
दावोस में सज रहा विश्व आर्थिक मंच (WEF) इस साल इतना अहम क्यों है? वैश्विक मंदी के छटने और अटलांटिक सागर के दोनों तरफ कूटनीतिक स्थिरता के मौहाल के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं फ्री मार्केट को केन्द्र में लाने के लिए तैयार हैं.
दरअसल लगभग एक दशक की वैश्विक सुस्ती के बाद भारत के लिए एक खास शुरुआत हो रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बर्फ से घिरे दावोस में विश्व आर्थिक मंच के सम्मेलन में एकत्र हुए दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों, मल्टीनैशनल कंपनियों के प्रमुखों से मिलने के लिए तैयार हैं. देश के सामने फ्री ट्रेड, नए निवेश समेत पुराने समझौतों की मियाद बढ़ाने के कई प्रस्ताव हैं. और इस बात का श्रेय हमें प्रधानमंत्री मोदी को देना होगा कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं की रुचि भारतीय बाजार में बढ़ी है.
हालांकि स्वदेशी दबाव के चलते मौजूदा समय तक मोदी सरकार की विदेशी ट्रेड नीति संकुचित रही है. अब विश्व समुदाय के सामने प्रधानमंत्री मोदी को न्यू इंडिया की न्यू ड्रेड पॉलिसी पर अपनी मुखर राय रखनी है. जिससे दावोस सम्मेलन में पहली बार शामिल होते हुए वह नए युग के बड़े फ्री ट्रेड समझौतों को भारत के पक्ष में कर सकें.
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इन नए फ्री ट्रेड समझौतों की संभावनाओं को हवा खुद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता संभालने के बाद ट्रांस पैसेफिक समझौते (टीपीपी) से बाहर निकल कर दी है. फिर ट्रंप ने पाकिस्तान को 1.9 बिलियन डॉलर की मदद को रोक दी जिसके महज एक हफ्ते बाद ही दिल्ली में अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने भारत-अमेरिका आर्थिक और सामरिक संबंधों के नए ब्लू प्रिंट को जारी किया.
गौरतलब है कि भारत में राजदूत नियुक्त होने से पहले जस्टर डोनाल्ड ट्रंप के डिप्टी इकोनॉमिक एडवाइजर के पद पर थे. राजदूत जस्टर ने कहा है कि अमेरिकी कंपनियों को चीन से कारोबार करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, लिहाजा एशिया क्षेत्र में कारोबार के लिए उन्हें नए ठिकानों की दरकार है. राजदूत जस्टर के मुताबिक एशिया-प्रशांत सागर क्षेत्र में अमेरिकी हितों को सुरक्षित करने के लिए भारत एक मजबूत विकल्प है.
इसके साथ ही व्हाइट हाउस ने भारत और अमेरिका के बीच नए फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का प्रस्ताव सामने किया है. फिलहाल अमेरिका के प्रस्ताव पर कारोबारी जगत में चर्चा हो रही है. लेकिन खासबात यह है कि यह पहला मौका है जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था को आधिकारिक तौर पर फ्री ट्रेड एग्रीमेंट का प्रस्ताव दिया है.
फिलहाल भारत और अमेरिका के बीच कोई फ्री ट्रेड एग्रीमेंट नहीं हैं और द्विपक्षीय कारोबार वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन के नियमों के तहत होता है. अमेरिका में महज 20 देशों के साथ फ्री ट्रेड समझौता किया है जिनमें कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, सिंगापुरस दक्षिण कोरिया और मेक्सिको शामिल हैं. फ्री ट्रेड समझौते से दो देशों के बीच व्यापार और निवेश बिना किसी बाधा के किया जाता है.
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भारत के साथ खास ट्रेड समझौता करने की कोशिश में डोनाल्ड ट्रंप अकेले नहीं हैं. प्रधानमंत्री मोदी के नए दोस्त बेंजमिन नेतन्याहू ने हाल के दौरे के बाद भारत के साथ फ्री ट्रेड समझौता करने की इच्छा जाहिर की है. अगले हफ्ते नई दिल्ली में होने वाली आसियान बैठक में भी सदस्य देशों की कोशिश फ्री ट्रेड का नया मसौदा तैयार करने की है. गौरतलब है कि भारत-आसियान फ्री ट्रेड समझौता बीते दो दशकों में सबसे सफल प्रयास रहा है.
वहीं फरवरी में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और मार्च में इमैनुअल मैकरॉन के भारत दौरे के दौरान दोनों देश लंबे समय से चल रही फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर बातचीत को निर्णायक स्तर पर पहुंचाने की कोशिश करेंगे. वहीं यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद यूके ने भी भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करने की कोशिशों के तेज कर दिया है. कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट कि रिपोर्ट के मुताबिक भारत-यूके फ्री ट्रेड एग्रीमेंटच से दोनों देशों के बीच द्वपक्षीय कारोबार में 26 फीसदी तक इजाफा देखने को मिलेगा.
लिहाजा भारतीय अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन उसके वैश्विकरण के समकालीन है. बीते 10-12 सालों की वैश्विक सुस्ती से वैश्विकरण को नुकसान के साथ-साथ भारत के विकास के लिए बेहतर नहीं रहा. बीते कुछ सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश दौरे खास रहे हैं स्वदेशी के दबाव के चलते उनकी सरकार ने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की दिशा में आगे कदम नहीं बढ़ाया है. यहां तक द्वपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने के अहम फैसले भी लिए जानें हैं. इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि मोदी सरकार के कार्यकाल के तीन साल के दौरान देश में एक भी फ्री ट्रेड समझौता नहीं किया है.
अब लड़खड़ा रही भारतीय अर्थव्यवस्था को नए निवेश और टेक्नोलॉजी की जरूरत है. वहीं भारतीय बाजार को आक्रामक करने के अलावा आर्थिक तेजी लेनी की उम्मीद भी कम है. लिहाजा यदि प्रधानमंत्री मोदी वाकई फ्री मार्केट में विश्वास रखते हैं तो अर्थव्यवस्था के दौड़ने का समय आ चुका है और विश्व मंच उनके लिए तैयार है.