
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में अब तक चमकी बुखार से 132 मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद सरकार की लापरवाही बार-बार सामने नजर आ रही है. ऐसा तब है, जब पूरे मुजफ्फरपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर प्रशासन हाई अलर्ट पर है.
बिहार सरकार द्वारा प्रदेश के सभी पंचायतों में आम लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र पहले से ही स्थापित हैं. मगर जमीनी हकीकत यह है कि मुजफ्फरपुर में ही कई प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र पर वर्षों से ताला लगा हुआ है.
सरकार की इस लापरवाही की हकीकत जानने के लिए आजतक की टीम ने मुजफ्फरपुर के मुसहरी ब्लॉक के 2 पंचायतों- सहवाजपुर और झपहा का दौरा किया. इस साल मुशहरी ब्लॉक में चमकी बुखार का सबसे ज्यादा प्रकोप देखने को मिला है.
आजतक की टीम सबसे पहले शहवाजपुर पंचायत पहुंची. शहवाजपुर प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र को पहली नजर में देखकर ऐसा लग रहा था कि यह स्वास्थ्य केंद्र पिछले कई महीनों से बंद पड़ा है. इस स्वास्थ्य केंद्र की हालत जर्जर थी और यहां पर ना कोई डॉक्टर था और ना ही कोई नर्स थी. दो कमरे के स्वास्थ्य केंद्र पर ताले जड़े हुए थे. स्वास्थ्य केंद्र के प्रांगण में भी जंगल झाड़ी देखने को मिला.
स्वास्थ्य केंद्र की ऐसी हालत देखकर आजतक ने इस स्वास्थ्य केंद्र पर नियुक्त नर्स नीलू कुमारी से फोन पर संपर्क किया और सवाल पूछा कि आखिर यहां ताला क्यों लगा है, तो उन्होंने जवाब दिया कि यह ऐसे ही चलता है. बता दें इस स्वास्थ्य केंद्र पर दो नर्स की बहाली की गई है. नीलू कुमारी ने अपना पल्ला यह कहकर झाड़ा कि सरकार ने चमकी बुखार के रोकथाम के लिए किसी अन्य जगह पर प्रतिनियुक्त की है. नीलू कुमारी ने बातचीत के दौरान यह भी बता दिया कि दूसरी नर्स सरोज कुमारी कभी स्वास्थ्य केंद्र पर नहीं आती हैं.
स्थानीय लोगों की मानें तो शहवाजपुर पंचायत में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र कई महीनों से बंद पड़ा है और अगर गांव में कोई बीमार पड़ता है, तो वह सीधा शहर के किसी निजी अस्पताल या फिर सरकारी अस्पताल जाता है. बता दे कि राज्य सरकार ने गांव में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के उद्देश्य से सभी पंचायतों में प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र का निर्माण कराया है.
गांव में कोई अगर बीमार पड़ता है, तो वह सबसे पहले प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र पर पहुंचता है और अगर वहां के इलाज से भी संतुष्ट नहीं है, तो फिर प्रखंड स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाता है और अगर वहां भी उसे तसल्ली नहीं होती है, तो फिर वह शहर के सरकारी अस्पताल पहुंचता है. नियमानुसार प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र पर सुबह से लेकर शाम तक एक डॉक्टर और एक नर्स की ड्यूटी होनी चाहिए, जबकि प्रखंड स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर चौबीसों घंटे एक डॉक्टर और 2 नर्स कि ड्यूटी होनी चाहिए.
शहवाजपुर पंचायत के बाद आजतक की टीम मुसहरी प्रखंड के झपहा पंचायत पर पहुंची. यहां पर भी प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र पर ताला लटका हुआ था. इस स्वास्थ्य केंद्र की हालत ऐसी थी कि इसके प्रांगण में एक तरफ जहां मवेशियों ने अपना ठिकाना बना रखा था, तो दूसरी तरफ नजारा खेत खलिहान जैसा था.
इस स्वास्थ्य केंद्र पर ना बिजली थी और ना ही पानी की व्यवस्था. स्वास्थ्य केंद्र को देखने से ही पता लग रहा था कि यह पिछले कई महीनों से बंद पड़ा है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां पर कोई भी डॉक्टर या नर्स नहीं आते हैं. कुछ लोगों ने बताया कि महीने में किसी एक दिन आधे घंटे के लिए कोई डॉक्टर आता है और फिर वह पूरे महीने दिखाई नहीं देता.
चमकी बुखार से अब तक मुजफ्फरपुर में 132 मासूमों की मौत हो चुकी है. और बताया जा रहा है कि इसमें कई ऐसे कई बच्चे थे, जिन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य उपकेंद्र पर उपचार नहीं मिलने की वजह से शहर का रास्ता देखना पड़ा, जिसकी वजह से रास्ते में ही उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई और मौत हो गई.