सारे गिले-शिकवे दूर करने का शायद इससे अच्छा मौका नहीं था. 18 अप्रैल को कानपुर के कोयला नगर मैदान में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों का हुजूम जुटा था. दोपहर के डेढ़ बजे थे, पूरा मैदान मोदी-मोदी जप रहा था. इसी बीच पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार मोदी के हेलिकॉप्टर की गडग़ड़ाहट सुनाई दी और कानपुर संसदीय क्षेत्र से बीजेपी उम्मीदवार मुरली मनोहर जोशी ने माइक थाम लिया.
जनता से मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की अपील की. कुछ देर में हाथ लहराते हुए मोदी मंच पर नमूदार हुए. जोशी ने गुलदस्ता बढ़ाया तो मोदी उनके पैरों में झुक गए. 80 वर्षीय जोशी ने मोदी की पीठ पर हाथ फेरा और उन्हें गले लगा लिया. उन्होंने मोदी को उस बड़ी कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया जो मंच के बीच उन्हीं के लिए सजाई गई थी. लेकिन मोदी ने उस पर जोशी को बिठा दिया. मैदान से उठ रही मोदी-मोदी की गूंज अब मोदी-जोशी में बदल गई. कार्यकर्ता जोश में थे.
क्षण भर पहले चल रही धूल भरी आंधी अब शांत थी और दो बड़े नेताओं के रिश्तों के बीच जमी गाद भी साफ हो चुकी थी. भरी सभा में मोदी और जोशी ने यह संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी में सब ठीक चल रहा है. अगले दिन 19 अप्रैल की सुबह सात बजे जोशी के सरोजिनीनगर स्थित चुनाव कार्यालय की रंगत बदली हुई थी. जगह-जगह सफेद कागज पर हाथ से लिखे नारे टांग दिए गए थे: 'भारत-माता करे पुकार, मोदी-जोशी की सरकार’.
जोशी भी मोदी की तारीफ करते नहीं थक रहे. मोदी से रिश्तों के बारे में पूछने पर जोशी सारा दोष मीडिया पर मढ़ते हुए कहते हैं, ''1991 में जब मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष था तो मोदी राष्ट्रीय सचिव थे. जब मैंने जम्मू में तिरंगा फहराने के लिए यात्रा निकाली तो मोदी ही इसके संयोजक थे. हमारे बीच स्नेहपूर्ण बंधन है.” जोशी जानते हैं कि कानपुर में वे अपने संसदीय जीवन की सबसे कड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं जहां उनका मुकाबला तीन बार के सांसद और केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल से है
जायसवाल ने 1999 में बीजेपी से यह सीट उस वक्त छीन ली थी जब पूरे देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नाम का डंका बज रहा था. वाराणसी की बजाए कानपुर संसदीय क्षेत्र से अनमने ढंग से मैदान मं उतरने के बावजूद जोशी अपने व्यक्तित्व और मोदी के नाम पर कार्यकर्ताओं को एकजुट कर इस उद्योग नगरी में दोबारा कमल खिलाने का प्रयास कर रहे हैं.
(चुनावी दौरे पर निकले श्रीप्रकाश जायसवाल)
जायसवाल की मजबूत टक्कर19 अप्रैल की शाम पांच बजे कानपुर के बेगमपुरवा ईदगाह से पदयात्रा कर रहे कांग्रेस प्रत्याशी श्रीप्रकाश जायसवाल बाबा होटल के बगल में एक झोपड़ीनुमा मकान के बाहर आंखों पर काला चश्मा लगाए खड़ी 55 वर्षीय फातिमा का हाथ पकड़कर पूछते हैं, ''अम्मा अब साफ दिखाई पड़ रहा है?” फातिमा गर्दन हिलाकर हां का इशारा करती है. जायसवाल कहते हैं, ''आंख में दवा रोज डालते रहना.” इसी सहजता और सुलभता के बल पर जायसवाल ने अलग पहचान बनाई है.
उन्होंने कानपुर की पांचों विधानसभा सीटों में से हरेक में नि:शुल्क एंबुलेंस की व्यवस्था की है. इसके अलावा, जायसवाल पिछले 10 वर्षों से हर शनिवार और रविवार को स्वास्थ्य शिविर लगाकर रोगियों को मुफ्त इलाज मुहैया करा रहे हैं. फातिमा जैसे 50,000 से ज्यादा लोग इनका लाभ ले चुके हैं. कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सदस्य और जायसवाल का चुनावी प्रबंधन संभाल रहे रिजवान हामिद कहते हैं, ''सांसद निधि खर्च करने के मामले में जायसवाल सभी केंद्रीय मंत्रियों से आगे हैं.
इसके अलावा वे सबसे कम विदेश यात्रा करने वाले मंत्री हैं. सरकारी काम के बाद बचने वाला समय वे कानपुर की जनता के बीच बिताते हैं, इसी व्यवहार ने उनके लिए कानपुर में भारी समर्थन जुटाया है.” कानपुर में जनता के बीच रहने के लिए जायसवाल ने एक पूरा तंत्र खड़ा किया है. शनिवार को वे किदवई नगर, बर्रा-6, बर्रा-8 में बने दफ्तर में सुबह आठ से रात आठ बजे तक जनता से मिलते हैं तो रविवार को तिलकहाल, सरोजनीनगर और पनकी के दफ्तरों में होते हैं.
