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मिलिए दूसरों के लिए जान की बाजी लगाने वाले जांबाज बच्चों से

23 दिसंबर 2014 को कशिश अपनी एक साल की बहन के साथ अपार्टमेंट के बगीचे में खेल रहा था. अचानक एक जर्मन शेफर्ड कुत्ते ने कशिश की बहन पर हमला कर दिया. उसने पूरी हिम्मत के साथ कुत्ते से बहन को बचाने की कोशिश की.

24 जनवरी काे पीएम मोदी करेंगे इन बहादुर बच्चों को सम्मानित 24 जनवरी काे पीएम मोदी करेंगे इन बहादुर बच्चों को सम्मानित
रोहित गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 19 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 10:18 PM IST

कोई टाइगर से टकरा जाता है तो कोई नदी की धारा में डूबते लोगों को बचाने के लिए नदी में छलांग लगा देता है. कोई करंट से जलती तारों को पकड़कर जि‍ंदगी बचाता है, तो कोई दूसरों की जान बचाते-बचाते खुद को कुर्बान कर देता है. बात हो रही है देश के उन 25 जांबाज बच्चों की, जिन्हें उनकी बहादुरी के लिए राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के लिए चुना गया है.

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कशिश, बहन को बचाने वाला बहादुर बच्चा
23 दिसंबर 2014 को कशिश अपनी एक साल की बहन के साथ अपार्टमेंट के बगीचे में खेल रहा था. अचानक एक जर्मन शेफर्ड कुत्ते ने कशिश की बहन पर हमला कर दिया. उसने पूरी हिम्मत के साथ कुत्ते से बहन को बचाने की कोशिश की. वो लगातार कुत्ते के जबड़े से बहन को खींचने लगा, मगर कुत्ता एक साल की बच्ची को खींचकर दूर ले जाना चाहता था. कशिश ने शोर मचाया, जिससे कई लोग आ गए. सबने मिलकर कुत्ते को भगाया और कशिश अपनी बहन को बचाने में कामयाब रहा. इन जांबाज बच्चों में दो ऐसे भी हैं, जिन्होंने दूसरों की जान बचाने के लिए हंसते-हंसते अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी और इन्हें मरणोपरांत यह सम्मान मिलेगा.

गौरव सहस्त्रबुद्धे: चार दोस्तों को बचाया, लेकिन खुद डूब गया
नागपुर जिले में रहने वाले 15 साल के गौरव ने 3 जून 2014 को अंबाझरी झील में चार दोस्तों को डूबते हुए देखा. अपनी ज़िंदगी की परवाह किए बगैर गौरव ने झील में छलांग लगा दी और चारों दोस्तों को बचा लिया. मगर, अफसोस कि बेहद थक चुके गौरव को किनारा नहीं मिल सका. सहस्त्रबुद्धे को ‘भारत पुरस्कार’ दिया जाएगा जो राष्ट्रीय वीरता पुरस्कारों में सर्वोच्च है जो उसकी ओर से उसके माता पिता प्राप्त करेंगे.

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शिवांश: दोस्त की खातिर अपनी जिंदगी की परवाह नहीं की
17 जून 2015 को शिवांश के पांच दोस्त सरयू नदी में नहा रहे थे. इनमें से एक दोस्त नदी की धारा में डूबने लगा. शिवांश उस तक पहुंच तो गया और किनारे तक भी ले आया लेकिन बदकिस्मती से दोनों डूब गए. शिवांश आज भले ही दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी मां अपने जांबाज लाड़ले की बहादुरी को सलाम करती हैं.

अर्जुन: मां को टाइगर से बचाया
टाइगर की एक दहाड़ सुनते ही कोई भी कांप उठेगा, लेकिन उत्तराखंड के अर्जुन सिंह ने ना केवल टाइगर का मुकाबला किया, बल्कि उसे भागने पर मजबूर भी कर दिया. 16 जुलाई 2014 को अर्जुन सिंह की मां जानवरों को चारा डालने गई थीं. उसी दौरान एक टाइगर ने उन पर हमला कर दिया. मां की चीख सुनकर अर्जुन बाहर आया और दरांती से टाइगर पर टूट पड़ा. इस बार टाइगर ने उस पर भी हमला कर दिया. मगर, अर्जुन ने दूसरा वार किया और टाइगर भाग गया. जब से अर्जुन ने टाइगर से भिड़ंत की है, तब से उसे लोग टाइगर कहने लगे हैं. अर्जुन की मां कहती हैं कि बेटे की बदौलत दूसरी जिंदगी मिली है. उन्हें अपने जिगर के टुकड़े की बहादुरी पर बहुत नाज है.

