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इस देश का गरीब किसी के टुकड़ों पर पलने की इच्छा नहीं रखता: मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में राष्‍ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए जैसे ही बोलना शुरू किया वैसे ही विपक्षी बेंच से शोरशराबा शुरू हो गया. उसके बाद मोदी ने बोलना शुरू किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
आज तक ब्‍यूरो
  • नई दिल्‍ली,
  • 12 जून 2014,
  • अपडेटेड 9:34 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में राष्‍ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा का जवाब देते हुए जैसे ही बोलना शुरू किया वैसे ही विपक्षी बेंच से शोरशराबा शुरू हो गया. उसके बाद मोदी ने बोलना शुरू किया.

मोदी ने कहा, इस सदन की संसदीय परंपरा बहुत ही उच्च रही है. सदन में काफी अनुभवी, तीन-चार दशक से राष्ट्र के सवालों को उजागर करने वाले, सुलझाने वाले, लगातार प्रयत्न करने वाले वरिष्ठ महानुभाव भी इस सदन में विराजमान हैं. मुझ जैसा नया व्यक्ति कुछ कह रहा है, सदन की गरिमा मर्यादा में कुछ कमी रह जाए, तो नया होने के नाते आप मुझे क्षमा करेंगे. ऐसा विश्वास है.

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राष्ट्रपति जी के अभिभाषण पर लोकसभा में 50 से अधिक आदरणीय सदस्यों ने अपने विचार रखे हैं. मैंने सदन में रहते हुए और कुछ मेरे कमरे में बैठकर करीब-करीब सभी भाषण सुने हैं.

ये बात सही है कि ये स्वर आया है कि आपने इतनी सारी बातें बताई हैं, कैसे करोगे, कब करोगे. मैं मानता हूं कि एक सही विषय को स्पर्श किया है और ये मन में आना बहुत स्वाभाविक है. मैं एक अनुभव बताता हूं अपना. नया नया गुजरात में मुख्यमंत्री बनकर गया था. एक बार सदन में कह दिया कि मैं गुजरात के गांव-घर में 24 घंटे बिजली पहुंचाना चाहता हूं. सत्ता पक्ष ने तालियां बजाईं, विपक्ष में सन्नाटा था. हमारे विपक्ष के नेता थे, चौधरी अमर सिंह. कांग्रेस के वरिष्ठ और सुलझे नेता. बाद में समय लेकर मिलने आए. बोले मोदी जी कहीं चूक तो नहीं हो रही. आप नए हो. 24 घंटे बिजली कैसे दोगे. उन्होंने मित्र भाव से चिंता जाहिर की. मैंने कहा. ये मेरा विचार है, हम करेंगे. वह बोले कैसे करोगे. उनके मन में यह विचार आना स्वाभाविक था. मुझे यकीन था, और ये हो गया.

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इसलिए वरिष्ठ महानुभावों के मन में विचार आना स्वाभाविक है. अभी तक नहीं हुआ तो कैसे होगा. मगर मैं सदन को विश्वास दिलाता हूं कि राष्ट्रपति ने जो रास्ता प्रस्तुत किया है, उसे पूरा करने में हम कोई कोताही नहीं बरतेंगे. हमारे लिए राष्ट्रपति जी का अभिभाषण ये सिर्फ परंपरा का हिस्सा नहीं है. हमारे लिए उनके माध्यम से कही हर बात पवित्र बंधन का दर्जा रखती है. उसे पूरा करने का हमारा प्रयास भी है औऱ यही बात हमारी प्रेरणा भी बन सकती है. इसलिए राष्ट्रपति जी के अभिभाषण को आने वाले समय के लिए, हमने हमेशा एक गरिमा भी देनी चाहिए, गंभीरता भी देनी चाहिए. सदन में हम सबको मिलकर उसे पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए.

