
प्रख्यात झील नगरी नैनीताल की शान मानी जाने वाली नैनीताल की नैनी झील संकट टला नहीं है. नैनी झील का जलस्तर रोज सवा इंच घट रहा है. बर्षांत में किसी तरह झील के लबालब होने के बाद भी पिछले तीन माह में जलस्तर छह फीट तक घट गया है.
इस शरद सीजन में अब तक बर्फबारी और बारिश न होने से अब यह तय है कि फरवरी में जलस्तर शून्य में पहुंच जाएगा. सिंचाई विभाग के इस आकलन के बाद चिंतित जिला प्रशासन ने शहर में पानी की सप्लाई रोज छह से आठ घंटे करने का निर्णय लिया है. अब तक यह 24 घंटे होती थी.
झील के अस्तित्व पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नैनीताल झील को लोक निर्माण विभाग के अधिकार क्षेत्र से निकाल बाहर कर सिंचाई विभाग को सौंपने के आदेश दे दिए हैं. मुख्यमंत्री के अनुसार, झील के लगातार गिरते जल स्तर के बाद पुनर्जीवीकरण के लिए यह आदेश दिए गए. अब इस झील के रख रखाव और देख रेख की जिम्मेदारी सिंचाई विभाग की होगी.
नैनी झील इन दिनों चर्चा में है और इसके लगातार सूखते चले जाने से इसके अस्तित्व को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.
कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर का भूगर्भ विभाग भी नैनी सरोवर में जमा हो रही गाद का अध्ययन करने में जुटा है. पिछले साल जब झील का जलस्तर शून्य से 5 मीटर से भी अधिक नीचे चला गया तो भूगर्भशास्त्री प्रो. बी.एस. कोटलिया ने 6.8 मीटर नीचे खुदाई कर मिट्टी निकाली थी. प्रो. कोटलिया ने मिट्टी के गहन परीक्षण के बाद बताया कि यह मिट्टी लगभग 135-40 साल पुरानी होगी. खुदाई के समय झील की तलहटी में विशालकाय बोल्डर भी मशीन से टकराए थे. दोनों अध्ययनों से इस बात के स्पष्ट संकेत मिले कि खुदाई में मिली मिट्टी और मशीन से टकराए बोल्डर 1880 की त्रासदी के रहे होंगे. अभी भूगर्भशास्त्रियों का झील पर अध्ययन जारी है.
अध्येताओं के अनुसार, सितंबर 1880 में मल्लीताल में हुए उस भूस्खलन, जिसने नैनीताल के आकार को ही बदल दिया था जिसके परिणामस्वरूप नैनीताल की त्रासदी इतनी विकराल थी कि मलबा और विशालकाय बोल्डर मल्लीताल से तल्लीताल तक पूरी झील में समा गए. भूगर्भशास्त्री प्रो. बी.एस. कोटलिया के ताजा शोध से पता चला है कि नैनी झील में पिछले 50-60 सालों से मलबा तेजी से आ रहा है. उससे पहले चारों ओर जंगल और पेड़-पौधे होने से खरपतवार युक्त काली मिट्टी झील में जमा होती थी. उनके अनुसार गर्मियों में दोबारा झील के सबसे निचले स्तर से मिट्टी और पत्थर निकाले जाएंगे.
झील को देख रहे सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता हरीश चंद्र सिंह और जल संस्थान के अधिशासी अभियंता सुनील तिवारी के अनुसार, 2016 से पहले झील से शहर को प्रतिदिन 16 से 20 घंटे पानी की सप्लाई होती थी, जो करीब 16 एमएलडी थी, लेकिन 2015-16 में बारिश, बर्फबारी में कमी आई और झील का आकार बदल गया. जिसका प्रमुख कारण झील में जल की कमी और झील को भरने वाले स्रोतों का सूखना तो है ही नैनीताल में जमीन से रिसने वाले ग्राउंड वाटर वाले जल में आई कमी भी है.
