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इच्छाधारियों का चला जादू, दुनिया हुई इन नागिनों की दीवानी

टीवी पर बेशक अंधविश्वास फैलाने के जितने भी आरोप लगें लेकिन इच्छाधारी पात्रों की फौज प्राइम टाइम पर कब्जा जमाए हुए है और टीआरपी की दौड़ में नागिन सलमान खान तक को धोबी पछाड़ दे चुकी है.

नरेंद्र सैनी
  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2016,
  • अपडेटेड 2:40 PM IST

हसीन और कमसिन इच्छाधारी नागिन. उसका खूंखार बदला. जख्मी नागिन को रोकने के लिए तांत्रिक सपेरा. सोच से परे उसके हथकंडे. नागिन और सपेरे का सुपरहिट मुकाबला. सपेरे की बीन पर नागिन का मदहोश कर देने वाला नाच. रहस्य, रोमांच और ग्लैमर का ऐसा तड़का जो देख ले उसे भूलना मुश्किल. इन दिनों टेलीविजन पर कमसिन इच्छाधारियों का यह करतब दर्शकों के सिर चढ़ बोल रहा है. यही वजह है कि एकता कपूर का कलर्स पर आ रहा नागिन सीरियल लोकप्रियता के पायदान पर तेजी से चढ़ते हुए शीर्ष पर काबिज है. कलर्स चैनल के प्रोग्रामिंग हेड मनीष शर्मा कहते हैं, 'हम दर्शकों को ऐसी कथाओं वाला संसार देना चाहते थे जिन्हें वे अपने बचपन से सुनते आए हैं. नागिन में एक प्रभावी कहानी है. जबरदस्त ड्रामा है और अत्याधुनिक वीएफएक्स टेक्नोलॉजी ने इसे हिट बनाया है. इसने टीवी पर नया ट्रेंड स्थापित कर दिया है.'

खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है लेकिन छोटे परदे पर आलम यह है कि एक चैनल की नागिन को देखकर दूसरे चैनल वाला अपनी नागिन तैयार कर रहा है. इच्छाधारियों का जादू ऐसा चला कि कुछ अरसे के लिए हर चैनल तरह-तरह की इच्छाधारियों से पट गया. नीली छतरी वाले से लेकर ससुराल सिमर का तक में इच्छाधारी नागिनों का काला साया मंडराया तो ये कहां आ गए हम में करण कुंदरा बाघ बनते नजर आए. बीन की धुन बनकर उभरी टीआरपी ने निर्माताओं को सेक्सी मोरनी से लेकर हसीन नेवले तक को इच्छाधारी बना डालने के लिए नचा डाला. ऐंड टीवी के शो ये कहां आ गए हम के क्रिएटिव डायरेक्टर इमरान मानते हैं कि नागिन सीरियल की लोकप्रियता ने ही उन्हें अपने सीरियल में प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया, 'हमने नागिन की लोकप्रियता देखकर सोचा क्यों न कुछ ऐसा किया जाए क्योंकि आंकड़े इस बात के गवाह थे कि इन्हें पसंद किया जा रहा है.'

ज़ी टीवी पर हाल ही में विषकन्या शुरू हुआ है, जिसकी लीड ऐक्ट्रेस अप्पू को बाहरी दुनिया से काटकर रखा गया है और वह सिर्फ अपने घर में बंद रहती है. वजहः उसकी रगों में जहर दौड़ता है और वह विषकन्याओं के वंश से है. अप्पू बनीं ऐश्वर्या खरे कहती हैं, 'इस कैरेक्टर की सबसे मजेदार बात यह है कि उसे यह पता ही नहीं कि उसकी रगों में जहर है और वह सामान्य लड़की जैसे जीने के ख्वाब देखती है.'

आसान नहीं नागिन की राह
मजेदार यह कि ग्लैमरस नागिनों की फैन में सिर्फ महिलाएं ही नहीं हैं बल्कि पुरुष और बच्चे तक इनके सम्मोहन से परे नहीं हैं. दिल्ली में आइटी कंसल्टेंट 48 वर्षीय भुवनेश कुमार शनिवार और रविवार को आने वाले सीरियल नागिन के दीवाने हैं. वे कहते हैं, ''नागिन में मौनी रॉय का ग्लैमरस और हॉट अंदाज मुझे पुराने दिनों की याद दिलाता है.'' लेकिन वे इस बात से थोड़े उलझे हुए भी नजर आते हैं कि सीरियल में अब हर जानवर इच्छाधारी हो रहा है. जैसे एक समय चंद्रकांता में हर किरदार का जुड़वां निकलने लगा था.

