
नरेन्द्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल का चौथा साल पूरा कर रही है और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने उसके अच्छे दिनों के सपनों को यू-टर्न दे दिया है. बीते चार साल के दौरान जहां कच्चे तेल की कीमतों ने मोदी सरकार की राजस्व के क्षेत्र सबसे ज्यादा मदद की है. अब पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों से साफ हो गया है कि आम आदमी की जेब पर भारी पड़ने के साथ-साथ पेट्रोल-डीजल की कीमतें अब दोनों केन्द्र सरकार और राज्य सरकार का अर्थ-गणित बिगाड़ सकती है.
मोदी सरकार के कार्यकाल से पहले मनमोहन सिंह सरकार में आम आदमी को महंगाई का मार पड़ रही थी. जहां वैश्विक बाजार में कच्चा तेल शीर्ष स्तर पर बिक रहा था वहीं देश में 2013 के दौरान पेट्रोल-डीजल की कीमतें सरकार का गणित खराब कर रही थीं. पहला महंगे पेट्रोल-डीजल से बड़ती महंगाई और दूसरा महंगे कच्चे तेल से बढ़ता सरकारी खर्च और सरकार का सिमटता राजस्व.
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लिहाजा, 2014 के आम चुनावों में महंगाई और पेट्रोल-डीजल की कीमतें एक बड़ा मुद्दा बना. प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर रहे नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रचार रैलियों में वादा किया कि उनके द्वारा लाया जाना वाला अच्छा दिन सस्ते पेट्रोल और डीजल का होगा.
क्यों नहीं सस्ता हुआ पेट्रोल और डीजल
मई 2014 में मोदी सरकार बनने के साथ ही दुनियाभर में कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज होने लगी. इस गिरावट के बीच उन सभी देशों को फायदा पहुंचना शुरू हो गया जो कच्चे तेल के लिए आयात पर निर्भर थे और कच्चे तेल के बड़े उपभोक्ता भी.
लेकिन चुनावों में वादा करने के बावजूद मोदी सरकार ने कच्चे तेल की कीमतों में वैश्विक गिरावट का सीधा फायदा उपभोक्ता तक पहुंचने से रोकने के लिए देश में पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर बड़ा टैक्स लगाते हुए सरकार की आमदनी को बूस्ट देने का फैसला किया.
तारीख पेट्रोल की कीमत(रुपये)
20 मई 2018 76.24
16 मई 2017 65.32
17 मई 2016 63.02
16 मई 2015 66.29
13 मई 2014 71.41
14 मई 2013 76.24
कच्चे तेल की कीमतों में इस फिसलन का फायदा उठाते हुए केन्द्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर लगने वाली एक्साइड ड्यूटी में बड़ा इजाफा किया. जहां प्रति लीटर पेट्रोल पर 21.50 रुपये एक्साइड ड्यूटी वसूली गई वहीं प्रति लीटर डीजल पर सरकार ने 17.30 रुपये बतौर ड्यूटी वसूला. इसके चलते केन्द्र सरकार की पेट्रोल-डीजल की बिक्री से कमाई दो गुनी हो गई. जहां वित्त वर्ष 2014 में केन्द्र सरकार को पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से कमाई जीडीपी का महज 0.7 फीसदी था वहीं वित्त वर्ष 2017 में दोगुना होकर 1.6 फीसदी हो गई. नतीजा यह कि केन्द्र सरकार के इस फैसले से आम आदमी के लिए पेट्रोल डीजल की कीमतें कम नहीं हो सकीं.
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केन्द्र सरकार के अलावा राज्य सरकारों ने भी आम आदमी के लिए सस्ते पेट्रोल-डीजल का रास्ता बाधित किया. केन्द्र सरकार के एक्साइड ड्यूटी से अलग राज्य सरकारों ने पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर सेल्स टैक्स में बड़ा इजाफा कर दिया. कच्चे तेल की कीमतों में आई इस फिसलन के दौरान राज्य सरकारों ने पेट्रोल पर वैट को लगभग 40 फीसदी बढ़ाया तो डीजल पर लगभग 28 फीसदी की वृद्धि कर दी गई. इसके चलते दोनों केन्द्र और राज्य सरकारों ने आम आदमी तक सस्ता पेट्रोल-डीजल नहीं पहुंचने दिया.
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