छोटी मोटी नोक झोंक जरूरी
जब मतदान हुआ, तब मतदान होने तक हम सब उम्मीदवार थे, लेकिन सदन में आने के बाद हम जनता के उम्मीदों के दूत हैं. हम जनता की उम्मीदों के रखवाले हैं. किसी का काम उसे पूर्ण करना होगा. अगर कोई कमी रह जाती है तो कुछ का काम उस पर उंगली उठाना होगा, ताकि काम पूरे हों. छोटी मोटी नोक झोंक जरूरी होती है. लेकिन मुझे सदन में पूरी तरह सकारात्मक विचार नजर आया. जो मुद्दे उठाए गए, उनमें आशा थी. इस संसद में आप कहीं भी बैठे हों, जनता की आशा सबकी आवाज में प्रतिध्वनित हुई है. ये भारत के भाग्य के लिए एक शुभ संकेत है.

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कई वर्षों के बाद देश ने स्थिर शासन के लिए, विकास के लिए, सुशासन के लिए मत देकर पांच साल के लिए विकास की यात्रा को सुनिश्चित किया है. भारत के मतदाताओं की ये चिंता और उनका चिंतन, अब उन्होंने हमें जो जिम्मेदारी दी है, उसे हमें परिपूर्ण करना है. लेकिन एक बात हमें सोचनी होगी. कि दुनिया के अंदर भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश, उस रूप में तो हमारा उल्लेख होता है. लेकिन क्या समय की मांग नहीं है कि विश्व के सामने हम कितनी बड़ी लोकतांत्रित शक्ति हैं. हमारी परंपराएं कितनी ऊंची हैं. हमारे सामान्य से सामान्य व्यक्ति के मन में लोकतंत्र के प्रति कितनी जागरूकता है. क्या हमने दुनिया के सामने इस ताकत को सही रूप में प्रस्तुत किया है. इस चुनाव के बाद हमारा सामूहिक दायित्व बनता है कि हम विश्व को प्रभावित करें. पूरा यूरोप और अमेरिका में मिलकर जितने मतदाता हैं. उससे ज्यादा लोग चुनाव में शरीक होते हैं. क्या हमने इस सामर्थ्य को प्रकट किया है.

ये सही है कि कुछ बातों में 12 सौ साल की गुलामी की मानसिकता प्रभावित करती है. सर ऊंचा कर बात करने की हिम्मत कम पड़ती है. कभी कभी चमड़ी का रंग भी असर दिखाता है. उन सब बातों से मुक्त होकर अब विश्व के सामने ताकतवर रूप में प्रस्तुत होने का, आंख से आंख मिलाकर, सीना तानकर भारत के 125 करोड़ लोगों की ताकत को सामने रखा जाएगा. उसका एजेंडा हम रखेंगे.

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इस देश का गरीब किसी के टुकड़ों पर पलने की इच्छा नहीं रखता
भाइयों बहनों, माननीय अध्यक्ष महोदय जी, देश, इस पर सबसे पहला अधिकार किसका है. सरकार किसके लिए होनी चाहिए. क्या सरकार सिर्फ पढ़े लिखे लोगों के लिए हो. क्या सरकार सिर्फ इन गिने लोगों के लाभ के लिए हो. सरकार गरीबों के लिए होनी चाहिए. अमीर को अपने बच्चे को पढ़ाना हो, वो किसी भी स्कूल और टीचर को हायर कर सकता है. कोई बीमार हो गया तो सैकड़ों डॉक्टर उसके यहां आकर खड़े हो सकते हैं. गरीब कहां जाए. उसके नसीब में तो सरकारी स्कूल औऱ अस्पताल है. इसलिए सरकार का ये सबसे पहला दायित्व होता है कि वे गरीबों की सुनें और गरीबों के लिए जिएं. अगर हम सरकार का कारोबार गरीबों के लिए नहीं चलाते हैं. गरीबों की भलाई के लिए नहीं चलाते हैं, तो ये देश की जनता हमें कभी माफ नहीं करेगी.