अपने-पराए की जंगकानपुर के संसदीय इतिहास में अब तक स्थानीय प्रत्याशी ही चुनाव जीतते आए हैं. 1980 में कांग्रेस के टिकट से जीते आरिफ मोहम्मद खान इसके अपवाद हैं. जोशी के बाहरी प्रत्याशी होने को विपक्षियों ने मुद्दा बना दिया है. जायसवाल अपनी हर सभा में बीजेपी प्रत्याशी के बाहरी होने का मुद्दा उठा रहे हैं. वहीं सपा के उम्मीदवार सुरेंद्र मोहन अग्रवाल ने शहर भर में ''मुझे गर्व है मैं कानपुर से हूं, कानपुर के लिए हूं.” लिखी होर्डिंग लगाकर 'लोकल बनाम बाहरी’ के मुद्दे को गरमाने की कोशिश की है.
अग्रवाल कहते हैं, ''जोशी का इतिहास है कि नैनीताल, इलाहाबाद, वाराणसी से चुनाव जीतने के बाद वे कभी नहीं लौटे.” विपक्षियों के हमलों का जवाब जोशी कुछ यूं देते हैं, ''जनसंघ के जमाने में कानपुर मेरी कर्मस्थली थी, मुझे बाहरी कहना सरासर गलत है.” जनता से जुड़ाव बढ़ाने के लिए उन्होंने सरोजिनीनगर में अपने केंद्रीय कार्यालय में एक संवाद सेल बनाया है, जहां कानपुर का कोई भी नागरिक एक पत्र लिखकर अपने घर या उसके आसपास उनकी सभा करा सकता है.
संवाद सेल के प्रभारी और यूपी बीजेपी के प्रवक्ता मनोज कुमार मिश्र बताते हैं, ''यह एक नया तरीका है जिसमें जनता को अपने नेता की सभा करवाने का स्थान तय करने का अधिकार दिया गया है. संवाद सेल में हर रोज सैकड़ों पत्र आ रहे हैं. जनता की मांग पर पिछले एक माह में वे 100 से ज्यादा सभाएं कर चुके हैं.”
विकास बनाम भ्रष्टाचारअपने चुनावी प्रचार में जायसवाल ने कानपुर के विकास कार्यों को मुद्दा बनाया है. जायसवाल के समर्थक कानपुर संसदीय क्षेत्र में दो पन्ने का पर्चा बांट रहे हैं जिसमें 15 साल के दौरान तीन बड़े पावर हाउस, आधा दर्जन फ्लाइओवर, डेढ़ दर्जन नई रेल गाडिय़ों की सौगात समेत कुल 53 बड़े विकास कार्यों का जिक्र है. वे कहते हैं, ''कानपुर में जितना विकास कार्य पिछले 10 साल में हुआ उतना आजादी के बाद कभी नहीं हुआ. जनता यह बात अच्छी तरह जानती है.”
जायसवाल के विकास के दावों की काट के लिए जोशी ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया है. होर्डिंगों में 'न दागी है न दोषी है, देश का सपूत जोशी है’ जैसे नारों से विपक्षियों पर हमला बोला गया है. जोशी हालांकि जायसवाल का नाम सीधे तौर पर नहीं लेते हैं, लेकिन वे कहते हैं, ''जायसवाल ऐसे सिस्टम में लिप्त थे जो देश में गिरावट ला रहा था. वे केंद्र में घोटाले की सरकार के हिस्सेदार हैं.” बीजेपी ने जोशी के बहाने कानपुर के 15 लाख मतदाताओं में अच्छी-खासी हिस्सेदारी रखने वाले ब्राह्मण मतदाताओं को साधने की कोशिश भी की है.
जोशी के चुनाव अभियान का संचालन कर रहे पार्टी के प्रदेश महासचिव देवेंद्र सिंह चौहान कहते हैं, ''पार्टी ने पहली बार कानपुर से किसी बड़े नेता को चुनाव में उतारा है. जोशी को ब्राह्मणों के साथ सभी वर्गों का सहयोग मिलेगा.”
नए परिसीमन में कानपुर संसदीय क्षेत्र में आने वाली विधानसभा सीटों में किसी सुरक्षित सीट को जगह न मिलने को भी बीजेपी दलित जातियों के बीच मुद्दा बना रही है. कानपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग के पूर्व प्रोफेसर डॉ. आर.पी. सिंह कहते हैं, ''कानपुर का चुनावी संग्राम जोशी और जायसवाल के बीच सिमटता दिख रहा है. सहजता, सुलभता और कानपुर में विकास कार्य के बल पर तैयार हुए जनाधार के बूते जायसवाल जोशी के कद और मोदी फैक्टर के संयुक्त प्रभाव की परीक्षा ले रहे हैं.”
गंगा के किनारे वाराणसी से 325 किलोमीटर पहले बसे बिठूर जैसे धार्मिक और आइआइटी जैसे शैक्षिक तीर्थस्थलों को समेटे कानपुर एक बार फिर बंद मिलों, प्रदूषित गंगा और विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक होने के दागों के जवाब ढूंढ रहा है. चुनावी मौसम में एक बार फिर वादों की बयार बह रही है लेकिन क्या जनता अपने शहर के लिए कोई 'भगीरथ’ चुन पाएगी?