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शायरी और स्माइली. अभिव्यक्ति की दो अलग-अलग विधाएं. अलग-अलग काल की. एक परंपरागत होने के ठप्पे से गुजर रही है तो दूसरी आधुनिक परंपरा ही कही जा रही है. एजेंडा आज तक के दूसरे दिन शनिवार को इन्हीं दोनों विधाओं पर तफसील से बात हुई. वह भी मशहूर शायर मुनव्वर राना, इस दौर के कवि कुमार विश्वास, अभिनेता अन्नू कपूर और लेखक अमीश त्रिपाठी के बीच.
शायरी बनाम स्माइली
चर्चा का विषय था- शायरी बनाम स्माइली. इस बातचीत के पीछे की मंशा थी यह जानना कि मोबाइलों के दौर में क्या अभिव्यक्ति का अंदाज बदला है? क्या प्यार मोहब्बत की बातों में नज्मों की जगह स्माइली ने ली है? बात मोबाइल के दौर की हुई तो उदय प्रताप का यह शेर आना लाजिमी था.
हर फैसला होता नहीं सिक्का उछाल के, ये दिल का मामला है जरा देखभाल के.
मोबाइलों के दौर के आशिक को क्या पता, रखते थे कभी खत में कलेजा निकाल के.
बात इसी से शुरू हुई और इसी बातचीत में स्माइली की परिभाषा भी गढ़ ली गई.
स्माइली झलक, शायरी झांकी
अन्नू कपूर ने कहा कि स्माइली परिवर्तन है. स्माइली सिर्फ झलक है और शायरी झांकी है. इसी परिभाषा को मुनव्वर ने विस्तार दिया और बोले- जब शब्द कम पड़ने लगते हैं तो स्माइली की जरूरत पड़ती है. कुमार विश्वास ने स्माइली की सीमाएं भी बता दी. कहा- जब किसी के घर में मौत हो जाए तो स्माइली वहां काम नहीं आती. बात अब बदलते हुए अंदाज-ए-बयां पर आ टिकी. कहने का वह तरीका जिसमें 144 कैरेक्टर में हर बात कह देने की चुनौती है. हालांकि अन्नू कपूर ने कहा कि फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सएप के जमाने में लड़के शेर में अभिव्यक्त कर रहे हैं.
यह बदलाव कितना सार्थक
बात जब फेसबुक और वॉट्सएप की आई तो कुमार विश्वास ने हल्के और हल्के-फुल्के साहित्य के बीच की महीन लाइन दिखाने का भी प्रयास किया. इसी चर्चा में दो उदाहरण आए. एक- जब सलमान खान रिहा हुए तो उनके और आसाराम को जोड़कर रचा गया वह शेर, जिसमें आसाराम की रिहाई मांगी गई है. और दूसरा- इकबाल साहब का शेर कि ठहरी-ठहरी सी तबीयत में रवानी आई, इतनी आसानी से मिलती नहीं फन की दौलत, ढल गयी उम्र तो गजलों पे जवानी आई. मुनव्वर ने भी इसमें जोड़ा कि मौसम में खुनकी है, आगे मर्जी उनकी है. इशारा साफ था, अभिव्यक्ति सफल हुई और वॉट्सएप मैसेज के साथ भेजी स्माइली यहां नाकाम हो गई, हल्की हो गई.
स्माइली का श्रृंगार हो, अलंकार हो
अमीश त्रिपाठी ने स्माइली की ताकत का अहसास कराते हुए कहा कि वह आज के दौर की अभिव्यक्ति है. उसे खारिज भी नहीं किया जा सकता. कुमार विश्वास ने सहमति जताते हुए तरीका सुझाया कि स्माइली का भी श्रृंगार होना चाहिए, अलंकार होना चाहिए. उन्होंने स्माइली से मिल रही चुनौती को स्वीकारा कि संकट इमोशन पर है. ये इंस्टैंट का संकट है. यह संकट पत्रकारिता, साहित्य और राजनीति हर जगह है. विश्वास ने कहा- हमारी, अमीश की चुनौती यह है कि हम ऐसा लिखें कि कोई लड़का या लड़की हमारी शायरी या उस एक लाइन के लिए एक स्माइली को हटा सके. अन्न ने भी माना कि स्माइली और शायरी एक दूजे की पूरक हों और नई ताकत बनें. स्माइली को अपना दुश्मन न मानें.
भाषा और भाषा का संस्कार
स्माइली की भी अपनी एक भाषा है और बिना भाषा के न कविता है, न कहानी है और न ही शायरी. लिहाजा स्माइली के साथ आती भाषा पर भी बात हुई. कुमार विश्वास ने एक किस्सा सुनाया. उन्हीं की जुबानी- मैं पांचवीं था. तब पढ़ता था कि राधा और कृष्ण के बीच प्रेम प्रकट हुआ. प्रेम के प्रकट होने पर जिज्ञासावश अपने शिक्षक पिता से पूछा तो जवाब मिला- प्रेम ईश्वर है और वह प्रकट ही होता है. फिर नौंवीं में आया तो पढ़ा पीटर फाल इन लव. जिज्ञासा हुई कि प्रेम गिर क्यों गया. फिर हिंदुस्तान और अंग्रेजों की संस्कृति का अंतर समझ आया कि शायरी, कविता, लेख हमें और हमारे व्यक्तित्व को परिभाषित करते हैं. उन शब्दों के साथ हम सफर करते हैं.