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जब मिनटों में तबाह हुआ था केदारनाथ धाम, मंदिर को नहीं हुआ था नुकसान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज केदारनाथ मंदिर जाएंगे. कपाट बंद होने से पहले पीएम यहां पूजा अर्चना करेंगे. आज पीएम मोदी यहां पर कई जीर्णोद्धार योजनाओं की शुरुआत करेंगे. जिसमें केदारपुरी के पुनर्निर्माण की योजना भी शामिल है.

2013 में आई थी तबाही 2013 में आई थी तबाही
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 20 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 10:33 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज केदारनाथ मंदिर जाएंगे. कपाट बंद होने से पहले पीएम यहां पूजा अर्चना करेंगे. आज पीएम मोदी यहां पर कई जीर्णोद्धार योजनाओं की शुरुआत करेंगे. जिसमें केदारपुरी के पुनर्निर्माण की योजना भी शामिल है. 2013 में यहां आई तबाही से काफी नुकसान हुआ था, कई लोगों की जान चली गई थी. तब से अभी तक इसे संवारने का काम चल रहा है. अब पीएम मोदी इन योजनाओं से काम में तेजी लाना चाहते हैं.  

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क्या हुआ था 16 जून 2013 की रात को

16 जून 2013 की रात केदारनाथ में घड़ियाल, शंख और श्लोक आखिरी बार गूंजे थे. इसके बाद प्रलंयकर की नगरी में जल प्रलय आ गई. इस जल प्रलय ने केदार घाटी की शक्ल बदल दी. शहर को वीरानी और मौत की चादर ने ढक लिया. केदारनाथ में सलामत बचा तो बस केदारनाथ मंदिर.

ना होटल बचे ना धर्मशाला, ना जिंदगी बची और ना ही कुदरत की खूबसूरती. हजारों लोग जल प्रवाह में समा गए. जलप्रलय की धारा इतनी तेज थी कि पूरे केदारनाथ धाम में उसके बहने के निशान सैकड़ों फीट ऊपर से भी साफ नजर आते थे.

बदल गया था मंदाकिनी का रुख  

केदरानाथ के पड़ोस में बहने वाली नदी मंदाकिनी की धारा का रुख बदल गया. पूरे उत्तराखंड की नदियां किनारे तोड़कर बहने लगीं. देवभूमि की नदियों के प्रचंड प्रवाह में देव और महादेव भी बह गये. पूरा उत्तराखंड खंड खंड हो गया. पहाड़ सरक गए, सड़कें धसक गईं.

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हर ओर जल प्रलय का कोलाहल था, नदियों का प्रचंड वेग था, उफनती धाराएं थीं, मौत की चीत्कार थी और हर माथे पर चिंता की लकीरें थीं. पूरे उत्तराखंड की नदियों में मानव की बस्तियां समा गईं लेकिन जो कुदरत को जानते हैं वो कहते हैं कि बरसों मंथर बहती रहीं नदियां अपनी जमीन पाने को उमड़ीं थी.

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