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जिस शख्स की लेखनी की सानी आज भी नहीं है...

मुंशी प्रेमचंद को दुनिया एक ऐसे लेखक के तौर पर जानती है जिनकी लेखनी से निकले किरदार जीवंत हो उठते हैं. वे साल 1936 में 8 अक्टूबर के रोज ही दुनिया छोड़ गए थे...

Munshi Premchand Munshi Premchand
विष्णु नारायण
  • नई दिल्ली,
  • 08 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 10:25 AM IST

कहते हैं कि हिन्दी साहित्य में एक तरफ मुंशीजी लिखावट है और दूसरी तरफ सबकी लिखावट. मुंशीजी अपनी लेखनी से जिन किरदारों को रच देते थे, वे किरदार ऐसे लगते थे जैसे हमारे साथ ही उठ-बैठ रहे हों. हमारा दुख-दर्द बांट रहे हों. चाहे होरी और धनिया का किरदार हो या फिर गोबर का. सबकुछ जैसे आंखों के सामने घूमने लगता है. चाहे पूस की रात में हल्कू का वर्णन हो. मुंशी प्रेमचंद तो बस यथार्थ रच दिया करते थे. वे साल 1936 में आज ही के दिन दुनिया छोड़ गए थे.

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1. उनका असल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था लेकिन वे मुंशी प्रेमचंद के नाम से ही मशहूर हुए.

2. वे शुरुआती दिनों में चुनार में शिक्षक थे. तब उन्हें 18 रुपये तनख्वाह मिला करती थी.

3. वे हिंदी के साथ-साथ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी पर भी बराबर की पकड़ रखते थे.

4. सेवासदन, गबन, रंगमंच, निर्मला और गोदान उनके विश्वविख्यात उपन्यास हैं.

5. वे एक दर्जन से अधिक नॉवेल और 250 लघु कहानियां लिख चुके हैं.

6. हिन्दी साहित्यिक जगत उनके जिक्र के बिना अधूरा है.

 

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