलिस और बहुसंख्यक वर्ग के लोग भी हुए हैं. झारखंड में मई, 2017 में जिन आठ लोगों की बच्चा चोर की अफवाह में भीड़ ने हत्या की, उनमें तीन हिंदू थे. कई जगहों पर पुलिसवालों की पिटाई से उनका इकबाल खत्म होता लगा. और कई मामलों में भीड़ ने पुलिस के सामने ही पीड़ितों की पिटाई कर दी. खुद पुलिस भी इसमें हाथ सेंकती नजर आ रही है. 23 जून को झारखंड के चतरा जिले में पुलिसवाले 25 वर्षीय सलमान नामक शख्स को कथित तौर पर घर से उठा ले गए और थोड़ी देर बाद उसका सीना गोलियों से छलनी पाया गया.

अब भी उम्मीद कायम

जाहिर है, बात कहीं आगे बढ़ गई है. राजस्थान में विक्षिप्त महिला की बेरहमी से पिटाई और उनसे जय श्रीराम बुलवाने से लेकर कई सारे वीडियो वायरल हुए हैं, वे स्थिति की गंभीरता का आभास कराते हैं. आखिर इस तरह की घटनाएं रुक क्यों नहीं पा रही हैं? प्रो. कैसर कहते हैं, ''दरअसल, हिंसा का इस तरह नॉर्मलाइजेशन कर दिया है मानो यह आम बात हो गई हो. लोगों को फर्क नहीं पड़ रहा है, लोगों को असंवेदनशील बनाया जा रहा है. यह बहुत खतरनाक स्थिति है."

 

Advertisement

 हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय पर लंबी चुप्पी के बाद 29 जून को अहमदाबाद में कहा, ''हम कैसे लोग हैं जो इस तरह आपा खो रहे हैं, गाय के नाम पर लोगों को मार रहे हैं? इनसान को मारना गोरक्षा नहीं है." इसी तरह, अल्पसंख्यक मामलों मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है, ''जिस भी राज्य में इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, राज्य सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए. (और) बात का बतंगड़ बना रहे लोगों या विकास के एजेंडे को बर्बाद करने की कोशिश कर रहे लोगों को इस तरह की राजनीति नहीं करनी चाहिए."

 

कुछ लोग जुनैद की हत्या को हिंदुओं के सैन्यकरण की मिसाल बता रहे हैं. जाहिर है, समाज बंटता दिख रहा है, लेकिन अभी उम्मीद खत्म नहीं हुई है. गम में डूबी जुनैद की मां सायरा ने इंडिया टुडे से कहा, ''हमें बदला नहीं चाहिए, बस इंसाफ चाहिए." भाईचारे की मिसालें भी हैं. खुद जलालुद्दीन के नियोक्ता मानचंद कहते हैं, ''जो भी हुआ गलत हुआ, दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए." लेकिन सबसे बढ़कर जलालुद्दीन को प्रधानमंत्री से बहुत उम्मीदंल हैः ''उनमें क्षमता है कि वे चाहें तो ऐसी घटनाओं पर लगाम लगा सकते हैं. हमने अपना बेटा तो खो दिया, लेकिन हम नहीं चाहते कि किसी और के बेटे के साथ इस तरह की घटना घटे." क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सुन रहे हैं?

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement