
2014 के आम चुनावों में जब बीजेपी अपने दम पर बहुमत से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता में आई तो ये माना जा रहा था कि संसदीय कामकाज में उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी और वो बड़े फैसले बिना किसी विरोध की परवाह के ले सकेगी. ये उम्मीद इसलिए भी जगी क्योंकि जिस तरह के नतीजे सामने आए उनमें कोई भी पार्टी नेता प्रतिपक्ष का पद हासिल करने लायक तक सीटें भी नहीं जुटा पाई थी.
उम्मीदों के उलट 16वीं लोकसभा की कार्यवाही शुरू होते ही नेता प्रतिपक्ष को लेकर सरकार और विपक्ष में जो तकरार हुई वो आज चार साल बाद भी जारी है. नतीजा ये है कि लोकसभा से कई महत्वपूर्ण विधेयक पास होने के बाद भी राज्यसभा में अटके हुए हैं क्योंकि लोकसभा में कमजोर विपक्ष वहां सरकार को अपनी ताकत दिखा रहा है. दूसरी ओर सरकार फ्लोर मैनेजमेंट करने में विफल रही है.
मोदी सरकार में संसदीय कार्यवाही की स्थिति क्या है ये इस बात से समझा जा सकता है कि इस बार के बजट सत्र में लोकसभा में 14.1 घंटे और राज्यसभा में मात्र 11.2 घंटे बजट पर चर्चा हुई. टोटल कामकाज के लिहाज से देखें तो पिछले 18 साल में ये सबसे खराब बजट सत्र रहा. इस बजट सत्र में लोकसभा में सिर्फ 33.6 घंटे और राज्यसभा में कुल 53.2 घंटे काम हुआ. यानी बजट सत्र में लोकसभा में कुल 21 फीसदी और राज्यसभा में महज 31 फीसदी काम हुआ. बाकी की कार्यवाही शोर शराबे और हंगामे की भेंट चढ़ गई.
सदन ठीक से चलाने की सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है. क्या सरकार ने सही तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाई? इस सवाल का जवाब विपक्ष तो न में दे ही रहा है, बीजेपी नेता भी खुलकर नाखुशी जाहिर कर रहे हैं. बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तो सीधे संसदीय कार्यमंत्री और लोकसभा स्पीकर की भूमिका पर ही सवाल उठाए थे. इसके बावजूद संसद के भीतर हालात में कोई बदलाव नहीं आया.
मोदी सरकार की ओर से विपक्ष को मैनेज करने में कोई ठोस पहल और रुचि नहीं दिखी. सरकार पर आरोप लगे कि वो बहुमत की ठसक में विपक्ष को अनदेखा कर रही है जिसका नतीजा रहा कि सदन नहीं चल सका और न जाने कितने सत्र बेकार चले गए. संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी सदन को चलाने की होती है. लेकिन मंत्री अनंत कुमार खुद आक्रामक रुख बनाए रहे, जिसका नतीजा रहा कि बिना कामकाज के बार-बार सदन स्थागित करना पड़ा.
मोटर व्हीकल अमेंडमेंट बिल, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन बिल, मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन बिल, व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन बिल समेत कई महत्वपूर्ण विधेयक इस समय राज्यसभा में लंबित हैं दूसरी ओर लोकसभा में भी डेंटिस्ट अमेंडमेंट बिल, इंस्टूमेंट अमेंडमेंट बिल, टीचर्स एजुकेशन अमेंडमेंट बिल, कंज्यूमर प्रोटेक्शन बिल समेत कई बिल फंसे हुए हैं.
अविश्वास प्रस्ताव नहीं हो पाया पेश
इस बार के बजट सत्र में एक वाकया ऐसा भी हुआ जो संसद में पहले नहीं देखा गया. कांग्रेस सहित कई अन्य दल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहते थे. हालांकि सरकार के पास पर्याप्त नंबर हैं लेकिन फिर भी ये बिल अलग-अलग कारणों से पेश नहीं हो पाया. लोकसभा में अलग-अलग मुद्दों पर हंगामा होता रहा और बार-बार नोटिस देने के बावजूद स्पीकर ने सदन के व्यवस्था में न होने का हवाला देकर अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की इजाजत नहीं दी. विपक्ष का कहना है कि सरकार ने ही अपने सहयोगी दलों के जरिए सदन में हंगामा कराया ताकि उसे अविश्वास प्रस्ताव का सामना न करना पड़े.
राज्यसभा में अब बदल गया समीकरण
मोदी सरकार के हौसले लोकसभा में बहुमत से बुलंद हैं. राज्यसभा में सरकार ने अल्पमत में होने के नाते विपक्ष को अपने पाले में लाने की कोशिश करने की बजाय वहां भी अपना बहुमत होने का इंतजार करने का रास्ता चुना. पिछले चार साल में एक के बाद एक राज्यों में बीजेपी की सरकार आने से राज्यसभा का गणित भी बदला है. 2014 में जहां राज्यसभा में एनडीए के महज 65 सांसद थे वहीं अब उसके सांसदों की संख्या बढ़कर 88 हो गई है. उम्मीद जताई जा रही है कि अब महत्वपूर्ण बिलों को पास कराने में सरकार देर नहीं करेगी.