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मोदी सरकार क्यों बदलना चाह रही है GDP का बेस ईयर, क्या है पूरा मामला

सरकार सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लिए नए बेस ईयर लाने की तैयारी कर रही है. इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है. पिछले साल जब केंद्र सरकार ने जीडीपी के वैल्युएशन के तरीके में बदलाव किया था तो विपक्ष ने इसकी आलोचना की थी.

जीडीपी के बेस ईयर में बदलाव की तैयारी जीडीपी के बेस ईयर में बदलाव की तैयारी
दिनेश अग्रहरि
  • ,
  • 06 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 7:16 AM IST

  • मोदी सरकार जीडीपी के बेस ईयर में बदलाव की तैयारी कर रही
  • जीडीपी मापने के बेस ईयर को सरकारें समय-समय पर बदलती रहती हैं
  • इसके पहले पांच साल पहले बेस ईयर बदलकर 2011-12 किया गया था

सरकार सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लिए नए आधार वर्ष (बेस ईयर) लाने की तैयारी कर रही है. इसको लेकर तमाम तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. मोदी सरकार के लिए जीडीपी में लगातार कम बढ़त चिंता की बात रही है, ऐसे में उसके किसी भी कदम पर अक्सर विपक्ष काफी हो-हल्ला करने लगता है. पिछले साल जब केंद्र सरकार ने जीडीपी के वैल्युएशन के तरीके में बदलाव किया था तो इसकी काफी आलोचना हुई थी. आइए जानते हैं कि क्या होती है जीडीपी और क्या है बेस ईयर का खेल.

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सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MOSPI) जीडीपी के लिए 2017-18 को नया बेस ईयर यानी आधार वर्ष बनाने पर विचार कर रहा है. अभी जीडीपी का बेस ईयर 2011-12 है. MOSPI सचिव प्रवीण श्रीवास्तव ने हाल में कहा कि MOSPI राष्ट्रीय खातों की एक नई श्रृंखला शुरू करने के लिए काम कर रहा है.

गौरतलब है कि इस साल अप्रैल-जून तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्ध‍ि दर घटकर 5 फीसदी रह गई है. करीब 7 साल में भारत के विकास दर की यह सबसे सुस्त रफ्तार है. अहम बात यह है कि जीडीपी के मामले में हम बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे हो गए हैं.  पिछले पांच साल (2014-15 से 2018-19) में भारत की औसत जीडीपी बढ़त दर 7.6 फीसदी ही रही है.  

क्या होता है GDP

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किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है.

जीडीपी दो तरह की होती है नॉमिनल जीडीपी और रियल जीडीपी. नॉमिनल जीडीपी सभी आंकड़ों का एक कच्चा योग होता है, लेकिन रियल जीडीपी में महंगाई के असर को भी समायोजित कर लिया जाता है. यानी अगर किसी वस्तु के मूल्य में 10 रुपये की बढ़त हुई है और महंगाई 4 फीसदी है तो उसके रियल मूल्य में बढ़त 6 फीसदी ही मानी जाएगी. भारत में जो आंकड़े जारी किए जाते हैं वह रियल जीडीपी के होते हैं.

जीडीपी किसी देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा पैमाना है. अगर जीडीपी बढ़ता है तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा कर रही है. इसका यह भी मतलब है कि लोगों की आर्थिक समृद्धि‍ बढ़ रही है.

कैसे होती है जीडीपी की गणना

भारत में जीडीपी की गणना तिमाही-दर-तिमाही होती है. जब जीडीपी में राष्ट्रीय जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो प्रति व्यक्ति जीडीपी निकलती है. भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है.

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इसके लिए देश में जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है इन सबको जोड़ दिया जाता है. इसके अलावा कुल निर्यात में से कुल आयात को घटा दिया जाता है और इस तरह जो आंकड़ा सामने आता है, उसे भी ऊपर किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है. यही देश की कुल जीडीपी होती है.

कौन तय करता है GDP

जीडीपी को नापने की जिम्मेदारी सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत आने वाले सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की है. यह ऑफिस ही पूरे देश से आंकड़े इकट्ठा करता है और उनकी कैलकुलेशन कर जीडीपी का आंकड़ा जारी करता है.  

क्यों बदलता रहता है आधार वर्ष

जीडीपी को तय करने के लिए आधार वर्ष तय किए जाते हैं. यानि उस आधार वर्ष में देश का जो कुल उत्पादन था,  उसकी तुलना में अर्थव्यवस्था का आकार कितना बढ़ा है या घटा है, उसे ही जीडीपी की दर मानी जाती है.

सरकार समय-समय पर बेस ईयर में बदलाव इसलिए करती है ताकि देश की अर्थव्यवस्था के बारे में आंकड़ों का दुनिया के हिसाब से तालमेल रखा जा सके. ऐसा माना जाता है अर्थव्यवस्था के सही आकलन के लिए हर पांच साल पर बेस ईयर बदल देना चाहिए. साल 2015 में सरकार ने जीडीपी सीरीज का बेस ईयर 2004-05 से बदलकर 2011-12 कर दिया था.

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क्यों होता है विवाद

पिछले साल सरकार ने जीडीपी में गणना के तरीके में कुछ बदलाव कर दिया था, जिसको लेकर विवाद हो गया था. असल में सरकार ने कहा था कि बेस ईयर बदलने के बाद उसके पिछले वर्षों में जारी जीडीपी आंकड़ों में भी बदलाव किए जाने चाहिए.

सरकार ने उचित तुलना के लिए इस आधार पर बैक सीरीज जारी किए थे, और इसकी वजह से वित्त वर्ष 2006 से 2012 के बीच के जीडीपी आंकड़ों में कटौती कर दी गई थी, जबकि वे मनमोहन सिंह के दौर के ऊंचे जीडीपी वाले साल थे. यूपीए सरकार के छह साल (वित्त वर्ष 2006 से 2012) के दौरान औसत जीडीपी बढ़त को 7.75 फीसदी से घटाकर 6.82 फीसदी कर दिया गया. इसको लेकर सरकार को विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ा था.

इसके पहले साल 2015 में सरकार ने जीडीपी की गणना के तरीके में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव भी किए थे. इसके पहले तक जीडीपी को नापने के लिए कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र को जगह दी जाती थी. इसके तहत कृषि क्षेत्र में पशुपालन, मछली पालन, बागवानी और अन्य कई सेक्टरों को जोड़ दिया गया, जिससे कृषि क्षेत्र में उत्पादन का आंकड़ा बढ़ गया. ठीक इसी तरह से उत्पादन क्षेत्र में पहले टीवी और स्मार्टफोन से आने वाले पैसे को जगह नहीं दी जाती थी. 2015 में हुए बदलाव में इन सेक्टरों को भी शामिल किया गया है.  इसको लेकर भी आलोचकों ने कहा कि सरकार किसी भी तरह से जीडीपी के आंकड़े बढ़ा- चढ़ाकर दिखाने की कोशि‍श कर रही है.

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