हकीकत की सीमा, यूं समझिए कि चेन्नै से 300 किमी दूर श्रीपुरंतन की मिट्टी की टुटही झेंपडिय़ों के आगे खत्म हो जाती है. चरते मवेशियों और खेलते बच्चों के समूह की बगल से निकलता ऊबड़-खाबड़ रास्ता बृहदीश्वर मंदिर के उजाड़ खंडहर के सन्नाटे में ले जाता है. दरवाजे पर आदमकद योद्धा का पथरीला बुत मिट्टी में धंसा हुआ चौकस खड़ा है.
सिर पर सैकड़ों चमगादड़ अपने इलाके में घुसपैठ से नाराज होकर मंडराते हैं. वक्त और फफूंद के निशानों से भरी खुली शहतीरें हवा में नम गंध भर रही हैं. पूजा के दीयों पर लिपटे जाले परित्याग की भावना को और उजागर कर देते हैं. देव आसन बिना तस्वीर वाले फ्रेम की तरह खाली है. इस मंदिर में भगवान नहीं है. मंदिर के 1,000 वर्ष प्राचीन अधिष्ठाता शिव नटराज अपने आसन से गायब हैं. पर अभी सब कुछ लुटा नहीं है.
नटराज यहां से 9,000 किमी का सफर तय करके ऑस्ट्रेलिया में कैनबरा स्थित राष्ट्रीय कला दीर्घा (एनजीए) में विराजमान हो गए हैं. पर वे वहां तक पहुंचे कैसे? नई दिल्ली में जन्मे और न्यूयॉर्क में प्राचीन वस्तुओं का कारोबार करने वाले 65 वर्ष के सुभाष कपूर को दुनिया में मंदिरों की प्रतिमाओं के सबसे बड़े तस्करों में से एक माना जाता है. एक सवाल के जवाब में सुभाष ने बताया कि उसने ही 2008 में 31 करोड़ रु. में नटराज को एनजीए को बेचा था.
तमिलनाडु पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा के प्राचीन वस्तु चोरी निरोधक दस्ते आइडल विंग के लोगों से भी यह सवाल किया गया. उन्होंने बताया कि कला-शिल्पों का यह शातिर चोर किस तरह मामूली चोर-उचक्कों की मदद से अनमोल प्रतिमाओं को लूटने और सबसे बड़ी बोली लगाने वालों को बेचने का धंधा चलाता है.
अमेरिका में होमलैंड सिक्योरिटी इनवेस्टिगेशंस (एचआइएस) से पूछें, तो वह सुभाष पर भारत से 10 करोड़ डॉलर मूल्य की 150 से ज्यादा प्रतिमाएं चुराने का आरोप लगाती है. लापता नटराज के नाम पर तमिलनाडु की एक जिला अदालत में हाल ही में एक दिलचस्प मुकदमा शुरू हुआ है.
यह इंसानी लालच और मुनाफा कमाने की वही सनातन कथा है. लेकिन इसमें जिस तरह का फैलाव और पेचीदगी है, इसके अलावा जिस तरह का दुस्साहस इसमें दिखाया गया है, वह सब इसे एक नया आयाम देता है. इसमें कला और पुलिस की खुफियागीरी जैसी दो निहायत ही अलग तरह की दुनिया एक-दूसरे से आ जुड़ती हैं और उनके तार भारत, थाईलैंड, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया तक फैले दिखते हैं.
चेन्नै में आर्थिक अपराध शाखा के अपर पुलिस महानिदेशक, आइपीएस अधिकारी प्रतीप वी. फिलिप के शब्दों में, ''कला शिल्पों और प्राचीन वस्तुओं की चोरी सबसे कमाऊ अपराध है. इसने नशे की तस्करी, हथियारों के व्यापार और काला धन सफेद करने के धंधे को मात दे दी है.” इसीलिए चुराए गए खजाने के बरामद होने की संभावना बहुत कम है.
