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ऊंची दुकान, फीके पकवान

'केयर रेटिंग्स' के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का सवाल था, ''यह स्कीम मौजूदा स्कीमों से कितनी ज्यादा प्रभावशाली है? क्या इससे एमएसएमई क्षेत्र को ज्यादा ऋण मिल सकेगा? नई घोषणा और मौजूदा नीतियों में अंतर बहुत मामूली है.'

इलस्ट्रेशनः सिद्धांत जुमडे इलस्ट्रेशनः सिद्धांत जुमडे
संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
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  • 12 नवंबर 2018,
  • अपडेटेड 5:39 PM IST

एक नाटकीय घोषणा में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 नवंबर को कहा कि लघु, छोटे और मंझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए अब से ठीक 59 मिनट में ऑनलाइन ऋण मंजूर कर दिए जाएंगे और ई-डिस्काउंटिंग प्लेटफॉर्म के जरिए उनके नकदी प्रवाह को सुनिश्चित किया जाएगा. हालांकि, विशेषज्ञों को डर है कि जिसे एक दूरगामी पहल के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है, वह दरअसल टांय-टांय फिस्स हो सकती है क्योंकि कर्जदाता इतनी तेजी से अमल करने से हिचकेंगे.

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'केयर रेटिंग्स' के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का सवाल था, ''यह स्कीम मौजूदा स्कीमों से कितनी ज्यादा प्रभावशाली है? क्या इससे एमएसएमई क्षेत्र को ज्यादा ऋण मिल सकेगा? नई घोषणा और मौजूदा नीतियों में अंतर बहुत मामूली है.'

एमएसएमई पैकेज में सरकारी इंस्पेक्टरों से उत्पीडऩ से आजादी, पंजीकृत उपक्रमों के लिए जीएसटी पोर्टल के जरिए लोन, लोन पर ज्यादा ब्याज रियायत (मौजूदा 3 फीसदी के बजाए 5 फीसदी) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए किसी महिला द्वारा संचालित एमएसएमई से अनिवार्य खरीद (कुल खरीद का 3 फीसदी तक) सरीखे कई वादे शामिल हैं. तकरीबन 12 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले और करीब 6.5 करोड़ की तादाद वाले एमएसएमई क्षेत्र के लिए ये सारे कदम उम्मीद की किरण के रूप में नजर आने चाहिए थे.

नवंबर 2016 में नोटबंदी और फिर कुछ ही महीने बाद जीएसटी को लागू कर दिए जाने से इस क्षेत्र के पास कार्यशील पूंजी की खासी तंगी हो गई थी. फिर जब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने डूबत कर्जों के पुनर्भुगतान को लेकर मानक कड़े कर दिए तब तो ऋण मिलना और भी दूभर हो गया.

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भारतीय लघु, छोटे और मध्यम उद्यम परिसंघ के महासचिव अनिल भारद्वाज का कहना था, 'यह एक गैस चैंबर में होने सरीखा है.' उर्जित पटेल के रिजर्व बैंक का कार्यभार संभालने से पहले एमएसएमई केंद्रीय बैंक के साथ इस कोशिश में लगे थे कि उन्हें भी ऋण की पुनर्संरचना के उसी तरह के विकल्प मिल जाएं, जैसे कि बड़े व्यवसायों को मिलते हैं. दो साल गुजरने के बाद, एमएसएमई के लिए धंधा करना तो आसान हुआ है लेकिन कार्यशील पूंजी को लेकर उनकी परेशानियों का कोई समाधान नजर नहीं आ रहा है.

एक घंटे से भी कम समय में 1 करोड़ रुपए तक के कर्ज को ऑनलाइन मंजूर कर देने के वादे को लेकर भी लोगों में काफी संशय है. भारद्वाज कहते हैं, 'यह इतना आसान भी नहीं होगा. उसमें कई सारी शर्तें लगी होंगी. ऋण की मंजूरी मिल जाने और उसका वितरण हो जाने के दरम्यान काफी अंतर है.'

कुल 500 करोड़ रु. से ज्यादा की बिक्री वाले व्यवसायों को ई-डिस्काउंटिंग प्लेटफॉर्म पर उनके वेंडर्स के बिलों की घोषणा करनी होती है.

यह एमएसएमई के लिए काफी उत्साहजनक होगा क्योंकि छोटे वेंडर्स उन्हें देय राशि के आधार पर कर्जदाताओं के फंड तक पहुंच बना सकेंगे. एमएसएमई से आपूर्ति लेने वाले व्यवसाय अगर भुगतान में 45 दिन से ज्यादा की देरी करते हैं तो उन्हें इसका ब्योरा कंपनी रजिस्ट्रार को देना होता है. इसके अलावा, सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों के लिए एमएसएमई से खरीद की अनिवार्यता को भी पहले के 20 फीसदी से बढ़ाकर 25 फीसदी कर दिया गया है.

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