झील नियंत्रण केन्द्र की सूचना के अनुसार, विगत सौ सालों के लेखे-जोखे से यह साफ़ है कि झील का जलस्तर 1923 के जून माह में और 1980 के मई जून में शून्य स्तर पर पहुंचा था जिसके बाद साल 2002 ,2004 ,2006 में भी झील में ऐसी स्थितियां दिखी. इसके बाद साल 2009, 2011 में मई माह तक झील अपने न्यूनतम जलस्तर में पहुंच गई और 20013, 2014 में तो अप्रैल में ही ऐसी नौबत पहुंच गई कि झील का स्तर शून्य तक पहुंच गया. साल 2016 में झील फरवरी महीने में ही अपने न्यूनतम जलस्तर पर पहुंच गई .अब आज की तारीख में यह जल स्तर अपने न्यूनतम स्तर से काफी नीचे पहुंच चुका है.
ब्रिटिश काल में झील के जलस्तर को नियंत्रित करने के लिए ब्रितानी हुकूमत ने साल 1872 -73 में इंजीनियर कंबरलैंड स्लूज गेज जिसे आज हम डाठ कहते हैं का निर्माण कराया जिसके बाद तत्कालीन नगरपालिका नैनीताल के अधिशासी अभियंता पालव्हील द्वारा झील की प्रवृत्ति नैनीताल की औसत बारिश, जलापूर्ति और इससे जुड़े बलिया नाले के जल निष्कासन प्रवाह के विश्लेषण से झील के जलस्तर के मौसमी मानक तय किये. जिसके तहत झील के लबालब भरे रहने की सीमा को 12 फीट निर्धारित किया गया था.
नैनीताल में बेमौसम हो जाने वाली बरसता के मद्देनज़र जुलाई-अगस्त में इस सीमा को 8 से 11 फिट के मध्य रखने की जरुरत जताई गई थी. गर्मियों में इस झील की जलस्तर सीमा को 7 फीट रखा जाता रहा. इसके अलावा यदि जलराशि झील में जमा हो तो इसकी बलिया नाले से निकासी की जाती थी.
इस बार पहली बार यह देखा जा रहा है कि झील में नौकायन करना भी नीरस लग रहा है. यहां नौकाएं चलाना दूभर होने लगा है. इससे इस झील से नौकायन के जरिये रोजी-रोटी कमाने वालों का रोजगार प्रभावित हो रहा है.
आंकड़े बताते हैं कि साल 2000 से 2016 के बीच नैनी झील लबालब भरे रहने की अपनी सीमा 12 फिट तक कभी नहीं पहुँची जबकि 2000 से 2017 के बीच दस से अधिक बार जलस्तर शून्य या उससे भी नीचे जरूर पहुंच गया. झील पर अध्ययन करने वालों की माने तो बीते पचास साल में झील साल 1993 और 2001 में ही इस झील का जलस्तर वांछित जलस्तर 7 फिट के आसपास रहा,
इस साल तो झील का न्यूनतम जलस्तर शून्य से कम फरवरी महीने से ही देखने में आया है जो कि अब खतरनाक हद तक कम हो गया है. झील पर अध्ययन कर रहे लोगों के अनुसार, अब तक झील का जलस्तर अपने मूल सामयिक जलस्तर से 18 फिट तक नीचे पहुंचना एक खतरनाक संकेत है जिसको लेकर राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत समेत राज्यपाल डॉ के.के. पाल ने तक चिंता जाहिर की है. झील का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों के अनुसार इस झील की जून माह में जो सिकुड़ने की रफ़्तार साल 2012 में दस सेंटीमीटर प्रतिदिन थी तो आज तक यह सिकुडन दर 2016 मार्च में ही 19 सेंटीमीटर तक पहुँच गई. अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, अब यह सिकुडन दर लगातार बढ़ रही है जिससे यह झील लगातार पोखर में तब्दील हो रही है.
सैलानियों के आकर्षण का केंद्र नैनी झील का क्षेत्रफल करीब 45 हेक्टेयर और अधिकतम गहराई 27 मीटर है. झील की गहराई नापने के लिए जो गेज इस्तेमाल किया जाता है, वह बारह फीट का है. इस गेज के अनुसार सामान्य तौर पर फरवरी में झील का जलस्तर पांच फीट रहना चाहिए. इससे कम होने पर जलस्तर को माइनस में रिकार्ड किया जाता है. पिछले पांच साल में यह वर्ष 2016 में माइनस में रिकार्ड किया गया. तब यह माइनस एक फीट पर जा पहुंचा था. इस बार और स्थिति और भी खराब है. माइनस 1.40 फीट पर टिका पानी भयावह भविष्य का संकेत दे रहा है.