और इसलिए माननीय अध्यक्ष महोदया जी. इस सरकार की पहली प्राथमिकता है. और हम तो दीनदयाल जी के आदर्शों में पले लोग हैं. जिन्होंने अंत्योदय की बात कही. गांधी-लोहिया और दीनदयाल जी, इन तीनों महापुरुषों ने एक ही रास्ता दिखाया कि समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति तक संसाधन और सहायता पहुंचाई जाए. गरीब के अंदर वह ताकत लानी है, ताकि वह जूझ सके. गरीबी के खिलाफ लड़ाई का सबसे बड़ा औजार होता है, शिक्षा. अंध श्रद्धा से मुक्ति. अगर अशिक्षा से हम बाहर लाने में सफल होते हैं, तो इस देश का गरीब किसी के टुकड़ों पर पलने की इच्छा नहीं रखता है. वह अपने बलबूते अपनी दुनिया बनाने के लिए तैयार है. हम उसकी इस मूलभूत ताकत को पकड़ बल देने का प्रयास करें. अगर सरकार की योजनाएं इसमें मदद करें. शासन की सारी व्यवस्थाएं उस आखिरी छोर में बैठे व्यक्ति के कल्याण के लिए हों. तब बात बनेगी.

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सुविधा शहर की हो, आत्‍मा गांव की
हम सदियों से सुनते आए हैं. भारत किसानों का, गांवों का देश है. ये नारे सुनने में अच्छे लगते हैं. पर क्या हम सीने पर हाथ रख कह सकते हैं कि हम इनकी सूरत बदल पाए हैं. हम किसी सरकार की आलोचना के लिए खड़े नहीं हुए हैं. ये सामूहिक दायित्व है कि हम उसे प्राथमिकता दें. राष्ट्रपति जी के भाषण में उस बात को करने की हमने कोशिश की. यहां विषय आया, कैसे करेंगे.

सुविधा दी जाए तो गांव देंगे विकास में ज्यादा योगदान
जहां सुविधा शहर की हो. आत्मा गांव की हो. गांव की पहचान, गांव की आत्मा में बनी हुई है.गांव में बारात आती है तो पूरे गांव को लगता है कि हमारा बारात आई है. लेकिन हमारे गांव के लोगों को हम आधुनिक सुविधा से वंचित रखेंगे क्या. मैं अनुभव से कहता हूं कि गांव को आधुनिक सुविधा दी जाए तो वह देश के विकास में ज्यादा योगदान देंगे. अगर गांव को 24 घंटे बिजली, इंटरनेट कनेक्शन, स्कूली पढ़ाई मिले. हो सकता है कि गांव में उत्तम शिक्षक न हो. मगर हम सैटेलाइट के जरिए, आधुनिक विज्ञान के जरिए शहर में बैठे ज्यादा काबिल शिक्षक के जरिए उसे अच्छे से पढ़ा सकते हैं. अगर गांव के नौजवान को रोजगार मिल जाए तो वह मां-बाप को छोड़कर क्यों जाए.

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जो लोग पूछ रहे हैं, कैसे करेंगे, उनको जवाब
गांव में उद्योग फैले, एग्रो बेस्ड इंडस्ट्री बने, इस ताकत को हम स्वीकार करें तो किसान का गांव का जीवन बदल सकता है. सिक्किम छोटा सा राज्य, कम आबादी, मगर महत्वपूर्ण काम किया. सिक्किम प्रदेश का हर उत्पाद ऑर्गेनिक होने वाला है. आज पूरी दुनिया में होलिस्टिक हेल्थ केयर की चिंता करने वाला वर्ग है. वे इसके लिए दाम देने को तैयार हैं. सिक्किम के किसानों ने जो किया, उसे पूरा देश कर सकता है. हमारी चिंता है कि पूरे नॉर्थ ईस्ट को हम ऑर्गेनिक स्टेट के रूप में उभारें, विश्व के बाजार पर कब्जा करने के लिए सरकार उनकी मदद करे. तो कितना बड़ा बदलाव आ सकता है.

हमारी इतनी कृषि यूनिवर्सिटी हैं. रिसर्च हो रही है. मगर जो लैब में है, वह लैंड में नहीं है. यह दुर्भाग्य है. हमें आधुनिक कृषि की तरफ जाने की जरूरत है. गुजरात में हमने स्वाइल हेल्थ कार्ड का कदम उठाया. किसान को पता चला कि उसकी जमीन किस फसल के लिए स्वस्थ है. कार्ड बनने से उसे पता चला कि वह गलत फसल पैदा कर रहा था, ज्यादा उर्वरक इस्तेमाल करता था. जब कार्ड बन गया, तो उसकी लागत बची और उत्पादन बढ़ा. क्या यह पूरे देश में लागू नहीं हो सकता.