दस में से एकाध मामलों में ही बरामदगी हो पाती है. लेकिन इस मामले में आइडल विंग ने श्रीपुरंतन और पास के सुथामल्ली गांव से चुराई गई 28 प्रतिमाओं में से 8 को दुनिया भर के विभिन्न संग्रहालयों और दीर्घाओं में पहचान लिया है. तेजी से नेटवर्किंग के जरिए जुड़ती दुनिया में कला और प्राचीन वस्तुओं से जुड़े अपराधों की पोल खोलने के तरीकों पर अदालत के भीतर एक सबसे दिलचस्प सुनवाई होने वाली है. लेकिन सच पूछिए तो यह नैतिकता से जुड़ी एक ऐसी दास्तान है जिसमें हठधर्मिता, गुरूर और लालच ने एक व्यक्ति को पतन के रास्ते पर धकेल दिया.
(आरोपी ठग सुभाष कपूर)
शातिर दिमागकपूर में क्या कोई खास बात है? जी हां. आर्थिक अपराध शाखा के अधिकारियों का तो ऐसा ही मानना है. उसका दायां कान आधा चबाया हुआ है. बचपन में उसका अपहरण हो गया था. तब अपहर्ताओं ने उसका कान चबा लिया था. और कुछ? जी हां, विभिन्न महाद्वीपों में इस तलाकशुदा शख्स की सताई ऐसी कितनी ही गर्लफ्रेंड्स हैं, जिनकी मदद लेकर उसने जाली दस्तावेज बनवाए. ऐसी ही छली गई एक प्रेमिका ने इंटरपोल को अहम सुराग दिए थे.
लगता है, कपूर ने यह धंधा अपने पिता पुरुषोत्तम राम कपूर से सीखा था. जो भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मूर्ति चोरों से मिलने वाली, कथित रूप से चुराई गई प्राचीन वस्तुओं की दिल्ली में एक दीर्घा चलाते थे. फिलिप बताते हैं कि ''कपूर के संपर्क सूत्र भी भारत, पाकिस्तान, दुबई, हांगकांग, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, कंबोडिया और बैंकॉक तक फैले थे.” कपूर और उसके परिवार को अमेरिका में इज्जतदार, जानकार कला पारखी और संग्राहक माना जाता था.
लेकिन फिलिप की मानें तो ''वह तो महज एक दिखावा था.” कपूर लंदन और फ्रैंकफर्ट के पुस्तक मेलों में घूमा, किताबें खरीदीं, खूब खोजबीन की और फिर कला वस्तुओं से भरपूर देशों में जाकर उन दलालों से संपर्क साधा, जो ये कला वस्तुएं जुटाने वाले थे. इस तरह चुराई गई कला वस्तुओं को जाली दस्तावेजों के साथ बेचने और भेजने के लिए उसने संग्रहकर्ताओं, संग्रहालय के संचालकों और डीलरों के नेटवर्क का सहारा लिया.
बड़ा आदमी, बड़ा पैसाजयनकोंडम की जिला अदालत में सुभाष की मौजूदगी की कल्पना करना भी मुश्किल है. चेन्नै से 270 किमी दूर इस गांव के विशाल लिग्नाइट भंडार, नए बिजलीघर, खनन और सीमेंट फैक्टरियों के बल पर अचानक पंख निकल आए. फिर भी मूलरूप से यह मंदिरों वाला एक छोटा कस्बा ही है. यहां तमिल के अलावा और कोई जबान नहीं चलती. तभी तो सुभाष को अनुवादक मांगना पड़ा.
