Advertisement

सहयोगी छोड़ते जा रहे साथ, कैसे पार लगेगी 2019 में BJP की नैय्या

2019 के लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है, ऐसे में अपनों की नाराजगी सामने आना भी लाजिमी है. सत्ताधारी बीजेपी भी इससे अछूती नहीं है और सहयोगी भी आंख दिखाने लगे हैं.

बीजेपी का साथ छोड़ रहे सहयोगी बीजेपी का साथ छोड़ रहे सहयोगी
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 26 जून 2018,
  • अपडेटेड 10:23 AM IST

यूं तो लोकतंत्र में वोट की ताकत सबसे अहम मानी जाती है. लेकिन एक शक्ति सहयोगी दलों की भी होती है, जो सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए बेहद निर्णायक साबित होती है. भारतीय राजनीति के इतिहास की यह सबसे अहम कड़ी भी रही है. यही वजह है कि चुनावी सीजन में गठबंधन दलों की नाराजगी, नेताओं का मान-मनौवल जैसी सरगर्मियां आम हो जाती हैं. अब जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है, अपनों की नाराजगी सामने आना भी लाजिमी है. सत्ताधारी बीजेपी भी इससे अछूती नहीं है. बीजेपी के सहयोगी भी उसे आंख दिखाने लगे हैं. सत्ता का स्वाद चखने के बाद किसी ने दामन छोड़ दिया है, तो कोई शर्तें लागू कर आगे का रास्ता तय करना चाहता है. यानी 50 सालों तक देश पर शासन करने का प्रण ले चुकी बीजेपी को अब अपनों का सितम चिंता में डाल सकता है.

Advertisement

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इतिहास रचते हुए 282 सीटों पर जीत दर्ज की. यह पहला मौका था जब बीजेपी को प्रचंड बहुमत प्राप्त हुआ. 26 मई 2014 को एनडीए की सरकार बनी और नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. उनके साथ एनडीए के सहयोगी शिवसेना और टीडीपी समेत बाकी दलों के कोटे से भी मंत्रियों ने शपथ ली. लेकिन जैसे-जैसे 2019 का चुनाव करीब आता रहा, टीडीपी और शिवसेना की नाराजगी खुलकर सामने आती गई.

टीडीपी ने छोड़ा साथ

करीब चार साल मोदी सरकार का हिस्सा रहने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने एनडीए से अलग होने का फैसला किया. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग पर मोदी सरकार से धोखा मिलने के आरोप लगाते हुए मार्च 2018 में टीडीपी ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया. टीडीपी के कोटे से दोनों मंत्रियों ने भी मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया.

Advertisement

टीडीपी एक मजबूत क्षेत्रीय दल के रूप में जाना जाता है. 2014 में पार्टी ने 30 सीटों पर चुनाव लड़ा और 16 पर जीत दर्ज की थी.  दक्षिण भारत में कमजोर मानी जाने वाली बीजेपी को टीडीपी की ताकत का बड़ा फायदा मिल सकता था, लेकिन फिलहाल दोनों की राहें अलग हैं.

शिवसेना अलग लड़ेगी चुनाव!

वैचारिक तौर पर बीजेपी के करीब कही जाने वाली महाराष्ट्र की शिवसेना भी अपनी नाराजगी का ऐलान कर चुकी है. हालांकि, दोनों दल गठबंधन में महाराष्ट्र सरकार चला रहे हैं, लेकिन नोटबंदी जैसे राष्ट्रीय मुद्दों पर शिवसेना बीजेपी के विरोध में खड़ी नजर आई है. दोनों दलों के बीच अक्सर खींचतान की बयानबाजी सामने आती रही है. शिवसेना खुले तौर पर बीजेपी के साथ चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुकी है. हालांकि, मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के मौके पर बीजेपी अमित शाह ने मुंबई जाकर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात जरूर की, लेकिन शिवसेना के तेवर अभी तक कड़वाहट भरे ही नजर आ रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के बाद 2014 में ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था. सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी को शिवसेना ने सहयोग दिया और गठबंधन की सरकार बनी. लोकसभा के समीकरणों की बात की जाए तो राज्य में कुल 48 सीटें हैं. 2014 के चुनाव में शिवसेना ने इनमें से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी को 22 सीटें मिली थीं. ऐसे में शिवसेना का जाना भी बीजेपी को इस बड़े राज्य में भारी नुकसान दे सकता है.

Advertisement

कश्मीर में छूटा साथ

जम्मू-कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी हालांकि केंद्र सरकार में एनडीए का हिस्सा नहीं रही, लेकिन 2014 के आखिर में जब कश्मीर विधानसभा चुनाव हुए तो किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ. जिसके बाद बीजेपी ने पीडीपी को समर्थन का ऐलान किया और मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में पीडीपी ने सरकार बनाई. मुफ्ती सईद की मौत के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने सूबे की कमान संभाली. दोनों दलों के बीच वैचारिक मतभेद होने के बावजूद ये गठबंधन चार साल तक चलता रहा और आखिरकार इसी महीने (जून 2018) बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया.

लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर में पीडीपी मजबूत स्थिति में है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच पार्टी को राज्य की 6 लोकसभा सीटों में 3 पर जीत मिली थी. जबकि बाकी 3 सीटों पर बीजेपी ने परचम लहराया था. अब जबकि 2019 का चुनाव आने वाला है, तो उससे पहले ही दोनों दलों के संबंध खत्म हो चुके हैं.

बिहार में नहीं बन रही बात!

बिहार में जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन तोड़कर फिर से बीजेपी के साथ सरकार बनाई है. लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर दोनों दलों के बीच अब तक सब सही नहीं चल रहा है. सीटों के बंटवारे पर दोनों पार्टियों के नेताओं में बयानबाजी हो रही है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जहां बीजेपी के स्थानीय नेता अलग चुनाव लड़ने की कोशिश को बल दे रहे हैं, वहीं जेडीयू ने साफ तौर पर कह दिया है कि बीजेपी चाहे तो अकेले सभी 40 सीटों पर लड़ सकती है.

Advertisement

दरअसल, यहां बीजेपी 2014 के फॉर्मूले पर सीटों का बंटवारा चाहती है. 2014 में बीजेपी ने 40 में से 22 सीटों पर जीत हासिल की थी. पार्टी पिछले लोकसभा चुनावों के परिणाम के आधार पर ही समझौता करना चाहती है. जबकि बीजेपी के इस आधार को जेडीयू गलत मान रही है. जेडीयू का कहना है कि 2019 को 2014 न समझा जाए. खबर ये है कि जेडीयू जहां 25 सीटों की मांग कर रही है, तो वहीं बीजेपी 22 सीटों से कम पर लड़ने को राजी नहीं है. हालांकि, 2014 में जेडीयू को महज 2 सीटों पर जीत मिली थी.

इन बड़े दलों के अलावा छोटे दल भी बीजेपी के लिए फांस बने हुए हैं. यूपी सरकार में सहयोगी भारतीय सुहेलदेव पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर खुले तौर पर बीजेपी के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं. ऐसे में एक तरफ जहां कांग्रेस तमाम बीजेपी विरोधी दलों को एकजुट कर नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने की योजना पर काम कर रही है, वहीं लंबी पारी खेलने का प्रण लेने वाली बीजेपी के अपने ही खिलाड़ी उसके गले की हड्डी बनते दिखाई दे रहे हैं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement