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बकरियों पर नजर रखने के लिए मोदी सरकार ने लॉन्च किया सॉफ्टवेयर

कृषि मंत्रालय को भले ही देश भर में सूखे से निपटने में पसीने छूट रहे हो, लेकिन बकरियों का लेखा-जोखा रखने के लिए कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कमर कस ली है. बकरियों की वंशावली, उनका दूध, मांस उत्पादन, जनन एवं प्रजनन क्षमता, बीमारियों आदि का लेखा-जोखा रखने के इरादे से कृषि मंत्री ने ई सॉफ्टवेयर की शुरुआत की है.

आधार कार्ड की तरह बनेगा बकरियों का पहचान पत्र आधार कार्ड की तरह बनेगा बकरियों का पहचान पत्र
केशव कुमार/सिद्धार्थ तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 24 मई 2016,
  • अपडेटेड 8:40 PM IST

कृषि मंत्रालय को भले ही देश भर में सूखे से निपटने में पसीने छूट रहे हो, लेकिन बकरियों का लेखा-जोखा रखने के लिए कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कमर कस ली है. बकरियों की वंशावली, उनका दूध, मांस उत्पादन, जनन एवं प्रजनन क्षमता, बीमारियों आदि का लेखा-जोखा रखने के इरादे से कृषि मंत्री ने ई सॉफ्टवेयर की शुरुआत की है.

राष्ट्रीय स्तर पर जमा होगा बकरियों का डाटा
बकरियों के प्रबंधन पर ई सॉफ्टवेयर की शुरुआत करते हुए कृषि मंत्री ने पशु आनुवंशिक संसाधनों के प्रबंधन एवं संरक्षण पर जोर देने की बात कही. उनके मुताबिक बदलती हुई जलवायु, वातावरण और औद्योगिकीकरण के युग में पशु प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है. इस सॉफ्टवेयर से देश की सभी बकरियों की वंशावली, उनका दूध, मांस उत्पादन, जनन एवं प्रजनन क्षमता, होने वाली बीमारियों आदि का लेखा-जोखा राष्ट्रीय स्तर पर रखा जा सकेगा.

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कहीं से भी अपलोड या डाउनलोड हो जाएगा डाटा
इस सॉफ्टवेयर में ऐसी सुविधा दी गई है कि हरेक बकरी की वंशावली , उनके मालिक का नाम, पैदा होने की जगह, नस्ल आदि पर आंकड़े ऑनलाइन वेबसाइट के जरिए देश में कहीं से भी अपलोड या डाउनलोड किया जा सकता है. इन आंकड़ों के साथ-साथ उनकी बीमारियों, खान-पान, आनुवांशिकी सरंचना, जलवायु विशेष के प्रति उनकी अनुकूलता ई फॉर्मेट में ऑनलाइन उपलब्ध कराई जा सकेगी.

आधार कार्ड की तरह बनेगा बकरियों का पहचान पत्र
बकरी की पहचान के लिए, भारत में मनुष्यों के लिए आधार नंबर की नीतियों पर आधारित एक राष्ट्रीय पहचान नंबर दिया जा सकेगा. उसी पहचान के बाद उस पशु विशेष के सभी आंकड़े उपलब्ध रहेंगे. वैसे तो यह सॉफ्टवेयर केवल बकरियों के लिए बनाया गया है, लेकिन थोड़े बदलावों के बाद इसका प्रभावशाली तरीके से अन्य पशु प्रजातियों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

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वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए बनाए जाएंगे प्रोटोकॉल
राधामोहन सिंह ने कहा कि भारतीय पशुधन पर वैसे तो संख्या संबंधी आंकड़े उपलब्ध हैं, लेकिन उनके स्थान विशेष पर उपलब्धता, उनके खान-पान की गुणवत्ता, मात्रा, उसमें कमी, होने वाली बीमारियों, उपचार के प्रबंध, प्रजनन क्षमता, अनुवांशिक सरचना, जनन क्षमता, जलवायु विशेष में उत्पादकता आदि पर आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. इससे नीतिगत फैसले लेने और उनके वैज्ञानिक प्रबंधन संबंधी प्रोटोकॉल बनाने में कठिनाई आती है.

एशिया और अफ्रीका में ऐसे तकनीकों की जरूरत
उन्होंने बताया कि वर्तमान में अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों में पशुधन की बहुत सारी प्रजातियों के हरेक पशु के व्यक्तिगत पहचान नंबर उनकी गुणवत्ता, उत्पादन क्षमता, और आनुवंशिकी संरचना पर ई-डाटाबेस में आंकड़े उपलब्ध हैं. इन आंकड़ों को हरदिन आधुनिक बनाया जाता है. इस तरह की व्यवस्था एशिया और अफ्रीका के बहुत देशों में अभी नहीं हो पाई है.

यूएन ने 2007 में जारी किया था इंटरलॉकिंग घोषणा पत्र
विश्व पशुधन प्रबंधन पर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने 2007 में इंटरलॉकिंग घोषणा पत्र जारी किया था. इसका मुख्य मकसद देशों को अपने पशुधन की पहचान करना, व्याख्या करना, उनके गुणदोष पर आंकड़े इकठ्ठा कर और एक खाका तैयार करना है. ताकि उनके प्रबंध पर उचित नीतियां बनाई जा सके.

पशुधनों की मार्केटिंग होगी आसान
केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने बकरी आनुवंशिकी संसाधनों के प्रबंध के लिए साल 2015-16 में एक सॉफ्टवेयर का निर्माण किया है. केंद्रीय बकरी अनुसधान संस्थान मथुरा में विकसित ई-फॉर्मेट में इस सॉफ्टवेयर में आंकड़े भरे जाने के बाद देश में पाई जाने वाली बकरियों के सुधार पर उचित नीति का निर्माण, उनका प्रबंधन और उनकी मार्केटिंग की जा सकती है.

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बढ़ाई जा सकेगी किसानों की आय
इसमें किसानों तक बकरी पालन से संबंधित ज्ञान का आदान-प्रदान उनकी अपनी भाषा में करने का इंतजाम भी रखा गया है. इससे न केवल देश में बकरियों से अधिक उत्पादन लिया जा सकता है बल्कि उचित प्रबंध कर किसानों की आय भी बढ़ाई जा सकती है. भविष्य की पीढ़ियों के लिए यह पशुधन संरक्षण में इससे सहायता मिल सकेगी.

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