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कभी तिलक के लिए लड़ा था मुकदमा, बंटवारे से AMU बवाल तक विवादों में रहे जिन्ना

जिन्ना 1947 में हिंदुस्तान के बंटवारे से तीन दशक पहले कुछ और थे.

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
प्रियंका शर्मा
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  • 05 मई 2018,
  • अपडेटेड 2:16 PM IST

अलीगढ़ मुस्‍ल‍िम यूनिवर्स‍िटी में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर पर जारी घमासान रुकने का नाम नहीं ले रहा है.  यूनिवर्सिटी के छात्रों ने शनिवार रात 12 बजे तक इंटरनेट पूरी तरह बंद कर प्रदर्शन किया.

बताया जाता है कि जिन्ना की जिद की वजह 1947 में देश बंट गया. आज जिन्ना को लेकर दिल्ली से AMU तक बवाल मचा हुआ है. उनके बारे में कहा जाता है कि वह 1947 में हिंदुस्तान के बंटवारे से तीन दशक पहले  कुछ और थे. उस जिन्ना में देश के लिए लड़ने और अंग्रेजों को भारत से हटाने का जज्बा था.

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उस समय जिन्ना के भीतर देश के लिए लड़ने और अंग्रेजों को भारत से हटाने का जज्बा था. इसमें कांग्रेस के जिस नेता से जिन्ना सबसे ज्यादा प्रभावित थे, वो थे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक थे. जब क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी की फांसी की सजा हुई तो तिलक ने अपने अखबार केसरी में तुरंत स्वराज की मांग उठाई थी.

इस पर अंग्रेजों ने तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया जिसमें उनकी तरफ से जिन्ना ही वकालत कर रहे थे. लेकिन जिन्ना तिलक को बचा नहीं पाए और वो राजद्रोह के मामले में म्यांमार के मांडले जेल में 1908 से 1914 तक छह साल तक कैद रहे.

लेकिन दो साल बाद जब अंग्रेजों ने एक बार फिर जिन्ना पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया तो जिन्ना फिर से उनके वकील बने और इस बार उन्होंने तिलक को बचा भी लिया.

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80 साल से खामोशी में टंगी जिन्ना की एक तस्वीर पर खदबदाती सियासत

इसके बाद तिलक और जिन्ना के रिश्तों में इतनी मजबूती आई कि उसी साल यानी 1916 में ही दोनों के बीच तिलक जिन्ना पैक्ट हुआ.  उसमें ये फैसला हुआ कि हिंदू मुस्लिम एकता के लिए दोनों कौम पूरी ताकत झोंकेंगे और उसी ताकत के साथ अंग्रेजों का मुकाबला करेंगे.

लेकिन ये काम भी अधूरा रह गया. फैसल के चार साल बाद 1920 में तिलक की मृत्यु हो गई और जिन्ना धीरे धीरे कांग्रेस की राजनीति से दूर होते चले गए. जिसके बाद जिन्ना भारत विभाजन के सबसे बड़े कारक बने.

क्या है पूरा मामला

विवाद की शुरुआत अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने AMU के कुलपति तारिक मंसूर को लिखे अपने पत्र में विश्वविद्यालय छात्रसंघ के कार्यालय की दीवारों पर पाकिस्तान के संस्थापक की तस्वीर लगे होने पर आपत्ति जताई थी. विश्वविद्यालय के प्रवक्ता शाफे किदवई ने दशकों से लटकी जिन्ना की तस्वीर का बचाव किया और कहा कि जिन्ना विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्य थे और उन्हें छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गई थी.

बता दें, हिंदुस्तान में शिक्षा का एक अहम गढ़ एएमयू आजकल इस नफरत की आंच पर उबल रहा है कि जिन्ना की तस्वीर यहां रहनी चाहिए या नहीं.

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जिन्‍ना के बाद अलीगढ़ में एक और तस्‍वीर पर विवाद, छात्रों ने फोटोग्राफर को पीटा!

1936 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मानसिक बंटवारे की लकीर जिन्ना ने खींच दी थी. उसके दो साल बाद अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की इस दरोदीवार पर ये तस्वीर लगी. उसके 9 साल बाद ही देश को आजादी मिल गई और तस्वीर वाला ये चेहरा पाकिस्तान बनाकर वहां का गवर्नर जनरल बनकर चला गया. लेकिन 80 साल से खामोशी में टंगी इस तस्वीर पर अब फिजाएं चीखने लगी हैं.

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