
बसपा-सपा ने मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठबंधन से इनकार कर दिया है. वहीं, कांग्रेस भी एक सोची समझी रणनीति के तहत इन दोनों दलों के आगे झुकने बजाय अपने भविष्य की सियासत को देख रही है. यही वजह है कि तीनों राज्यों में कांग्रेस बिना किसी गठबंधन के सियासी रणभूमि में बीजेपी से मुकाबला करने उतरी है.
दरअसल, इन तीनों राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है. मौजूदा समय में तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है. जबकि बसपा का कुछ हद तक आधार है, लेकिन सपा का कोई खास वजूद नहीं है. ऐसे में कांग्रेस इनके साथ गठबंधन करके इन दलों को जड़ें जमाने का मौका नहीं देना चाहती है. इसीलिए कांग्रेस गठबंधन को लेकर इनके सामने झुकने को तैयार नहीं है.
हालांकि, कांग्रेस चाहती थी कि वह बसपा के साथ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गठबंधन करे. दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच बातचीत भी चल रही थी. मायावती ने दोनों राज्यों में इतनी ज्यादा सीटों की डिमांड रख दी थी, जिस पर कांग्रेस रजामंद नहीं हो सकी. सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में बसपा को 10 और सपा को तीन सीटें देने की पेशकश की थी. इसके अलावा कांग्रेस छत्तीसगढ़ में बसपा को 3 सीटें देना चाहती थी, जबकि मायावती 10 सीटें मांग रही थी.
कांग्रेस द्वारा सपा-बसपा को कम तवज्जो देने के पीछे एक बड़ी वजह ये मानी जा रही है कि पिछले तीन विधानसभा चुनाव इन दोनों पार्टियों मध्य प्रदेश में बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा सकी हैं. बसपा का आधार लगातार घटता जा रहा है. बसपा कभी मध्य प्रदेश में 11 विधायक हुआ करते थे और 2 सांसद. मौजूदा समय में बसपा महज विधायकों पर सिमट गई गई है.
मध्य प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 227 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें से 194 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. बसपा 6.42 फीसदी वोट के साथ महज चार सीट जीत सकी थी. वहीं, सपा ने 164 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 161 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हो गई थी. सपा को महज 0.51 फीसदी वोट मिला था. जबकि कांग्रेस को 36.38 फीसदी वोट मिले थे.
राजस्थान में भी बसपा लगातार कमजोर हुई है. 2013 के विधानसभा चुनाव में 3.4% वोट के साथ बसपा 3 सीटें जीत पाई थी. जबकि 2008 में बसपा ने 6 सीटें जीतने के साथ 7.6 फीसदी वोट हासिल किए थे. सपा को 1.40 फीसदी वोट 2013 में मिले थे. कांग्रेस को 33.1% फीसदी वोट मिले थे.
छत्तीसगढ़ में बसपा का वोट शेयर और सीटें घटी हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में बसपा 4.5 फीसदी वोट के साथ 1 सीट जीत सकी थी. जबकि इससे पहले उसके पास दो विधायक थे. वहीं सपा को 0.64 फीसदी वोट मिले थे.
दरअसल, कांग्रेस इस बात को मानकर चल रही है कि तीन राज्यों में बीजेपी के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर है. ऐसे में इसका सीधा फायदा सपा-बसपा के बजाय उसे मिलेगा. इसी के मद्देनजर कांग्रेस सहयोगी दलों के सामने झुकने को तैयार नहीं है. इसके बजाय कांग्रेस दलित, ओबीसी और आदिवासी नेताओं को अपने साथ जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है.
कांग्रेस रणनीतिकार इस बात को भी मानकर चल रहे हैं कि विधानसभा चुनाव में अगर सपा-बसपा को ज्यादा सीटें दी गई तो लोकसभा चुनाव वो बड़ी डिमांड रखेंगे. इसके अलावा तीनों राज्य की सियासी जंग कांग्रेस फतह करती है तो देश में उसके पक्ष में माहौल बनेगा. इसके बाद विपक्षी दलों के बीच अपनी शर्तों पर समझौता करेगी और सहयोगी दलों को उसकी बात तवज्जो देना मजबूरी बन जाएगा.
हालांकि कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि अगले साल होने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले महागठबंधन खड़ा होगा और यूपी के दोनों प्रमुख दल इसका हिस्सा होंगे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम वीरप्पा मोइली ने मंगलवार को कहा कि राज्य के चुनावों में पार्टियों की अपना बाध्याताएं होती हैं. हमारी प्रमुख इच्छा लोकसभा चुनाव में विपक्ष को एकजुट देखने की है और हमें उम्मीद है कि इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे. भरोसा है कि सपा और बसपा इस महागठबंधन का हिस्सा होंगी.