
जब भी ये बात होती है कि बच्चे को मम्मी और पापा में से सबसे अधिक कौन प्यार करता है तो हम सभी बिना किसी झिझक के मां को विजेता घोषित कर देते हैं. अक्सर पिता के प्यार को अनदेखा कर दिया जाता है. शायद इस वजह से कि वो अपनी हर फीलिंग को बताते या जताते नहीं हैं...सिर्फ चुपचाप कर जाते हैं. पर आप ही सोचिए क्या एक बच्चे की परवरिश एक पिता के स्नेह के बिना पूरी हो सकती है? नहीं...कभी नहीं. पिता का वो मौन प्रेम भी उतना ही जरूरी है जितना मां का हर पल नजर आने वाला दुलार. एक बच्चे का भविष्य काफी हद तक पिता के मार्गदर्शन पर ही निर्भर करता है.
इंफोसिस के फाउंडर और सीईओ एन आर नारायण मूर्ति ने अपनी बेटी के नाम एक खत लिखा है. इस खत में उन्होंने वो सारी बातें लिखी हैं जो एक पिता अपनी बेटी को कहना चाहता है. कुछ पिता कहते भी हैं लेकिन कुछ मन में ही रखे रह जाते हैं. एक बेटी के लिए ये खत पढ़ना जितना जरूरी है, उतना ही एक पिता के लिए भी.
नारयण मूर्ति ने अपने खत में लिखा है कि अक्षता उनकी पहली संतान है और जिस दिन उसका जन्म हुआ, उस दिन के बाद से ही उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. ये खत सुधा मेनन की किताब लेगेसी में प्रकाशित हुआ. इस किताब में मशहूर माता-पिता के अपनी बेटियों के नाम खत और संदेश को संग्रहित किया गया है.
अक्षता, पिता बनने के बाद मेरी जिंदगी कुछ इस तरह से बदल गई जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था. मैं एक ऐसा शख्स बन गया जो मैं पहले कभी नहीं था. तुम्हारे जन्म से मेरे जीवन में खुशियां तो आई हीं साथ ही बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी आई. अब मैं सिर्फ एक पति, बेटा और एक तेजी से बढ़ रही कंपनी का कर्मचारी भर ही नहीं रह गया था. अब मैं एक बेटी का पिता बन चुका था, जिसे जिंदगी में अपनी बेटी की हर उम्मीद पर खरा उतरना था.
तुम्हारा जन्म मेरी जिंदगी में हर तरह से बेंचमार्क साबित हुआ. तुम्हारी मां और मैं उन दिनों करियर को लेकर स्ट्रगल कर रहे थे. अपने पैर जमाने की कोशिश कर रहे थे. तुम्हारे जन्म के दो महीने बाद हम हुबली से मुंबई आ गए और यहां आकर हमें समझ आया कि करियर और बच्चे की परवरिश, दोनों एकसाथ कर पाना मुश्किल है. तब हमनें तय किया कि ये शुरुआती साल तुम्हें अपने दादा-दादी के साथ हुबली में ही रहना चाहिए. ये बहुत ही कठिन फैसला था. मैं हर वीकेंड पर बेलगाम के लिए फ्लाइट लेता और फिर वहां से कार लेकर तुम्हें मिलने पहुंच जाता. मेरे लिए ये खर्च उठाना मुश्किल था लेकिन मैं क्या करता, तुम्हें देखे बिना मैं रह भी नहीं सकता था.
मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि मैंने अपने बच्चों को क्या शिक्षा दी है. मैं ये सवाल करने वालों से हमेशा कहता हूं कि ये सबसे बड़ी जिम्मेदारी तुम्हारी मां ने निभाई और बहुत ही अच्छे से निभाई. उन्होंने तुम्हें मानवीय मूल्यों के बारे में बताया. उन्होंने तुम्हें और रोहन को हमेशा सादगी का पाठ सिखाया. तुम्हें शायद वो वाकया याद हो जब हम बेंगलोर में थे. तुम्हारा सेलेक्शन स्कूल ड्रामा के लिए हुआ था और तुम्हें एक स्पेशल ड्रेस की जरूरत थी. उस समय हमारे पास इतने पैसे नहीं थे कि हम मूलभूत जरूरतों के अलावा किसी भी दूसरी चीज पर कुछ खर्च कर सकें. तुम्हारी मां ने तुम्हें ड्रामा में हिस्सा लेने से मना कर दिया. हालांकि उस समय तो तुमने कुछ नहीं कहा था लेकिन बाद में तुम्हीं ने मुझे बताया कि तुम्हें मां का ऐसा कहना अच्छा नहीं लगा था. पर अक्षता हमें पता था कि तुम एक न एक दिन इस तपस्या के महत्व को जरूर समझोगी. मुझे ये भरोसा था कि तुम सादगी की खूबसूरती को समझोगी.
कुछ समय बाद भले ही हमारे पास पैसे आ गए लेकिन हमारा लाइफस्टाइल तब भी साधारण ही रहा. मुझे याद है तुम्हारी मां और मेरे बीच बच्चों को कार से स्कूल भेजने को लेकर काफी बात हुई थी. मैं चाहता था कि अब तुम कार से स्कूल जाया करो तो तुम्हारी मां ने साफ मना कर दिया. वो तुम्हें तुम्हारे दोस्तों के साथ रिक्शे में ही भेजती रही और फिर तुमने इसी बहाने कितने सारे दोस्त बनाए...है न. दुनिया में सादगी से बढ़कर खुशी किसी भी दूसरी चीज में नहीं और इसकी कोई कीमत भी नहीं...
तुम मुझसे अक्सर पूछा करती थी कि हमारे घर में टेलीविजन क्यों नहीं है जबकि तुम्हारे सारे दोस्तों टीवी पर देखी गई चीजों के बारे में ही बातें करते रहते थे. तुम्हारी मां ने बहुत पहले से ही तय कर लिया था कि हमारे घर टेलीविजन नहीं होगा. इस समय को हम पढ़ाई करने, डिस्कशन करने और दूसरे कामों को पूरा करने में लगाएंगे.
तुम जानती ही होगी कि जब एक पिता अपनी बेटी को विदा करता है तो उसके मन में कितनी मिली-जुली फीलिंग्स होती हैं. वो इस बात से चिढ़ता है कि अब उसकी बेटी का प्यार कोई और भी साझा करने आ गया है. तुम्हें बताऊं, जब तुमने मुझे ये बताया कि तुमने अपना जीवनसाथी तलाश लिया है तो मैं भी थोड़ा उदास हो गया था. पर जब मैं ऋषि से मिला तो मुझे ये समझने में देर नहीं लगी कि तुमने उसे क्यों चुना है. वो स्मार्ट है, वो समझदार है लेकिन सबसे जरूरी वो ईमानदार है. कुछ वक्त पहले ही तुमने मेरी तरक्की कर दी और मैं नाना बन गया. जब पहली बार तुम्हारी बेटी कृष्णा को गोद में उठाया तो जो महसूस हुआ वो मैं शब्दों में नहीं बयां कर सकता.
अक्षता, तुम्हें भी ये बात पता है कि हमारे पास यही एक दुनिया है. पर इस दुनिया में तरह-तरह के संकट हैं. ये तुम्हारी जिम्मेदारी है कि तुम कृष्णा को एक ऐसी दुनिया दो जहां कोई तकलीफ नहीं हो. हमसे तुम्हें जो कुछ भी मिला, तुम कृष्णा को उससे बेहतर दो.
मेरी बच्ची, अपना ध्यान रखना...
प्यार सहित, अप्पा