झील संरक्षण पर लंबे समय से कार्य कर रहे पर्यावरणविद प्रो. अजय रावत बताते हैं कि झील को रीचार्ज करने के लिए पानी का मुख्य स्रोत है सूखाताल. यह ताल सूख गया है. कैचमेंट एरिया में बढ़ता अतिक्रमण झील में गिरने वाले नालों को पाटने के कारण स्थिति विकट हो रही है.
गौरतलब है कि इस बार उत्तराखंड में सर्दियों में बारिश अब तक करीब 75 फीसद तक कम रही है . इसके कारण बारिश में भर चुकी इस झील के जलस्तर में लगातार कमी आ रही है. ऐसे में कम बारिश से गायब पानी और जमीन से भी पानी का कम रिसाव झील के लिए संकट बना है. झील के जलागम क्षेत्र के 60 प्राकृतिक स्रोतों में से आधे से अधिक सूख गए हैं, जो बचे हैं, उनमें पानी की मात्रा घट गई है.
शासन-प्रशासन ने भी अब इस प्रसिद्ध झील की वर्तमान दशा का पता लगाने की सुध ली है. स्वयं राज्यपाल ने भी इस बाबत चिंता जताते हुए विशेषज्ञों के साथ बैठकें की हैं. राज्यपाल डॉ कृष्णकांत ने कहा कि नैनी झील के संरक्षण के लिए अब एक्शन मोड में आना होगा. नैनीताल में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सुनिश्चित करते हुए पानी के दुरुपयोग पर पूरी तरह रोक लगानी होगी.
राज्यपाल ने स्पष्ट किया कि झील की सुरक्षा को लेकर सर्वाधिक महत्वपूर्ण जिम्मेवारी नैनाताल के नागरिकों को उठानी होगी. नैनीताल शहर पीने के पानी की आपूर्ति के लिए नैनी झील पर निर्भर है. प्रति वर्ष यहां की आबादी से कई गुना अधिक पर्यटक आते हैं. इनके लिए भी पानी की व्यवस्था करनी होती है. हमें समुचित जल प्रबंधन व सस्टेनेबल टूरिज्म की अवधारणा को अपनाना होगा.
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि जलस्रोतों के पुनर्जीवीकरण के सम्बन्ध में मात्र चर्चा, विचार-मंथन और सेमिनार आयोजित करने से ही लक्ष्य प्राप्त नहीं होंगे बल्कि इसके लिये सटीक योजना एवं रणनीति से निश्चित टाइमफ्रेम में प्रयास करने होंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारे प्रयास लक्ष्य आधारित, ठोस व गम्भीर होने चाहिए. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि हमें न केवल नैनीताल झील बल्कि राज्य के सभी जल स्रोतों, जिनका जलस्तर कम हो रहा है के विषय पर गम्भीरता से विचार करना होगा.
पिछले कुछ वर्षों से नैनीताल झील के लगातार गिरते जल स्तर से झील में दिखाई देने वाले मलबे की स्थिति ने सबको चिंता में डाला है. अब रुड़की स्थित सिंचाई अनुसंधान संस्थान की ओर से नैनी झील, भीमताल, नौकुचियाताल झील की वर्तमान स्थिति का अध्ययन किया गया है . इन झीलों में लगातार सिल्ट जमा होने से गहराई लगातार घट रही है.
पिछले वर्ष 18 मई 2016 को जब मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के तहत नैनी झील का अध्ययन किया गया तो उससे झील की वास्तविक स्थिति सामने आई.वैज्ञानिकों ने शोध के लिए जब मिट्टी एकत्र करनी प्रारंभ की तो जेसीबी 1.8 मीटर से अधिक गहराई से ही मिट्टी बाहर ले आई. वैसे नैनी झील की वर्तमान गहराई 26 मीटर मानी जाती है, लेकिन सही गहराई जानने के लिए अभी शोध जारी हैं.
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