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जो लोग पूछ रहे हैं कैसे करेंगे. उन्हें बता रहा हूं. हमारे एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट छुट्टी में गांव जाते हैं. पूरे हिंदुस्तान में 10+2 के कॉलेज में लैब होती है, उसे स्वाइल टेस्ट लैब बनाया जाए. छुट्टी के दौरान उस लैब में स्वाइल टेस्ट करें. जो कमाई होगी, उससे कृषि के छात्रों और स्कूल दोनों को फायदा होगा. छोटे छोटे प्रयोग करने होंगे. रेलवे की आदत क्या है. मंडे को जो माल आए, वह एक हफ्ते तक चला जाना चाहिए. मंडे को मार्बल आता है, ट्यूसडे को टमाटर आता है. मार्बल पहले जाता है, टमाटर बाद में. हम सेंसिटिव क्यों नहीं हैं.

गरीब के घर में शाम का चूल्हा जलना चाहिए
हमारी आईटी फील्ड में पहचान बनी. मगर हमारे पास एग्रो प्रॉडक्ट का रियल टाइम डाटा नहीं है. क्या हम यह डाटा नहीं बना सकते. हमने महंगाई दूर करने का वादा किया है. हम प्रामाणिकता से प्रयास के लिए प्रतिबद्ध हैं. इसलिए नहीं कि ये सिर्फ चुनावी वादा है. हमारी सोच है कि गरीब के घर में शाम का चूल्हा जलना चाहिए. गरीब के बेटे शाम को आंसू पीकर नहीं सोएंगे.

देश में अन्न के भंडार की कमी नहीं है. व्यवस्था की कमी है. रियल टाइम डाटा हो. सरकार को पता हो. जहां कमी हो, वहां फौरन भेजा जाए. उसी हिसाब से गोदाम बनें. फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया, सालों से ढांचा चल रहा है. उसकी व्यवस्था को सुधार दिया जाए, तो मैं दावे से कहता हूं कि हम चीजों को बदल सकते हैं.

बरसों से दलहन में रिसर्च नहीं हो रहा. लोगों को इसी से प्रोटीन मिलता है. अगर कुपोषण के खिलाफ लड़ाई लड़नी है तो इस पर काम करना होगा. बरसों से हम दलहन में न तो उत्पादन में बढ़त ले पाएं हैं, न ही इसके पोषक तत्वों में. ये एक बड़ी चुनौती है. हम कृषि वैज्ञानिकों को इसके लिए प्रेरित करें.

'पुणे और यूपी की बर्बर घटनाओं पर कठोरता से काम करेंगे'
भारत को विकास यात्रा में हमारी जो पचास टका जनसंख्या है. हमारी मां-बहनें हैं, उन्हें आर्थिक उन्नति से जोड़ना होगा. हमें उनकी सक्रिय भागीदारी, उनका सम्मान और सुरक्षा की चिंता करनी होगी. पिछले दिनों जो कुछ घटनाएं घटी हैं. हम सत्ता में हों न हों. पीड़ा करने वाली घटना है. चाहे पुणे की हत्या हो. चाहे उत्तर प्रदेश की हत्या हो. मंडी की घटना हो. हमारी बहनों के साथ हुए बलात्कार हों. ये सब घटनाएं आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करती हैं. सरकार को कठोरता से काम करना होगा. देश इंतजार नहीं करेगा. हमारी अपनी आत्मा माफ नहीं करेगी.

मैं तो राजनेताओं से अपील करता हूं. बलात्कार की घटनाओं का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करना बंद करें. हमें शोभा नहीं देता. हम मां बहनों की गरिमा पर खिलवाड़ करते हैं. किस राजनीतिक स्तर पर पहुंच गए हैं. हमें इस प्रकार की बयानबाजी करना शोभा देता है क्या. क्या हम मौन नहीं रह सकते. और इसलिए नारी का सम्मान, नारी की सुरक्षा, ये हम सबकी सवा सौ करोड़ देशवासियों की प्राथमिकता होनी चाहिए.