न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत पर लगे साइन बोर्ड पर लिखा है, ''निदि तुरइ कुतरावियल नादुवर निधिमंदरम” अंग्रेजों के जमाने की लाल ईंट की ऊंची छत वाली इस इमारत के पंखे बहुत धीमे घूमते हैं और यहां वकीलों, मुवक्किलों, आने-जाने वालों और दलालों का जमावड़ा रहता है. वकील अकसर अदालत के लिए बेहतर कमरों की मांग के समर्थन में सुनवाई का बहिष्कार कर देते हैं. सुभाष सुनवाई में पेश होने के लिए जेल की बस में आया था. उसने कलफ लगी नीली कमीज पहन रखी थी और चेहरा सफेद तौलिये से ढक रखा था. उसने बस इतना ही कहा कि वह निर्दोष है, ''इनके केस में दम नहीं.”
मैनहटन और न्यूयॉर्क के आलीशान मकानों में 30 साल से ज्यादा वक्त गुजारने वाले इंसान से यह चेहरा एकदम अलग है. अपने फलते-फूलते प्राइवेट म्युजियम 'आर्ट ऑफ द पास्ट’ में सुभाष की नामी और पैसे वाली हस्तियों से खूब सांठगांठ रही है. वह भारतीय कला से जुड़ी किसी भी चीज पर टूट पड़ता था और दुनिया के हर बड़े कला मेले में मौजूद रहता था. सोफिया स्टोरेज के नाम से उसका फाइन आर्ट स्टोरेज बिजनेस और न्यूयॉर्क में निंबस इंपोर्ट इंक के नाम से प्राचीन वस्तुओं के आयात-निर्यात का कमाऊ धंधा भी था.
आइडल विंग के प्रभारी और उप-महानिरीक्षक ए.जी. पोन मानिकवेल के अनुसार, सुभाष जब भी चेन्नै आता था, ताज कोनेमारा होटल में ठहरा करता था और स्थानीय कला डीलरों से मिलता था. बड़े पैसे का लालच देकर स्थानीय मूर्ति चोरों के गिरोह को ललचाया जाता था.
उसने खुद पुलिस के सामने कबूल किया (हालांकि बाद में मुकर गया) कि उसने 28 प्रतिमाओं के लिए अपने एचएसबीसी बैंक खाते से 7 लाख डॉलर का भुगतान किया था. इन प्रतिमाओं से उसने जो कमाया, उसकी तुलना में यह रकम भले कुछ भी न हो, पर ठगों के लिए बहुत बड़ी थी. सात स्थानीय ठगों में से एक मरीसामी ने जब 25 लाख रुपए लेकर 10 प्रतिमाएं दीं तो उससे कहा गया कि ''ग्राहक बड़ा आदमी है. हमारे साथ रहोगे तो इतने अमीर हो जाओगे कि कभी काम नहीं करना पड़ेगा.”
लूटी मूर्तियों का ब्यौरा (बाक्स में)
असुरक्षित भगवानकोई नहीं जानता कि मंदिर कब लूटे गए. किसी को यह अंदाजा भी नहीं था कि तीन फुट ऊंची 150 किलो की नटराज की प्रतिमा चोल कला की बेहतरीन कृति है. पंच लौह यानी एक हिस्सा सोना और बाकी चांदी, तांबे, कांसे और सीसे से बनी यह प्रतिमा सिर्फ पूजनीय ही नहीं थी बल्कि बेहद अनमोल और महंगी भी थी.
सत्तर के दशक के मध्य के आसपास श्रीपुरंतन के स्थानीय पुजारी जब सामान बांधकर चेन्नै चले गए तो दैनिक पूजा बंद हो गई. कई पीढिय़ों से मंदिर को देख रहे परिवार के 35 वर्षीय पलानीस्वामी बताते हैं, ''करीब 10 साल पहले जहरीले कीड़े विष वंडू का हमला हुआ था.” गांव में परंपरा है कि हर तीन साल में फसल का जश्न मनाने के लिए देवी कालीअम्मन की प्रतिमा नटराज मंदिर में लाई जाती है. ऐसे ही एक उत्सव के दौरान बेहद जहरीले बड़े ततैयों का झुंड गांव वालों पर टूट पड़ा. तब से मंदिर का काला बड़ा दरवाजा बंद रहा और प्राचीन ताला जंग खाता रहा. लोग उसके बारे में भूल गए. इस वजह से पेशेवर और जानकार मूर्ति चोरों के लिए लूटपाट करना बेहद आसान हो गया.
