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मॉनसून सत्र : क्या संयुक्त विपक्ष को हराने के लिए समझौता करेगी मोदी सरकार?

गोरखपुर, फूलपुर चुनावों के बाद कैराना लोकसभा उप चुनावों में साझा विपक्ष की ताकत के आगे भाजपा को हार का समना करना पड़ा उसके बाद राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है.

संसद संसद
विजय रावत
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 9:22 PM IST

संसद के मॉनसून सत्र की घोषणा हो चुकी है. संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने सोमवार को ये घोषणा की है कि मॉनसून सत्र 18 जुलाई से 10 अगस्त तक चलेगा. 18 कार्यदिवसों में चलने वाले इस सत्र में कई अहम विधेयकों के अलावा जिस घटना पर सबकी नज़र टिकी है वो है राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव. क्योंकि एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके खिलाफ एकजुट विपक्ष के बीच जोर आजमाइश होगी.

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उपसभापति का होना है चुनाव

गोरखपुर, फूलपुर चुनावों के बाद कैराना लोकसभा उप चुनावों में साझा विपक्ष की ताकत के आगे भाजपा को हार का समना करना पड़ा उसके बाद राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है. आपको बता दें कि राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को समाप्त हो रहा है लिहाजा जैसे ही संसद खुलेगी उपसभापति का चुनाव अनिवार्य हो जाएगा. 245 सदस्यीय उच्च सदन में जीतने वाले उम्मीदवार को 122 मतों की जरूरत होगी.

BJP बड़ी पार्टी, लेकिन NDA को बहुमत नहीं

राज्यसभा के संचालन में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए भाजपा की पूरी ताकत इस पद पर अपने उम्मीदवार को जिताने में लगी है. राज्यसभा में 69 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है लेकिन बदलते हालात पर नज़र डालें तो तेलुगू देशम पार्टी अब एनडीए का हिस्सा नहीं है और शिवसेना से भी हाल के समय में भाजपा के रिश्ते खराब हो चुके हैं. ऐसे में राज्यसभा में अभी भाजपा के पास अपना उपसभापति बनाने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है. लिहाजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी को इस मामले में पर्याप्त समर्थन हासिल करने के लिए कुछ राजनीतिक समझौते करने पड़ सकते हैं.

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BJP के पास हैं ये दो विकल्प

भाजपा के पास एक विकल्प ये है कि भाजपा ये पद टीआरएस या वाईएसआर कांग्रेस को दे दे. इस स्थिति में राज्यसभा के सभापति और उपसभापति दोनों पद आंध्र या तेलंगाना के पास चले जाएंगे. एक विकल्प ये भी है कि भाजपा ये पद अन्ना द्रमुक को देने की पेशकश करे जिसके पास 13 सांसद हैं. वैसे मोदी-शाह की कार्यशैली किसी छोटे दल के लिए एक इंच राजनैतिक जमीन भी छोड़ने की नहीं रही है.

संयुक्त विपक्ष संख्या बल में है भारी

राज्यसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की सदस्य संख्या 51 रह गई है. लेकिन विपक्षी एकता के बदले हालात में तृणमूल कांग्रेस के 13, समाजवादी पार्टी के 6, टीडीपी के 6, डीएमके के 4, बसपा के 4, एनसीपी के 4, माकपा 4,  भाकपा 1 व अन्य गैर भाजपा पार्टियों की सदस्य संख्या को मिला दें तो वे भाजपा पर भारी पड़ते नज़र आ रहे हैं. अगर 9 सदस्यों वाली बीजू जनता दल और शिवसेना अपनी तटस्थता बनाए रखते हैं तो विपक्ष एक बार फिर मोदी-शाह की जोड़ी को पटखनी दे सकता है.

केजरीवाल के दांव से भी बदला गणित

कांग्रेस या भाजपा की ओर से राज्यसभा के उपसभापति का उम्मीदवार किसे बनाया जाएगा इसे लेकर अटकलों का बाज़ार गर्म है. वहीं आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल इस मामले में संकेत दे चुके हैं कि वे किसी गैर कांग्रेसी और गैर भाजपाई उम्मीदवार का समर्थन कर सकते हैं. केजरीवाल के इस दांव और अभी हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल और केजरीवाल के बीच गतिरोध के दौरान चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों का उनके समर्थन में सामने आने के बाद क्षेत्रीय दलों में आस जगी है कि जिस तरह कर्नाटक में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कम सीटों वाली जेडी (एस) के एच डी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया वैसा ही कुछ इस बार भी हो जाए और बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाए.

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