
देश जब इस वक्त सबसे बड़ी महामारी कोरोना वायरस के महासंकट से गुज़र रहा है, इस बीच नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 का एक साल पूरा हो रहा है. 23 मई 2019 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे और नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रचंड जीत हासिल कर दोबारा देश के प्रधानमंत्री बने थे. मोदी नाम का मैजिक लोकसभा चुनाव में सिर चढ़कर बोला, लेकिन 6 महीने के बाद ही जब राजधानी दिल्ली में चुनाव हुआ तो सब बदल गया.
दिल्ली में एक बार फिर आम आदमी पार्टी की सरकार बनी और प्रचंड जीत हासिल हुई. वहीं, जीत का दम भरने वाली भाजपा दहाई का आंकड़ा भी छू नहीं सकी. दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे बिल्कुल 2014 लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए विधानसभा चुनाव के जैसे रहे थे. दिल्ली में तो भाजपा की हार हुई, लेकिन इस साल होने वाले एक और विधानसभा चुनाव बिहार में अब पार्टी के सामने बड़ी चुनौती है. क्योंकि 2015 में वहां भी बीजेपी को हार ही नसीब हुई थी.
आंदोलन के साये में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव
प्रचंड बहुमत हासिल कर जब नरेंद्र मोदी दोबारा सत्ता में आए तो शुरुआती कुछ महीनों में सरकार ने बड़े फैसले लिए. अगस्त में पहले जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया गया और उसके कुछ दिन बाद ही नागरिकता संशोधन एक्ट को लाया गया. इसी साये में दिल्ली का चुनाव भी हुआ, नागरिकता संशोधन एक्ट को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुआ. मोदी सरकार के विरोध में आवाज़ उठ रही थी, लेकिन दूसरी ओर भाजपा भी राष्ट्रवाद का नारा बुलंद कर आगे बढ़ रही थी.
शाहीन बाग प्रदर्शन, जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया में हुई हिंसा के साये में भाजपा चुनावी मैदान में उतरी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में इसी को चुनावी थीम भी बना दिया गया, लेकिन बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक सफलता प्राप्त नहीं हुई.
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दिल्ली में फिर चला झाड़ू का जादू
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे 11 फरवरी को आए, आम आदमी पार्टी को 62 विधानसभा सीटों पर जीत मिली और भाजपा सिर्फ 8 सीटों पर सिमट गई. ये नतीजे तकरीबन 2015 के विधानसभा चुनाव जैसे ही थे, अंतर सिर्फ ये था कि बीजेपी 3 से 8 सीटों पर पहुंची थी.
अमित शाह ने चुनाव के बाद इस बात को कुबूल किया था कि कुछ नेताओं की बयानबाजी भाजपा को चुनाव में भारी पड़ी और लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट दे दिया. यानी जो भाजपा पूरे देश में नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव जीत गई, उसे लगातार दो बार दिल्ली में चुनावी पटखनी का सामना करना पड़ा.
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अबकी बार क्या बिहार में होगा बेड़ा पार?
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद 2020 में सिर्फ एक और राज्य में चुनाव होने हैं और वो है बिहार. इस वक्त कोरोना वायरस का साया चल रहा है और पता नहीं ये कबतक चलेगा, लेकिन इस साल अक्टूबर-नवंबर में चुनाव हो सकते हैं.
बिहार में इस बार 2015 के विधानसभा चुनाव से पूरी अलग तस्वीर है, क्योंकि अब एक बार फिर नीतीश कुमार और भाजपा एक पाले में हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की जोड़ी ने हाथ मिलाया था और नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने का काम किया था.
2015 के चुनाव में जदयू-राजद की जोड़ी मिलकर बहुमत का आंकड़ा ले आई थी, लेकिन 2017 तक आते-आते दोनों पार्टियों में रार बढ़ी और नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद नीतीश ने एक बार फिर भाजपा का साथ लिया और सरकार बना ली.
तब बिहार में भाजपा की ओर से राष्ट्रवाद, बड़े आर्थिक पैकेज, लालू परिवार के घोटालों को मुद्दा बनाया गया था, लेकिन अंत में बीजेपी को हार ही मिली थी. अब पांच साल बाद तस्वीर बदली है, लालू यादव जेल में हैं, राजद-जदयू अलग हो चुके हैं और तेजस्वी यादव की अगुवाई में बिहार का विपक्ष बिखरा हुआ है.
भाजपा-जदयू में चलती रही है खटपट!
लेकिन, इस बीच भाजपा और जदयू के पाले में भी काफी कुछ अच्छा नहीं चल रहा है. नागरिकता संशोधन एक्ट, जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को लेकर जदयू कई बार अलग रास्ते पर चलती हुई नज़र आई है, इन मसलों के चक्कर में रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया.
अब अगर ताज़ा मसलों की बात करें, तो कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन को लेकर भाजपा-जदयू में अलग-अलग राय दिखी है. राजस्थान के कोटा में बिहार के सैकड़ों बच्चे फंसे तो नीतीश सरकार की काफी किरकिरी हुई, हॉस्टल से बच्चों के वीडियो सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय रहे. ऐसे में नीतीश कुमार की ओर से हर बार लॉकडाउन को कारण बताना लोगों को अखरा, जब विवाद गहराया तो बीजेपी की ओर से भी आवाज़ आई कि राज्य सरकार को तुरंत बच्चों को वापस लाना चाहिए.
बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव समेत कुछ अन्य नेताओं ने इस संकट के बाद इस मांग को सार्वजनिक मंचों पर रखा था कि बच्चों को वापस लाना चाहिए. हालांकि, बाद में बच्चों को वापस भी लाया गया.
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अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन एक्ट, कोटा बच्चों के अलावा बिहार के विशेष राज्य का दर्जा भाजपा और जदयू के बीच में चर्चा का विषय रहा है. लेकिन इन सबके बीच दोनों पार्टियां अभी एक साथ ही बिहार चुनाव में जाती नज़र आ रही हैं लेकिन कोरोना संकट को हैंडल करने और प्रवासी मज़दूरों के साथ बर्ताव पर नीतीश सरकार की किरकिरी से काफी चुनौती सामने आ रही हैं.
ऐसे में 2019 में राजनीतिक महाजीत हासिल कर केंद्र की सत्ता में लगातार दूसरी बार विराजमान हुई भाजपा के लिए साल 2020 भले ही दिल्ली की चुनावी हार से शुरू हुआ हो. लेकिन अंत में उसकी कोशिश रहेगी कि बिहार चुनाव में महाजीत हासिल कर साल का अंत अच्छा किया जाए. क्योंकि 2021 के शुरुआती में ही पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के चुनाव भी सिर पर हैं.