चीन बूढ़ा हो रहा, भारत जवान
ये देश 65 फीसदी जनसंख्या, 35 से कम आयु की है. हम कितने सौभाग्यशाली हैं. हम उस युग में जीवित हैं, हम उस संसद में बैठे हैं, जब हिंदुस्तान दुनिया का सबसे नौजवान देश है. डेमोग्राफिक डिवीजन, इस ताकत को हम पहचानें. पूरी दुनिया को स्किल्ड लेबर पावर की जरूरत है. हमारे पड़ोस में चीन बूढ़ा होता जा रहा है, हम नौजवान होते जा रहे हैं. ये एडवांटेज है. इसलिए दुनिया के सभी देशों का एक ही एजेंडा रहता है, स्किल डिवेलपमेंट. यही हमारी भी प्राथमिकता होनी चाहिए. हमें श्रम एव जयते, इसे चरितार्थ करना चाहिए.

'स्कैम इंडिया को स्किल इंडिया बनाना है'
हमारी दुनिया में पहचान बन गई है, स्कैम इंडिया. हमारे देश की पहचान हमें बनानी है, स्किल इंडिया की. और उस सपने को हम पूरा करेंगे. एक अलग मंत्रालय बनाकर. एंटरप्रेन्योरशिप और स्किल डिवेलपमेंट बनाकर. हमारे यहां पूछते हैं, क्या. दादा धर्माधिकारी की किताब पढ़ी थी बचपन में. महात्मा गांधी और विनोबा जी के साथ रहते थे. नौजवान नौकरी लेने गया. उन्होंने पूछा क्या करते हो. उन्होंने कहा, मैं ग्रेजुएट हूं. दादा ने पूछा, क्या आता है. उसने कहा, मैं ग्रेजुएट हूं. दादा ने फिर पूछा कि आता क्या है. वह फिर बोला, मैं ग्रेजुएट हूं. हम इस बात से अनुभव कर सकते हैं कि जिंदगी में गुजारा करने के लिए हाथ में हुनर होना चाहिए, सिर्फ डिग्री से काम नहीं चलेगा. स्किल डिवेलपमेंट करना होगा, उसका सामाजिक स्टेटस भी बनाना होगा.

'मुसलमानों की स्थिति में नहीं हुआ कोई बदलाव'
गांव का बच्चा गरीबी के चलते सातवीं के बाद स्कूल छोड़ देता है. हुनर सीखता है. मगर समाज बाद में भी कहता रहता है, अच्छा सातवीं पास हो. हमने उनके हुनर के काम को डिग्री से छोड़ दिया. आईटीआई के दो साल के डिप्लोमा को दसवीं के बराबर बना दिया. आज हिंदुस्तान दुनिया को मैथ्स और साइंस के टीचर दे सकता है. व्यापारी बाहर जाएगा तो पूंजी लाएगा. शिक्षक बाहर जाएगा तो पूरी पीढ़ी लेकर आएगा. दलित हो, पीड़ित हो, शोषित-वंचित हो. वनवासी भाई बहन हो. मैं ये नहीं कह रहा कि पहले की सरकार में गंभीरता नहीं थी. मगर हकीकत ये है कि उनके हालात नहीं बदले. क्या हम पुराने ढर्रे से बाहर आने को तैयार हैं.

मेरे मुसलमान भाई. जब मैं छोटा था, देखता था साइकिल रिपेयर कर रहे हैं. आज उनकी तीसरी पीढ़ी भी वही काम कर रही है. इसमें बदलाव के लिए हमें फोकस्ड एक्टिविटी करनी होगी. इसमें मैं तुष्टिकरण नहीं, बदलाव लाने के तौर पर देखता हूं. कोई भी शरीर, अगर एक भी अंग विकलांग हो, तो शरीर स्वस्थ नहीं हो सकता. अगर वह दुर्बल रहा, तो समाज सशक्त नहीं रह सकता. और हम हर कमजोर तबके के विकास के लिए प्रतिबद्ध हैं.