बगल के सुतामल्ली गांव में 800 साल पुराने सुंदेश्वर मंदिर में भी दैनिक पूजा बंद हो गई थी. शहतीरें टूटने और छत बैठ जाने के कारण कांस्य की 10 प्रतिमाओं को नजदीक के वरदराजा पेरूमल विष्णु मंदिर में ले जाया गया. उसकी चौकसी गांव की बूढ़ी महिला कल्याणी अम्मा किया करती थीं. वे मंदिर की बगल में छोटी-सी झेंपड़ी में रहती थीं. चाबियां हमेशा अपने बगल में रखती थीं और किसी को अंदर नहीं आने देती थीं. अचानक कल्याणी गांव छोड़कर चली गईं और मंदिर लुटेरों का आसान शिकार हो गया.
वाकया एक रात कावे सात लोग ठीक आधी रात के घने अंधेरे में एक लॉरी में आए, कभी साथ-साथ तो कभी अलग-अलग. जगह का जायजा लेने वे पहले भी आए थे. उन्हें भगवान का कोई डर नहीं था. वे मंदिरों की बहुत-सी मूर्तियां चुरा चुके थे. उन्हें सिर्फ पैसे की भूख थी. चेन्नै के केरलवासी कला डीलर संजीवी अशोकन ने उन्हें बहुत पैसा देने का वादा कर रखा था. अशोकन उनका भरोसेमंद था और उसे तमिलनाडु में तथा आसपास के प्राचीन मंदिरों का लेखाजोखा मुंह जबानी याद था. उसे एक बड़े ग्राहक के लिए चोल काल की प्राचीन धातु की प्रतिमाओं की तलाश थी और उसने मालूम कर लिया था कि श्रीपुरंतन और सुतामल्ली मंदिर ताले में बंद, बेकार और खंडहर हो रहे हैं.
दो मूर्ति चोरों रतिनम और पिचाईमणि के इकबालिया बयानों के अनुसार, जनवरी, 2006 में एक रात उन्होंने एक लॉरी गांव से दूर नटराज मंदिर के करीब सूखी झील के चौड़े पाट के एक तरफ खड़ी कर दी. मंदिर का ताला खींचा तो वह टूट गया. उन्होंने भीतर से 8 में से 3 प्रतिमाएं निकालीं, ताले को वापस सटाया और भाग गए.
अशोकन ने उनसे प्रतिमाएं लीं, उनसे मिलती-जुलती कुछ नई सस्ती प्रतिमाएं खरीदीं, कुछ कस्टम अधिकारियों को रिश्वत दी, हस्तशिल्प कलेक्शन बताकर निर्यात सर्टिफिकेट हासिल कर लिया. फिर इन प्रतिमाओं को चेन्नै बंदरगाह से हांगकांग और लंदन के रास्ते न्यूयॉर्क में सुभाष को भेज दिया गया.
जून, 2008 तक किसी को कानोकान खबर नहीं लगी. तभी तमिलनाडु हिंदू धार्मिक और धर्मादा प्रतिष्ठान विभाग के अधिकारी श्रीपुरंतन पहुंचे और सुझाव दिया कि प्रतिमाओं को कहीं सुरक्षित रख दिया जाए. पंचायत अपने भगवान सौंपने को तैयार नहीं हुई और भगवान नटराज की सुरक्षा के लिए लोहे का दरवाजा लगाने का वादा कर लिया.
