
मशहूर कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव ने मौजूदा दैर में ह्यूमर की स्थिति को लेकर चिंता जाहिर की. एक किस्सा साझा करते हुए उन्होंने कहा- हमारा समाज इस तरह का है कि बहू के हंसने पर उसे सास से फटकार मिलती है.
राजू ने कहा, 'पहले के समय में ऐसा होता था यहां तक की आज भी कई जगह होता है कि अगर बहू जोर से हंस रही है तो सास उसे डांटती है. कहती है कि तुम्हे शर्म नहीं आ रही है. तुम्हारे ससुर उस कमरे में बैठे हैं और तुम इतना जोर से हंस रही हो. लोग हंसने को बैड मैनर्स मानते हैं. उन लोगों की सोच ये है कि हंसना बुरी बात है.'
मंगलवार को आजतक के मुंबई मंथन 2018 में 'कहां गया सेन्स ऑफ ह्यूमर' में राजू श्रीवास्तव ने ये बातें कही. इस सत्र का संचालन निधि अस्थाना ने किया. इस दौरान महशूर अभिनेता और निर्देशक शेखर सुमन भी मौजूद रहे.
ह्यूमर में बदलाव को लेकर क्या सोचते हैं राजू श्रीवास्तव
ह्यूमर में बदलाव पर राजू ने कहा, "अपने देश में हंसी को सबसे देर में स्वीकार किया गया. पुराणों में जाए तो आप देखेंगे कि रावण की जब एंट्री होती है तो ठहाकों के साथ एंट्री होती है. उसके राक्षस भी हंसते हुए एंट्री करते हैं. गब्बर भी हंसता है और मोगम्बो भी हंसता है. शायद लोग इसलिए नहीं हंसते कि हंसने का काम विलेन का होता है.""लेकिन ऐसा नहीं है. खुलकर हंसना चाहिए. आजकल जगह जगह लॉफ्टर क्लब हो गए हैं. हंसना जरूरी है. मैंने देखा है पार्कों में लोग नकली हंसते हैं. नकली हंसी हंसाने से फायदा है तो सोचिए असली हंसी में कितना फायदा होगा. मैंने ये भी कहा है कि हमेशा हंसने हसाने से काम नहीं चलता है. गंभीरता भी चाहिए. ये भी जरूरी है."
"पहले संयुक्त परिवार परिवार होते थे तो ज्यादा मजा आता था. चाचा ने कोई बात कर दी तो मजा आ रहा है. वो नेचुरल हंसी, गुम हो रही है. कई टीवी शोज अच्छे हैं. लेकिन जल्दी बनाने की होड़ में तमाम चीजें छूट रही हैं."
मोबाइल युग में हंसना भूल गए लोग
राजू श्रीवास्तव ने कहा, "इस दौर में कॉमेडी का विनाश भी है और विकास भी. आजकल सब अकेले ठहाका लगा तहे हैं. ठहाका क्या लगा रहे हैं दरअसल, मुस्कुरा रहे हैं. संयुक्त परिवार अब रहे नहीं. लोग मोबाइल देखकर मुस्कुरा रहे हैं. ठहाका लोगों के लिए अब गम हो गया है.""दुख की बात है कि देश में अमीर लोग खुल कर नहीं हंसते. अपनी हंसी रोकते रहते हैं. हंसी की बात कहने वाला उनसे ज्यादा शक्तिशाली है तो हसेंगे, लेकिन किसी साधारण के कहने पर नहीं हंसते. ऐसे लोग तो घर में भी प्रोटोकॉल लगा कर चलते हैं."
"पिछले दिनों मैं आर्मी के बीच था. मैंने एक जोक सुनाया तो सबसे पहले कर्नल हंसे. फिर उनके जूनियर अफसर और फिर सारे जवान हंसे. एक जोक के लिए पंद्रह मिनट लगता था."