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सीमा विवाद को लेकर चीन और भारत फिर एक दूसरे के आमने सामने हैं. सिक्किम में दोनों देशों के जवान आमने सामने आ गए, धक्का मुक्की हुई और इसके बाद तल्ख बयानबाजी. 1962 के बाद यह पहला मौका है जब दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर इतना लंबा तनाव चला है. ऐसे में चीन को लेकर क्या मोदी सरकार की पॉलिसी कमजोर पड़ रही है? या जिस तरीके से अरुण जेटली ने बयान दिया और फिर चीन बौखला गया, वह मजबूत दावेदारी की निशानी है?
अभी सीमा पर क्या हैं हालात?
भारतीय सीमा में अवैध घुसपैठ और उसके बाद नक्शे में सिक्किम को अपना हिस्सा बताने पर चीन के साथ तनाव के हालात चरम पर हैं. भारत ने एक ओर कहा कि हम 1962 वाले हालात में नहीं है, चीन हमें कमजोर नहीं समझें. वहीं चीन ने कहा- हमें भी 1962 वाला चीन मत समझिए. चीनी मीडिया ने कहा- हम अपनी जमीन बचाने के लिए जंग के स्तर तक भी जा सकते हैं. इस इलाके में दोनों तरफ सैनिक भेजे गए हैं. यहां भारत ने डोकाला में जो सैनिक भेजे हैं, उन्हें नॉन काम्बैटिव मोड में तैनात किया गया है.
चीन से रिश्तों की मोदी ने की थी मधुर शुरुआत
पीएम बनने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देशों से अच्छे संबंधों की वकालत की थी. शपथ में सार्क देशों के प्रमुखों को बुलाया. इसके बाद देश में सबसे पहले जिस बड़े राष्ट्रपति का स्वागत किया था, वह थे चीन के शी जिनपिंग. वे भारत दौरे आए. मोदी उऩ्हें अपने गृह राज्य गुजरात ले गए. साबरमती नदी के किनारे उन्हें झूले पर बैठाया. ऐसा माहौल बना कि शायद अब रिश्ते बेहतरी की तरफ तेज़ी से बढ़ेंगे. लेकिन तीन सालों में ऐसा नहीं हुआ. एक ओर यहां राष्ट्रपति जिनपिंग मोदी के साथ थे तो दूसरी ओर अरुणाचल में कुछ चीनी सैनिकों ने घुसपैठ भी कर दी थी.
अब वन बेल्ट, वन रोड पर भी दबाव बना रहा है चीन
वहीं, चीन ने वन बेल्ट, वन रोड की शुरुआत कर दी है. पाकिस्तान को इस कॉरिडोर का हिस्सा बनाया गया है (CPEC).भारत इसका विरोध कर रहा है और शायद ही इस प्रोजेक्ट में शामिल हो. इसके बाद से चीन और भड़का है.
चीन का अड़ियल रवैया
पाकिस्तान से चीन की करीबी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भी भारत के लिए परेशानियां खड़ी कर रही हैं. NSG में भी. सुरक्षा परिषद में चीन बार-बार मसूद अज़हर को बचा लेता है. उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में अपना वीटो इस्तेमाल करता आया है.
मोदी और मनमोहन की चीन पॉलिसी में अंतर
मोदी ने मधुर शुरुआत की थी पर चीन पर कोई असर नहीं पड़ा. वहीं, पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की सरकार ने स्लो पॉलिसी अपनाई थी. मोदी ने सीमा विवाद सुलझाने के लिए नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल को कई बार चीन भेजा. वहां कमेटियां बनीं. लगातार बैठक हुई. पर कुछ ठोस नतीजे नहीं आए.
पड़ोसी देशों के बल पर भी परेशान करने की कोशिश
नेपाल-चीन का कनेक्शन भी भारत के लिए घातक साबित हो सकता है. इसके दो पहलू हैं. पहला नेपाल में भारत की कूटनीति की चौतरफा आलोचना हुई है. नेपाल में भारत पर मधेसी आंदोलन के ज़रिए वहां की राजनीति में दखल का आरोप लगा. भयावह भूकंप के बाद जिस तरह अपनी दी राहत को लेकर भारत अपनी ही पीठ थपथपाता नज़र आया वह भी भारत के खिलाफ गया. और अब चीन अपने विशालकाय रेल नेटवर्क को काठमांडू तक ले आएगा और जिस तरह तेज़ी से पहाड़ों को चीरते हुए तिब्बत में चीनियों को रेल नेटवर्क बिछाते देखा गया है, काठमांडू तक पहुंचने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.
एक उम्मीद दलाई लामा से भी थी कि चीन पर थोड़ा दबाव पड़ेगा, लेकिन दलाई लामा के तवांग दौरे के बाद चीन के विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया तीखी थी. कहा जाता है कि इस से नाराज होकर वहां के एक सीनियर मंत्री अपने तय दौरे पर भारत नहीं आए. पाकिस्तान के साथ दोस्ती और नेपाल से अपनी नजदीकियां बढ़ा रहा चीन हर तरफ से भारत को घेरने में लगा हुआ है. लेकिन चीन पर लगाम लगाने के लिए कुछ पुख्ता अब तक मोदी सरकार के पास नज़र नहीं आ रहा.
क्या हो सकता है?
अगर देखा जाए तो पिछले तीन सालों में मोदी सरकार ने नीतियां तो कई बनाई लेकिन रिश्ते बनाने में शायद चूक हो गई. विदेश यात्रा तो पीएम मोदी ने कई कीं लेकिन अपने पड़ोसियों का दिल जीतना शायद भूल गए. और इसी बात का फायदा चीन ने उठाया. और भारत को चारों ओर से घेरने की तैयारी कर ली. पूर्व से बांग्लादेश तो पश्चिम से पाकिस्तान और दक्षिण से श्रीलंका का दिल जीतने में चीन ने कोई कसर नहीं छोड़ी. श्रीलंका आर्थिक रूप से कमजोर माना जाता है,वहां चीन की मदद से दुनिया का सबसे बड़ा पोर्ट बनने जा रहा है. वहीं बांग्लादेश में भी चीन का भारी मात्रा में निवेश है. पाकिस्तान के साथ ड्रैगन के रिश्ते जगजाहिर हैं.
ये सारा तांडव पाकिस्तान और चीन की मिलीभगत मालूम पड़ रहा है. चीन हर हाल में भारत को गुमराह रखना चाहता था. इसलिए तो पहले 20 अरब डॉलर के निवेश का वादा किया और अब जंग का ऐलान. अब ऐसे में मोदी सरकार क्या कदम उठायेगी ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन खतरे की घंटी तो बज ही रही है.