
संसद का मॉनसूत्र सत्र इस बार काफी अहम है क्योंकि अहम विधेयकों के पारित होने के अलावा इस सत्र में राज्यसभा के उपसभापति पद का चुनाव भी होना है. उपसभापति के तौर पर कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का कार्यकाल समाप्त हो चुका है. ऐसे में यह चुनाव काफी अहम माना जा रहा है क्योंकि 41 साल से यह पद कांग्रेस के पास रहा है लेकिन इस बार कोई गैर कांग्रेसी इस पद को संभाल सकता है.
एनडीए की ओर से अकाली नेता नरेश गुजराल को इस पद के लिए उतारा जा सकता है वहीं विपक्षी खेमे में उम्मीदवार के नाम पर एक राय नहीं बन सकी है. बीजेपी इस पद के लिए अपना अलग उम्मीदवार भी ला सकती है.
टीएमसी उपसभापति के लिए वरिष्ठ सांसद सुखेन्दु शेखर राय को मैदान में उतार सकती है लेकिन विपक्षी दलों के सहयोग के बगैर टीएमसी की जीत मुमकिन नहीं है. टीएमसी के पास राज्यसभा में 16 सांसद हैं ऐसे में जीत के लिए 123 का जादुई आंकड़ा छूना पार्टी के बस की बात नहीं है. अब टीएमसी की नजरें कांग्रेस के पैंतरे पर हैं क्योंकि विपक्षी दलों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है और उसके पास 50 सांसद हैं. दूसरी ओर अगर कांग्रेस अपना उम्मीदवार खड़ा करती है तो वह विपक्षी दलों की नाराजगी मोल ले लेगी.
मजबूत है एनडीए खेमा
मोदी विरोधी खेमे को अगर जीतना है तो 16 विपक्षी दलों का एक साथ होना जरूरी है. राज्यसभा में 69 सदस्यों के साथ बीजेपी सबसे बड़ा दल है और एनडीए को मिलाकर यह आंकड़ा 108 के करीब पहुंच जाता है. इस एनडीए में शिवसेना (3) और मनोनीत सदस्य (3) भी शामिल हैं अगर वह छिटकते हैं तो एनडीए उम्मीदवार की जीत भी मुश्किल हो सकती है. बाकी एआईएडीएमके के 13, जेडीयू के 6, अकाली दल के 3 सांसदों के अलावा 6 निर्दलीय सांसद एनडीए के खेमे में शामिल हैं.
विपक्षी एकता का टेस्ट
राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी और मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी करने वाले संयुक्त विपक्ष के लिए यह चुनाव की लिटमस टेस्ट से कम नहीं है. कर्नाटक के नतीजे और उसके बाद कैराना उपचुनाव में विपक्ष दलों का साथ रंग लाया और वहां बीजेपी को शिकस्त मिली. लेकिन संसद में बीजेपी को हराने के लिए सभी दलों का साथ आना जरूरी है. सिर्फ 2 या 3 दलों के साथ आने भर से एनडीए के मजबूत खेमे को नहीं हराया जा सकता.
(फोटो: Getty Images)
कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के खिलाफ संयुक्त विपक्ष की अगुवाई करती दिख रही है. इस बड़ी कवायद के लिए उसे संसद के भीतर उपसभापति पद के लिए समझौता करना पड़ सकता है. हालांकि इस पद पर 4 दशकों से कांग्रेस का कब्जा रहा है लेकिन अगर वह सदन के भीतर टीएमसी को सपोर्ट नहीं करती है तो संसद के बाहर विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिशों को झटका लग सकता है. इसके अलावा टीएमसी के साथ खड़े टीडीपी और टीआरएस जैसे दल भी संयुक्त विपक्ष से झिटक सकते हैं.
साथ आने को तैयार ममता
ममता बनर्जी ने भी बीते दिनों इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू में इस बात के साफ संकेत दिए थे कि वह बीजेपी को हराने के लिए कांग्रेस के साथ आ सकती है. उन्होंने कहा है कि उन्हें कांग्रेस के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं है और सभी विपक्षी दलों को एक साथ आने की जरूरत है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उनसे काफी जूनियर हैं और उनके साथ काम करने का अनुभव उन्हें नहीं है.
एक तरफ पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की धुर विरोधी ममता बनर्जी केंद्र में कांग्रेस से साथ आने को तैयार दिख रही हैं दूसरी ओर अगर कांग्रेस राज्यसभा में उनकी पार्टी का समर्थन नहीं करती है तो इससे विपक्षी खेमे में अच्छा संदेश नहीं जाएगा. इसके अलावा बीजेपी के लिए भी विपक्षी एकता पर निशाना साधना और आसान होगा. सूत्रों के मुताबिक टीएमसी ने चुनाव में समर्थन के लिए कांग्रेस नेता अहमद पटेल से बातचीत की है और इस बात के संकेत भी मिले हैं कि कांग्रेस गैर बीजेपी उम्मीदवार को समर्थन कर सकती है. लेकिन कांग्रेस का असल रुख तो चुनाव के दिन ही तय होगा.