अगस्त में जब दरवाजा लगने के समय भीड़ जमा हुई, तो ताला टूटा हुआ था और अनमोल प्रतिमाएं गायब थीं. फरवरी, 2008 में सुतामल्ली से 18 प्रतिमाओं की लूट भी इसी तरह हुई थी. दो महीने बाद जब बाहर से आए पुजारी ने मंदिर के दरवाजे खोले और चोरी का पता लगा, तब तक प्रतिमाएं हांगकांग पहुंच चुकी थीं.
(सुतामल्ली में 800 वर्ष पुराने संदेश्वर मंदिर में दैनिक पूजा बंद हो गई थी)
गणेश ने सुराग दियाडीआइजी पोन बताते हैं कि चार इंच के एक छोटे-से गणेश जी ने यह गुत्थी सुलझा दी. बारीक नक्काशी और देवी के साथ विनायगर की अनूठी शैली वाली इस प्रतिमा में भगवान गणेश की एक दुर्लभ मुद्रा है, जिसमें माता पार्वती उनकी गोद में बैठी हैं.
पिचाईमणि के इकबालिया बयान के अनुसार, सुतामल्ली की लूट के दौरान उसे यह छोटी-सी प्रतिमा मिली थी और उसने उसे जेब में रख लिया था. जब दूसरों ने आपत्ति की और धमकी दी कि संजीवी को बता देंगे, तो उसने कह दिया ''मेरी बला से.” यहीं गड़बड़ हो गई. केरल में जब पुलिस ने शराब की तस्करी के सिलसिले में उसकी कार की तलाशी ली तो नन्हे विनायगर मिले. पुलिस को शक हुआ कि यह चोरी की प्रतिमा है और उसे पकड़ कर तमिलनाडु पुलिस को खबर कर दी.
पिचाईमणि ने अपने इकबालिया बयान में कहा है कि जब से उसे गणेश की चोरी के लिए पकड़ा गया, तब से परिवार बहुत मुश्किल में आ गया है, ''मेरी साख मिट्टी में मिल गई. हमें कोई एक रुपया उधार देने को तैयार नहीं था. अब मैं और नहीं झेल सकता था.” उसने सारा भेद उगलने का फैसला किया. इस बीच, आइडल विंग ने एक दूसरे मामले में तीन आदमी पकड़े थे. उनमें से एक रतिनम मंदिर की लूट में शामिल था. उसने भी जुर्म कबूलने का फैसला किया.
इन सबका सरदार सुभाष निकला. फिर क्या था! सारे मुजरिम पकड़े गए. एक बार जब आइडल विंग ने सारे जरूरी कागजात, सबूत, कस्टम के बिल, कूरियर की रसीदें और हर लेन-देन के बैंक कागजात कब्जे में ले लिए तो सीबीआइ ने इंटरपोल को रेड कॉर्नर नोटिस भेज दिया. सुभाष को 2011 में फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे पर पकड़ा गया, जब वह पुस्तक मेले में हिस्सा लेने गया था. 2012 से वह चेन्नै की पुझल जेल में है.
तस्वीरें झूठ नहीं बोलतींइस मामले का सबसे कमजोर पहलू यह था कि प्रतिमाओं को मंदिरों से जोडऩे के सबूत के तौर पर दिखाई जा सकने वाली तस्वीरें नहीं थीं. जांच उस समय अटक गई, जब तमिलनाडु धार्मिक और धर्मादा प्रतिष्ठान महकमे के पास कोई जानकारी या दस्तावेज नहीं मिले और विभाग ने शुरू में दावा किया कि कोई चोरी नहीं हुई है. लोगों की याददाश्त पर भरोसा नहीं किया जा सकता था. गांव वालों के पास अपनी प्रतिमाओं की कोई तस्वीर नहीं थी और दोनों मंदिरों में दैनिक पूजा वर्षों पहले बंद हो चुकी थी.