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इन बच्चों को देखकर कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता कि ये पहाड़ जैसी मुश्किलों को पल में अपने हौसलों से हरा देते हैं. ये बच्चे मौत से ना सिर्फ आंखें मिलाने का दम रखते हैं बल्कि बेहद नाजुक मौकों पर ज़िंदगी की सबसे बड़ी मिसाल भी पेश कर चुके हैं. इनमें एक ऐसा बच्चा भी है, जिसने फिल्मी स्टाइल में चोर को ना केवल चकमा दिया, बल्कि अपनी मां की जान भी बचाई.

दिशांत मेहंदीरत्ता: हथियारबंद चोर का मुकाबला किया
हरियाणा में रहने वाले दिशांत के घर 4 अप्रैल 2015 को एक चोर घुस आया. उसने दिशांत की मां की गर्दन पर चाकू रख दिया. मां ने मदद के लिए गुहार लगाई तो दिशांत पहुंचा. उसने बड़ी होशियारी से चोर के पैर पकड़ लिए और मां को छोड़ने की अपील करते हुए उसे पकड़कर गिरा दिया. बाद में मां-बेटे ने चोर को धर दबोचा. दिशांत की हिम्मत की बदौलत उनकी मां ना केवल महफूज हैं, बल्कि वो सबको बेटे की बहादुरी के किस्से भी सुनाती हैं.

राकेशभाई पटेल: डूबते लड़के को बचाया
आपको उस बच्चे की वीरता से रू-ब-रू करवाते हैं, जिसके माता-पिता इस दुनिया में नहीं हैं. मगर, उसका जज्बा ऐसा है कि सारी दुनिया को अपना मानता है. 14 जून 2015 को खेलते हुए एक लड़के की बॉल कुएं में गिर गई है. वो बॉल लेने के चक्कर में कुएं में गिर गया. राकेशभाई ने उसकी आवाज सुनी तो मदद के लिए कुएं में छलांग लगा दी. कुछ देर की मशक्कत के बाद राकेश ने कुएं में गिरे लड़के को बचा लिया. राकेशभाई पटेल ने ना सिर्फ एक जिंदगी बचाई है, बल्कि एक परिवार की उम्मीदों को भी डूबने से बचा लिया.

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श‍िवमपेट रूचिता: ट्रेन की चपेट में आने पर दो बच्चों को बचाया
प्रख्यात गीता चोपड़ा पुरस्कार तेलंगाना निवासी आठ वर्षीय शिवमपेट रूचिता को दिया जाएगा जिसने अपनी स्कूल बस के एक ट्रेन की चपेट में आने पर दो बच्चों की जान बचाने में अदम्य साहस का परिचय दिया था. हालांकि, अपनी बहन की जान नहीं बचा पाने का उसे बहुत अफसोस है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से 24 जनवरी को पुरस्कार ग्रहण करने जा रहे 25 बहादुरों में वह सबसे छोटी है. यह हादसा 24 जुलाई को हुआ था जिसमें चालक और कंडक्टर के अलावा 16 छात्रों की मौत हो गई थी.

रूचिता ने बताया कि रेलवे फाटक पार करने के दौरान जब बस पटरी पर रुक गई तब उसने अपनी छोटी बहन को आवाज दी जो पहली सीट पर बैठी हुई थी लेकिन वह उसकी और अन्य की जान नहीं बचा सकी क्योंकि तब तक ट्रेन ने बस को टक्कर मार दिया था. बस में सवार रूचिता के छोटे भाई को चोट लगी थी. चौथी कक्षा में पढ़ने वाली इस लड़की ने कहा, ‘मशहूर होना और प्रधानमंत्री से पुरस्कार पाना अच्छा लग रहा है. लेकिन काश मैं अपनी बहन की भी जान बचा पाती. हमें उसकी कमी खलेगी.’

24 जनवरी को PM मोदी करेंगे सम्मानित
ये बच्चे 24 जनवरी को प्रधानमंत्री के हाथों से अपना पुरस्कार ग्रहण करेंगे और गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेंगे. इनका चयन एक उच्चाधिकार समिति ने किया है जिसमें विभिन्न मंत्रालयों और एनजीओ के प्रतिनिधि बतौर सदस्य शामिल थे. बहादुरों को एक पदक, प्रमाणपत्र और नकद राशि दी जाएगी.

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पुरस्कार पाने वाले बाकी बच्चे
बहादुरी पुरस्कार पाने वाले अन्य बच्चे हैं- मौरीस येंगखोम और चोनगथम कुबेर मेइतेई (मणिपुर), एजेंलीसा सीनसोंग (मेघालय), साई कृष्ण अखिल किलांबी (तेलंगाना), जोएना चक्रवर्ती और सर्वानंद साहा (छत्तीसगढ़), बीधोवन, नितिन फिलिप मैथ्यू, अभिजीत केवी, अनंदू दिलीप, मोहम्मद शामंद, अरोमल एसएम (सभी केरल), मोहित महेन्द्र दाल्वी, नीलेश रेवाराम भील, वैभव रमेश घानगारे (सभी महाराष्ट्र), अबिनाश मिश्रा (ओड़िशा) और भीमसेन (उत्तर प्रदेश).

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