'गांधी के आजादी आंदोलन से लें प्रेरणा'
हमें विकास की एक नई परिभाषा की तरफ जाना होगा. देश में आजादी की लड़ाई 1200 साल के कालखंड में कोई वर्ष ऐसा नहीं गया, जब राजधानी के लिए मारामारी न हो. 1857 के बाद पूरा देश संघर्ष जूझता रहा. सिलसिला चलता रहा. देश के लिए बलिदान का सिलसिला चलता रहा. अंडमान की जेल भरी पड़ी थी. लेकिन ये महात्मा गांधी का बहुत बड़ा योगदान था, जिसे इतिहास को स्वीकार करना होगा. आजादी के लिए मरने की ललक रखने वालों की संख्या अपार होने के बाद भी ये गांधी जी थे, जिन्होंने आजादी को जन आंदोलन बना दिया. कोई झाड़ू लगाता था, कोई सूत कातता था, कोई किसी को पढ़ाता था और हर कोई कहता था कि मैं आजादी के लिए काम कर रहा हूं.इसे अंग्रेज नहीं समझ पाए.

गांधी जी ने आजादी के आंदोलन को जनांदोलन बनाया. हम उनसे सीखें. प्रेरणा लें. हमें विकास को भी जन आंदोलन बनाना चाहिए. इसे सरकारी कार्यक्रम बनाएंगे, तो वही होगा जो आजादी के लिए लड़ने वालों के साथ पहले हुआ था.

'हर नागरिक समझे अपनी जिम्मेदारी'
देश में हर किसी को लगना चाहिए कि मैं मेरे देश के लिए कर रहा हूं. खेत में किसान, काम करता मजदूर, पढ़ाता शिक्षक, हर कोई सोचे, मैं अपने देश के लिए कर रहा हूं. अगर मैं रास्ते पर कूड़ा भी नहीं फेंकता. समय पर नौकरी पर जाता हूं. तो ये सब भी देश की सेवा है. एक क्रिकेट के मैदान में पूरा देश भारत माता की जय कह खड़ा हो सकता है. तो देश के विकास के लिए भी खड़ा हो सकता है.

पांच साल के बाद महात्मा गांधी की जयंती के 150 साल होने जा रहे हैं. क्या हम ये संकल्प नहीं ले सकते. गांधी जी को स्वच्छता पसंद थी. साबरमती आश्रम की घटनाएं हमने सुनी पढ़ी हैं. क्या हम महात्मा गांधी के चरणों में 150वीं जयंती पर साफ सुधरे भारत को रख सकते हैं.

2022 में देश की आजादी के 75 साल पूरे होंगे. कितने लोगों ने अपनी जवानी खपा दी. कितने लोग फांसी के तख्त पर चढ़ गए. क्या आजादी के 75 साल को एक पर्व की तरह मनाने के लिए अगले 5-8 साल प्रेरणा के केंद्र की तरह रखें. मैं आजादी के बाद पैदा हुआ. मेरे मन में विचार आता है. मुझे देश के लिए मरने का मौका नहीं मिला. लेकिन देश के लिए जीने का मौका तो मिला है.

'मुलायम जी आपका मार्गदर्शन मिले'
अगर मुलायम सिंह जी ने कहा कि उन्होंने सरकार चलाई है, जो मैं करना चाहता हूं. वह कैसे करूंगा0. उनकी सद्भावना के लिए मैं उनका आभारी हूं. लेकिन हमने सपना देखा है, तो पूरा तो करेंगे. कठिनाई आएगी तो आप जैसे अनुभवी लोगों का मार्गदर्शन मिलेगा.

किसी ने कहा कि हमारी नीतियां नए बोतल में पुरानी शराब है. उनको शराब याद आना, बड़ा स्वाभाविक है. लेकिन यह भी कहा कि भई ये तो हमारी बातें हैं, आपने जरा ऊपर नीचे करके रख दी हैं. कोई नई बात नहीं हैं. इसका मतलब जो हम कह रहे हैं वो आपको भी पता था.

एक बार दुर्योधन को पूछा गया कि ये धर्म अधर्म की समझ है या नहीं. तो उसने कहा कि मैं धर्म को जानता हूं, पर मेरी प्रवृत्ति नहीं. सत्य क्या है, अच्छा क्या है, मुझे मालूम है. लेकिन वो मेरे डीएनए में नहीं है.

