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तीन तलाक बिल पर मोदी सरकार की राज्यसभा में आज अग्निपरीक्षा, कांग्रेस दिखाएगी अपनी ताकत

मोदी सरकार एक साथ तीन तलाक को गैर कानूनी और गैर जमानती अपराध बनाने वाले बिल को लोकसभा से पारित कराने के बाद अब इसको मंगलवार को राज्यसभा में पेश करेगी. हालांकि सरकार के लिए इस बिल को राज्यसभा से पारित कराना इतना आसान नहीं होगा.

फाइल फोटो फाइल फोटो
राम कृष्ण/बालकृष्ण
  • नई दिल्ली,
  • 02 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 12:06 AM IST

मोदी सरकार एक साथ तीन तलाक को गैर कानूनी और गैर जमानती अपराध बनाने वाले बिल को लोकसभा से पारित कराने के बाद अब इसको मंगलवार को राज्यसभा में पेश करेगी. हालांकि सरकार के लिए इस बिल को राज्यसभा से पारित कराना इतना आसान नहीं होगा. इस दौरान सरकार और विपक्षी दल आमने-सामने हो सकते हैं.

मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017 (The Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill) पर मोदी सरकार की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी. राज्यसभा में इस बिल का रास्ता उतना आसान नहीं है, जितना आसान लोकसभा में था. लिहाजा केंद्र सरकार ने अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर ली है और विपक्षी दलों से इस बारे में बात भी की गई है.

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सबसे बड़ी बात यह है कि लोकसभा में सरकार के पास जबरदस्त बहुमत था, जिसके दम पर उसने असदुद्दीन ओवैसी समेत इक्का-दुक्का सांसदों के विरोध को आसानी से दरकिनार कर दिया. हालांकि राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है और काफी कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इस मसले पर कांग्रेस का रुख क्या रहता है? वहीं, विधेयक पर आगे का रुख तय करने के लिए विपक्षी दल मंगलवार सुबह मिलने वाले हैं.

राहुल गांधी की छवि की चिंता से बीजेपी को फायदा

सरकार कुछ हद तक इस बात से राहत महसूस कर रही है कि गुजरात चुनाव में सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता अपनाने से कांग्रेस को फायदा हुआ है और वह तीन तलाक बिल को रोककर अपने इस इमेज को धराशायी नहीं करना चाहेगी. लोकसभा में जब यह बिल पारित हुआ, तब राहुल गांधी सदन में मौजूद नहीं थे. माना जा रहा है कि तीन तलाक बिल का विरोध करके राहुल गांधी अपनी छवि को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते हैं.

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बिल पर बैकफुट पर कांग्रेस

वैसे भी तीन तलाक बिल पर बहस के दौरान लोकसभा में जिस तरह से बार-बार शाहबानो मामले को लेकर कांग्रेस पर हमला हुआ और उसके नेताओं को नजरें नीची करके सुनना पड़ा, उसके बाद से कांग्रेस तीन तलाक को लेकर बहुत आक्रामक रुख अपनाने की हालत में नहीं दिखती.

कांग्रेस बिल को प्रवर समित के पास भेजने की करेगी मांग

इन सबके बावजूद हो सकता है कि कांग्रेस इस बिल से तुरंत तीन तलाक को गैर जमानती बनाने के प्रावधान को हटाने पर जोर डाले. लोकसभा में बहस के दौरान भी कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह बात कही थी, लेकिन राज्यसभा में हो सकता है कि कांग्रेस इस बात पर जोर देकर इस बिल को प्रवर समिति (select committee) के पास  के पास भेजने की मांग करे.

बिल पर विपक्षी दलों का यह है तर्क

लोकसभा में बहस के दौरान कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियों का यह तर्क था कि अगर तीन तलाक की वजह से पति को जेल भेज दिया जाएगा, तो बीवी को गुजारा भत्ता मिल पाना बेहद मुश्किल होगा, क्योंकि जेल में बंद शौहर किसी भी हालत में अपनी बीवी को गुजारा भत्ता नहीं दे पाएगा. इस दौरान यह भी तर्क दिया गया था कि शौहर को जेल भेज देने से सुलह की कोई उम्मीद नहीं रह जाएगी.