दर्शकों की उम्मीदों और पसंद पर खरा उतरना इतना आसान नहीं होता. नागिन में शिवन्या का किरदार निभा रहीं मौनी रॉय इस बात को बखूबी जाहिर करती हैं. उनके मुताबिक, 'इच्छाधारी नागिन होने के नाते, कई बार मुझे सिंगल सीन में कई लुक लेने पड़ते हैं. इसके लिए कई कॉस्ट्यूम पहनने पड़ते हैं, अलग-अलग मेकअप और जंगल जैसी आउटडोर लोकेशंस में काम भी करना पड़ता है.' यही नहीं, उन्हें शो में डांस से लेकर ऐक्शन तक का सहारा लेना पड़ता है. यही वजह है कि जब बिग बॉस सीजन-9 आ रहा था और उसे सलमान खान होस्ट कर रहे थे, उस समय भी टीआरपी के मामले में सुपरस्टार नागिन से मात खा गए थे. यही नहीं, ये कहां आ गए हम और अधूरी कहानी हमारी भी ऐंडटीवी के टॉप शोज में जगह बनाए हुए हैं. ब्रॉडकस्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) की 2016 के 14वें हफ्ते की रेटिंग में नागिन सीरियल्स में शीर्ष पर है.

पिटारे से निकली फड़कती नागिन
टीवी से पहले नागिनों ने सिनेमा के जरिए हमारे दिलों में दस्तक दी. 1954 में आई वैजयंती माला की नागिन का गीतकृमन डोले मेरा तन डोले तो उस साल का सरताज ही था. 1976 की रीना रॉय की नागिन फिल्म ने कामयाबी के झंडे गाड़े और सेक्सी और आकर्षक नागिन को हमारे सिनेमा का हिस्सा बना दिया. ऐसी नागिन जो चोट खाए हुए है और जिसे बदला लेना है. ऐसी ही चोट खाई नागिन 1986 में नगीना में नजर आई और जिसने हिंदी सिनेमा में एक दशक तक चिनगारी की तरह दबे रहे इच्छाधारी नागिन के कॉन्सेप्ट को फिर से जिंदा कर दिया. फिर 1989 में नगीना का सीक्वल निगाहें आई, पर फ्लॉप रही. नगीना के बाद तो जैसे इच्छाधारी नागिनों की बाढ़ ही आ गई. नाग और नागिन (1989), शेषनाग (1990), तुम मेरे हो (1990), नाचे नागिन गली गली (1989), जानी दुश्मन (2002) और हिस्स (2010) जैसी फिल्में आईं जो नाकाम रहीं पर तब तक बड़ा परदा अपने हिस्से के नाग-नागिनों को जी चुका था.

उधर 2007 में टीवी की पहली हिट नागिन सायंतनी घोष की एंट्री हुई. नागिनः वादों की अग्निपरीक्षा में वे नजर आईं और स्टार बन गईं. सायंतनी कहती हैं, 'भारतीय संस्कृति से जुड़ी यह कहानी हमेशा से हिट रही है.' यह पहला मौका था जब टीवी पर एक पूरा धारावाहिक किसी नागिन को लेकर था.

अंधविश्वास बनाम मनोरंजन
सवाल यह है कि क्या यह टीवी पर अंधविश्वास को बढ़ावा देना नही हैं? शर्मा कहते हैं, 'इच्छाधारी नागिन की कल्पना अंधविश्वास के दायरे में नहीं आती, बल्कि यह रहस्यपूर्ण है. वैसे भी इंटरनेशनल लेवल पर हम वैंपायर डायरीज, वरवुल्फ जैसे शो देखते हैं, ऐसे किरदार जो असल जिंदगी में कहीं नजर नहीं आते.' इसे लेकर लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है लेकिन घोष भी यही मानती हैं कि यह सिर्फ मनोरंजन का साधन है. जनता जो देखना चाहती है, वही दिखाया भी जाता है. वे कहती हैं, 'नागिन विषय की खासियत यही है कि आधुनिक समय में परंपरा और जड़ों से जुड़ी चीज दिखाना.'

बहरहाल, छोटे परदे पर इच्छाधारी पात्रों का जादू तारी है और जब तक उनके दर्शक हैं, तब तक निर्माताओं को ज्यादा दिमाग लड़ाने की जरूरत नहीं है.

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