तभी फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पॉन्डिचेरी (आइएफपी) के भारत विज्ञानियों ने मदद का हाथ बढ़ाया, जो दशकों से दक्षिण भारत के मंदिरों का अध्ययन कर रहे हैं. आइएफपी के फोटो अभिलेखागार के शोधकर्ता एन. मुरुगेसन बताते हैं, ''हमारे पास 150,000 तस्वीरों का पूरा डिजिटल भंडार है और उनमें से आधी तमिलनाडु से हैं.
हमारे शोधकर्ताओं ने अपनी यात्राओं के दौरान दोनों मंदिरों की तस्वीरें ली थीं. पुलिस ने जब हम से संपर्क किया, तो हमने 1958-1961 से लेकर 1994 तक तस्वीरों के पक्के सबूत दे दिए. इनसे एनजीए में प्रदर्शित प्रतिमाओं और सुभाष के फोन से मिली तस्वीरों का पूरी तरह मिलान हो गया. इनके आधार पर इंटरपोल ने सुभाष को धर दबोचा.”
फिलिप के मुताबिक, अपराधी कई बार कुछ ज्यादा ही आश्वस्त हो जाते हैं. ''वे कितने ही चालाक क्यों न हों पर कोई न कोई सुराग तो छोड़ ही जाते हैं.” एक पुरानी गर्लफ्रेंड के साथ गालीगलौज करके सुभाष ने अगर अदालत और इंटरनेट पर अपनी छाप नहीं छोड़ी होती, तो उसे कोई नहीं छू सकता था. सिंगापुर स्थित गैलरी मालिक परमस्प्री पुनुस्वामी 1977 से सुभाष के साथ प्रेम में थी.
तमिल पिता और चीनी माता की यह संतान सुभाष की कलाकृतियां बेचा करती थी. 2008 में उसका उससे झगड़ा हो गया और जल्दी ही पुनुस्वामी म्यूजियम वेबसाइटों, चैट और ब्लॉगपोस्ट में कपूर की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए तीखे संदेश छोडऩे लगी. 2010 में दोनों ने सिंगापुर की एक अदालत में लाखों डॉलर के हरजाने के मुकदमे दायर कर दिए. यहीं से सीबीआइ, एचएसआइ और इंटरपोल को सुभाष को पकडऩे की दिशा में सुराग मिल गया.
शिव का कोपशिव के कोप से तो भैया सावधान ही रहना चाहिए. गांव वालों में कानाफूसी शुरू हो गई कि श्रीपुरंतन के भगवान तांडव कर रहे हैं और अब घर वापसी तक रुकने वाले नहीं. उनके कदम तब तक नहीं थमेंगे, जब तक उन्हें बेचने वाले लुटेरे भस्म नहीं हो जाते. पुलिस के शक के दायरे में आने वाले पलानीस्वामी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं है, ''मैं निर्दोष था, इसलिए भगवान ने असली चोरों को पकड़वा दिया.”
28 में से छह देव प्रतिमाओं की पहचान कैनबरा, न्यू साउथ वेल्स, शिकागो, ओहायो से सिंगापुर तक दुनियाभर के संग्रहालयों और निजी संग्रहों में हो चुकी है. ऑस्ट्रेलिया सरकार ने एनजीए को आदेश दिया है कि नटराज को प्रदर्शन से हटा दिया जाए. आर्थिक अपराध शाखा ने राज्य के 45,000 मंदिरों की प्रतिमाओं की गणना शुरू कर दी है.
मुकदमा चल रहा है और गांव वाले अपने देवता को वापस लाने के लिए बेताब हैं. वे मंदिर के उद्धार के लिए पैसे जमा कर रहे हैं. रस्सी में बांधकर अपनी बकरी को ले जा रही एक महिला सवाल करती है, ''उन्हें कब वापस ला रहे हो?” पर नटराज क्या वाकई उस मुल्क में आना चाहेंगे, जहां मंदिरों में जाले लग जाते हैं? इस मुकदमे का नतीजा बताएगा कि क्या शिव का तांडव फिलहाल रुका है या नहीं.