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बिहार: एक स्कूल जिसकी दीवारों पर तैरती हैं मछलियां

जिस राज्य के सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ने के बजाय मिड डे मील खाने आते हों, उसी राज्य में एक स्कूल ऐसा भी है जहां दाखिले के लिए स्टूडेंट्स और अभिभावक मारामारी करते हैं. जानिए इस स्‍कूल में ऐसा क्‍या है खास.

Bihar Primary school Bihar Primary school
स्नेहा
  • गया ,
  • 05 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 7:26 PM IST

एक ऐसे राज्य में जहां की शिक्षा व्यवस्था इस कदर चरमरा गई हो कि बच्चे स्कूल जाने से कतराते हों. जिस राज्य की साक्षरता दर पूरे देश में सबसे कम हो. जहां बच्चे महज मिड डे मील के लिए स्कूल आते-जाते हों. उसी राज्य में एक ऐसा भी स्कूल है जहां बच्चे और उनके अभिभावक दाखिले के लिए मारामारी कर रहे हैं.यह स्कूल पूरे देश के लिए एक नजीर बन गया है क्‍योंकि इसने साबित कर दिया है कि न्यूनतम प्रयास से स्कूल की तस्वीर और तकदीर बदली जा सकती है.

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कहां है यह स्‍कूल:
बिहार के गया जिले में एक सुजाता नामक गांव है. इसी गांव में एक स्कूल है जिसे निरंजना पब्लिक वेलफेयर स्कूल के नाम से जाना जाता है. इस गांव में सन् 2006 से ही 'वॉल आर्ट फेस्टिवल' का आयोजन किया जा रहा है. इस फेस्टिवल के तहत जापान और भारत के कलाकार हर साल तीन सप्ताह तक साथ मिल कर स्कूल की दीवारों को सजाने-संवारने का काम करते हैं. इसके अलावा वे यहां के स्टूडेंट्स और शिक्षकों के साथ मिल कर वर्कशॉप भी लगाते हैं.

कैसे हुई शुरुआत?
हमने आपको इस स्कूल के बारे में इतना कुछ बता दिया है तो जाहिर है कि आपकी उत्सुकता भी बढ़ गई होगी. दरअसल, इस स्कूल और मुहिम की शुरुआत जापान के Tokyo Gakugei University के 50 स्टूडेंट्स ने साल 2006 में की थी. ये सारे स्टूडेंट्स तब भारत के गैर सरकारी संगठनों (NGO) में पार्ट टाइम नौकरी कर रहे थे. इसी दौरान उन्हें इस बात का आभास हुआ कि बिहार प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा की स्थिति बद से बदतर है. इसी दुर्व्यवस्था से लड़ने के लिए उन्होंने बोधगया के नजदीक इस स्कूल को स्थापित करने का प्लान किया, और स्टूडेंट्स को स्कूल तक लाने के लिए उन्होंने मड पेंटिग्स (मिट्टी से दीवारों पर चित्र बनना) बनाने का निर्णय लिया. इस फेस्टिवल के दौरान वे दीवारों को ही कैनवस के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.

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यह स्कूल नर्सरी से कक्षा 7 तक चलता है और इस स्कूल में आज 400 स्टूडेंट्स रजिस्टर हैं. इस स्कूल की बेहतरी के लिए अब विदेश से भी पैसे आ रहे हैं. इस तरह के उदाहरण सुखद तो हैं ही साथ ही वे इस बात को भी सुनिश्चित करते हैं कि सकारात्मक पहल से दुर्व्यवस्था को भी चुनौती भी दी जा सकती है और बदलाव भी किया जा सकता है.

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