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किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार का मछलीपालन पर जोर

अपने कार्यकाल के आखिरी साल में मोदी सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे पर अमल करना तेज कर दिया है. मछलीपालन में आवंटन बढ़ाने और नीली क्रांति को किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करने से लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है. खासकर युवा इसको रोजगार के रूप में देख रहे हैं. मत्स्य पालन के लिए प्रशिक्षण लेने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. सिर्फ बिहार में ही पिछले पांच सालों में 25 हजार से अधिक लोग मत्स्यपालन का प्रशिक्षण ले चुके हैं.

मछली पकड़ता हुआ मछुआरा मछली पकड़ता हुआ मछुआरा
मंजीत ठाकुर
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  • 23 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

कृषि/मछलीपालन

अपने कार्यकाल के आखिरी साल में मोदी सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी करने के अपने वादे पर अमल करने की कोशिशें तेज कर दी हैं. गांवों में अपनी पैठ को मजबूत करने के मकसद से सरकार ने मछुआरों की आमदनी बढ़ाने के कदमों को ठोस आकार देना शुरू कर दिया है. ग्रामीण युवाओं में भी इस कदम का असर दिख रहा है और मछलीपालन में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है. खासकर युवा इसको रोजगार के रूप में देख रहे हैं. मत्स्य पालन के लिए प्रशिक्षण लेने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. सिर्फ बिहार में ही पिछले पांच सालों में 25 हजार से अधिक लोग मत्स्यपालन का प्रशिक्षण ले चुके हैं.

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नतीजतजन, राज्य में मछली उत्पादन में लगातार इजाफा हो रहा है. अभी बिहार में सालाना 5.10 लाख टन मछली का उत्पादन हो रहा है. जबकि, प्रदेश में मछली की मांग 6 लाख टन सालाना है. इसमें बड़ी भूमिका ट्रेनिंग की है. राज्य में नये जल स्रोतों के साथ-साथ हैचरी का भी निर्माण हो रहा है. ट्रेनिंग की वजह से मछली को पूरक आहार देने का चलन भी शुरू हुआ. राज्य में 140 हैचरी का निर्माण हो चुका है, इसमें 105 कार्यरत हैं. राज्य में सबसे अधिक मांग रोहू और कतला मछली की है. मत्स्यपालकों को राज्य में मीठापुर, डीएनएस, ढोली व आईसीएआर में ट्रेनिंग दी जाती है. जबकि, राज्य के बाहर काकीनाडा, होशंगाबाद आदि में ट्रेनिंग दी जाती है. 

बिहार अब तक मछली बीज के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर था. राज्य मछली बीज (जीरा) उत्पादन में अभी आत्मनिर्भर तो नहीं हुआ है लेकिन आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है. राज्य में 90 करोड़ मछली बीज की मांग है, जबकि अपना उत्पादन 79.3 करोड़ ही है. दो तिहाई मांग की आपूर्ति बाहरी राज्य से हो रही है. गौरतलब है कि एक हेक्टेयर के तालाब में में पांच हजार मछली के बीज की जरूरत होती है. 

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अभी भी बिहार के अन्दर मछली की मांग और उत्पादन के बीच भारी अन्तर है. सिर्फ बिहार ही नहीं, पूरे देश में मछलीपालन को बढ़ावा देने और किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वास्ते सरकार ने नीली क्रांति पर खास जोर दिया है.

कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह कहते हैं, "किसानों की आय को दुगुना के उद्देश्य से शुरू “नीली क्रांति” मिशन योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु सरकार द्वारा पिछले 4.5 वर्षों मे कुल रु.1915.33 करोड़ आवंटित किया गया है. सरकार की कोशिश है कि 2022 तक 2 करोड़ टन मछली उत्पादन के लक्ष्य को पूरा किया जा सके. “नीली क्रांति” मिशन का मुख्य उद्देश्य किसानों की आय को दुगुना करना है." 

कृषि मंत्री बताते हैं कि इस मिशन में शामिल योजनाओं को लागू करने के लिए सरकार द्वारा पिछले साढ़े चार साल में कुल 1915.33 करोड़ रु. आवंटित किए हैं. उन्होंने बताया कि जलकृषि (एक्वाकल्चर) के तहत लगभग 29,128 हेक्टेयर क्षेत्रफल विकसित किया गया है. 

मछलीपालन में बढ़ते कदम

  • जलकृषि में विकासः 29,128 हेक्टेयर
  • पारंपरिक नौकाओं का मोटरचालित नौकाओं में परिवर्तनः 7441
  • मात्स्यिकी और जल-कृषि में बुनियादी ढाँचे के विकास (एफ.आई.डी.एफ.) हेतु निधिः 7,522 करोड़ रु.
  • लाभार्थी किसानों/ मछुआरों की संख्याः 9.40 लाख 

कृषि मंत्री बताते हैं कि एफआइडीएफ से समुद्री और अंतरदेशीय मछलीपालन क्षेत्रों में मछली पालने की बुनियादी ढांचे के विकास में निवेश किया जा रहा है. इससे साल 2020 तक 1.5 करोड़ टन मछली उत्पादन का लक्ष् हासिल किया जा सकेगा. इस निधि से सालाना 9 फीसदी विकास दर की उम्मीद है और इस तरह साल मछली उत्पादन को 2022 तक 2 करोड़ टन तक बढ़ाया जा सकेगा.

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अपने गृह राज्य बिहार में मछली पालन की स्थिति के बारे में राधा मोहन सिंह ने बताया कि यूपीए सरकार के दौर में साल 2009 से 2014 तक इस मद में सूबे को महज 4.95 करोड़ रु. दिए गए थे, जबकि 2014 के अब तक यह राशि बढ़ाकर 64.42 करोड़ रु. कर दी गई है. यही नहीं बिहार को आवंटित प्रधानमंत्री के विशेष पैकेज के तहत मात्स्यिकी सेक्टर को 279.55 करोड़ रु. की स्वीकृति दी गई जिसके तहत केन्द्रीय अंश की पहली क़िस्त 40.79 करोड़ रु. जारी कर दिये गए हैं.

मछलीपालन में विकास से समाज के वंचित तबकों को अधिक फायदा पहुंचने की उम्मीद है. नकद आमदनी बढ़ने से किसानों के पास आर्थिक ताकत आएगी, और ऐसा लगता है कि यह आवंटन सही लोगों तक सही तरीके से पहुंच जाए, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की खोई ताकत दोबारा हासिल हो सकती है.

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