'हर पार्टी के वरिष्ठ नेता का आशीर्वाद लेंगे'
महाभारत काल पूरा हो चुका है. न पांडव बचे हैं, न कौरव बचे हैं. मगर जनमानस में हमेशा पांडवों की विजय का ही भाव रहा है. विजय हमें सिखाती है. हमें सीखना भी चाहिए. मैं इस सदन को विश्वास देता हूं. हमारे यहां जो सीनियर्स हैं, किसी भी दल के क्यों न हों. उनके आशीर्वाद से हम उस ताकत को प्राप्त करेंगे, जो हमें अंधकार से बचाए. हर पल नम्रता सिखाए. कितनी भी संख्या क्यों न हो. हमें आपके बगैर आगे नहीं बढ़ना है. हमें सामूहिकता का भाव अपनाना है. इन दिनों मॉडल की चर्चा होती है. गुजरात मॉडल. मेरे भाषण सुने होंगे. गुजरात का मॉडल गुजरात में भी एक जिले का मॉडल दूसरे जिले में नहीं चलता है. देश विविधताओं से भरा है. अगर कच्छ के रेगिस्तान का मॉडल वलसाड़ के हरे भरे इलाके में लगाता तो गुजरात कैसे तरक्की करता.

'गुजरात की बदौलत शुरू हुई विकास मॉडल की चर्चा'
गुजरात का दूसरा मॉडल ये है कि हिंदुस्तान के किसी भी कोने में अच्छा हो, उसे हम सीखें. स्वीकार करें. आने वाले दिनों में हम उसे लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं. जो अच्छा है, हम सबका है, उसे लेकर आगे बढ़ेंगे. कल तमिलनाडु की तरफ से बोला गया. हमारा मॉडल गुजरात से अच्छा है. मैं स्वागत करता हूं. कम से कम विकास के मॉडल की बात और तुलना तो शुरू हुई. पहले ये नहीं होता था. गुजरात मॉडल का यही सबसे बड़ा योगदान है.

ये सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं कि गुजरात पीछे रह गया, हम आगे निकल गए. यही प्रतिस्पर्धा है. छोटे राज्य भी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. छत्तीसगढ़, माओवाद के साये में जी रहा राज्य. उन्होंने पीडीएस का क्या मॉडल बनाया है. बहन ममता जी, 34 साल की बुराई से राज्य को बाहर लाने के लिए कितनी मेहनत कर रही हैं. केरल से भी. वहां से मैंने एक जूनियर अफसर को बुलाया. हम सब स्टूडेंट की तरह बैठे, उन्होंने दो घंटे कुटुंब श्री योजना सिखाई. नागालैंड से अधिकारी आए. वहां की एक ट्राइबल योजना की हमें बारीकियां सिखाईं. यही चाहिए.

'लोकतंत्र में आरोप बुरे, आलोचना नहीं'
ये बड़े भाई का व्यवहार नहीं चलेगा. हम मिलकर देश आगे बढ़ाएंगे. इसीलिए हमने सहकारिता के संगठन की बात कही. मुझे विश्वास है माननीय अध्यक्ष महोदया जी. कुल मिलाकर मैं कह सकता हूं कि सार्थक और समर्थन में चर्चा रही है. आलोचना भी हुई है, तो अपेक्षा के संदर्भ में हुई है. मैं इसका स्वागत करता हूं. किसी भी बेंच और दल से अच्छे सुझाव मिले हैं. मैं उनको आलोचना नहीं, मार्गदर्शक मांगता हूं. लोकतंत्र में आरोप बुरे होते हैं, आलोचना तो ताकत देती है.

आज नए सदन में मुझे अपनी बात कहने का अवसर मिला. कहीं कोई शब्द इधर उधर हो गया हो. नियमों के बंधन में कमी रह गई हो. मैं क्षमा कहना चाहूंगा. हम मतदान के पहले उम्मीदवार थे. अब उम्मीदों के दूत और रखवाले हैं. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद है.

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