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उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने पर फैसले से पहले अदालत को बताएंगे: केंद्र

केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से कहा, 'मैं राष्ट्रपति शासन वापस लिए जाने पर कोई भी फैसला किए जाने से पहले अदालत को सूचित करूंगा.'

नैनीताल स्थि‍त हाई कोर्ट नैनीताल स्थि‍त हाई कोर्ट
स्‍वपनल सोनल/BHASHA
  • नैनीताल,
  • 07 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 10:01 AM IST

केंद्र ने गुरुवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट में शपथ पत्र दिया कि वह राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए कोई भी फैसला करने से पहले उसके पास आएगा. केंद्र ने यह बात कांग्रेस द्वारा सरकार गठन का पहला अधिकार उसे होने पर जोर दिए जाने के बाद कही.

केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कोर्ट से कहा, 'मैं राष्ट्रपति शासन वापस लिए जाने पर कोई भी फैसला किए जाने से पहले अदालत को सूचित करूंगा.' अदालत पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के अंतरिम आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने आशंका जताई कि राज्य में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार गठन का मार्ग प्रशस्त करने के लिए राष्ट्रपति शासन को हटाया जा सकता है.

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अपनी याचिका में रावत ने राज्यपाल को यह निर्देश देने की मांग की है कि अगर उनकी मुख्य याचिका के लंबित रहने के दौरान केंद्र राष्ट्रपति शासन को वापस लेने का कोई फैसला करता है तो पहले उन्हें सरकार बनाने को कहा जाना चाहिए.

रावत ने जताई आशंका
बर्खास्त मुख्यमंत्री ने यह भी आशंका जताई कि केंद्र प्रदेश बीजेपी के साथ मिलकर मामले के लंबित रहने के दौरान राष्ट्रपति शासन को वापस ले सकता है और उन्हें सरकार गठन का सही अवसर नहीं देकर उनकी याचिका को निर्थक बना सकता है. शुरुआत में वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मुख्य न्यायाधीश के एम जोसफ और न्यायमूर्ति वीके बिष्ट की पीठ से कहा कि अगर केंद्र अचानक राष्ट्रपति शासन वापस लेने और प्रदेश बीजेपी को सरकार गठन के लिए आमंत्रित करता है तो राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के खिलाफ मौजूदा याचिका निर्थक हो जाएगी.

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मौखिक दलील पर जताई आपत्ति
पीठ ने कहा, 'हमें वादकार के अधिकार की रक्षा करनी होगी.' सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने सिंघवी की मौखिक दलील पर आपत्ति जताई. उन्होंने कहा कि अदालत राजनैतिक प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई आदेश नहीं दे सकती. इसके अलावा इस तरह की मौखिक दलीलों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए. राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने को चुनौती देने वाले मामले के गुण-दोष पर दलील देने वाले सिंघवी ने शाम को एक अंतरिम आवेदन दाखिल किया, जिसमें राज्यपाल को यह निर्देश देने की मांग की गई कि अगर राष्ट्रपति शासन को वापस लिया जाता है तो पहले रावत को सरकार बनाने का न्योता मिलना चाहिए, न कि बीजेपी को.

किया गया हालिया आदेश का उल्लेख
रोहतगी ने रावत की दलील का जोरदार विरोध करते हुए कहा कि राज्यपाल को याचिका का पक्षकार नहीं बनाया जा सकता और बीजेपी यहां एक पक्ष नहीं है. रोहतगी ने कहा, 'संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत राज्यपाल के खिलाफ रोक नहीं हो सकती.' उन्होंने अरुणाचल प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश का उल्लेख किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने राज्यपाल को जारी नोटिस को वापस ले लिया था.

18 अप्रैल को अगली सुनवाई
उन्होंने यह भी कहा कि राजनैतिक प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई जा सकती और इसके अलावा अदालतों के पास घड़ी की सुई पीछे घुमाने की शक्ति है. दिन के अंत में पीठ ने मामले पर आगे की सुनवाई की तारीख 18 अप्रैल निर्धारित कर दी. पीठ ने कहा, 'क्या आप सरकार में किसी शीर्ष पदाधिकारी से बात कर हमें बता सकते हैं कि क्या चल रहा है.' पीठ ने विधानसभा में शक्ति परीक्षण से एक दिन पहले राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने पर प्रथम दृष्टया नाराजगी जताई.

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पीठ के मूड को भांपते हुए अटॉर्नी जनरल ने एक बयान दिया कि अगर राष्ट्रपति शासन को वापस लेने का कोई फैसला किया जाता है तो वह पहले अदालत के पास आएंगे.

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