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इस सत्र में पारित करना हो सकता है मुश्किल

राज्यसभा में भी कोई पार्टी सीधे-सीधे तीन तलाक का समर्थन करके महिला विरोधी तो कहलाना पसंद नहीं करेगी, लेकिन इस बिल के प्रावधानों में कुछ नुक्स निकालकर इसमें संशोधन करने को कहेगी. हालांकि सरकार की मुश्किल यह है कि अगर इस बिल में कोई भी संशोधन मंजूर किया जाता है, तो इसे फिर से पास कराने के लिए लोकसभा भेजना होगा. वहीं, शीतकालीन सत्र पांच जनवरी को खत्म हो रहा है. इसलिए सरकार के पास ज्यादा वक्त नहीं है, लेकिन अगर बिल ऊपरी सदन की प्रवर समिति (select committee) के पास चला जाता है, तो फिर ये बिल इस सत्र में संसद से पारित नहीं हो पाएगा.

राज्यसभा में ऐसी है सत्तारूढ़ दल की हालत

राज्यसभा में बीजेपी का बहुमत नहीं है. ऐसे में बिल को पास कराने के लिए दूसरे दलों के साथ की जरूरत है. 245 सदस्यीय राज्यसभा में राजग के 88 सांसद (बीजेपी के 57 सांसद सहित), कांग्रेस के 57, सपा के 18, BJD के 8 सांसद, AIADMK के 13, तृणमूल कांग्रेस के 12 और NCP के 5 सांसद हैं. अगर सरकार को अपने सभी सहयोगी दलों का साथ मिल जाता है, तो भी बिल को पारित कराने के लिए कम से कम 35 और सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. इस बिल का बीजू जनता दल (BJD), AIADMK, सपा और तृणमूल कांग्रेस समेत कई राजनीतिक पार्टियां विरोध कर रही हैं.

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जल्दबाजी में बिल लाई सरकारः येचुरी

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि उनकी पार्टी तीन तलाक का विरोध करती है और इसका खात्मा चाहती है, लेकिन इस विधेयक में एक आपराधिक पहलू जोड़ दिया गया है. मुसलमानों में विवाह एक सिविल करार है और नया कानून इसमें एक आपराधिक पहलू जोड़ रहा है, जोकि गलत है. उन्होंने कहा, "भाजपा राजनैतिक लाभ और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस विधेयक को जल्दबाजी में लेकर आई है."

SC ने सरकार को कानून बनाने के लिए दिया था 6 माह का समय

सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को पहले ही असंवैधानिक करार दे चुकी है. 22 अगस्त को शीर्ष अदालत की पांच जजों की बेंच ने बहुमत से तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया था. साथ ही मोदी सरकार से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून बनाने को कहा था. लोकसभा में तीन तलाक बिल पर चर्चा के दौरान भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया.

ऐसा होगा तीन तलाक बिल

मोदी सरकार 'मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक-2017' नाम से इस विधेयक को लाई है. ये कानून सिर्फ तीन तलाक (INSTANT TALAQ, यानी तलाक-ए-बिद्दत) पर ही लागू होगा. इस कानून के बाद कोई भी मुस्लिम पुरुष अगर अपनी बीबी को तीन तलाक देगा, तो वो गैर-कानूनी होगा.

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इसके बाद से किसी भी स्वरूप में दिया गया तीन तलाक, वह चाहें मौखिक हो या लिखित हो और या फिर मैसेज के जरिए हो, अवैध होगा. जो भी तीन तलाक देगा, उसको तीन साल की सजा और जुर्माना हो सकता है यानी तीन तलाक देना गैर-जमानती और संज्ञेय ( Cognizable) अपराध होगा.

इसमें मजिस्ट्रेट तय करेगा कि कितना जुर्माना होगा. पीएम नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक पर कानून बनाने के लिए एक मंत्री समूह बनाया था, जिसमें राजनाथ सिंह, अरुण जेटली,  सुषमा स्वराज, रविशंकर प्रसाद, पीपी चौधरी और जितेंद्र सिंह शामिल थे.

तीन तलाक बिल में ये हैं प्रावधान

- एक साथ तीन बार तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) कहना गैरकानूनी होगा.

- ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध माना जाएगा.

- यह कानून सिर्फ 'तलाक ए बिद्दत' यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा.

- तलाक की पीड़िता अपने और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से अपील कर सकेगी.

- पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है. मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.

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- यह प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा है.

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