
क्या आप ऐसा कोई काम करना पसंद करेंगी जहां काम के घंटे लंबे हों, कोई छुट्टी न मिले, प्रमोशन का कोई चांस न हो, सबसे बड़ी बात इस जॉब में सैलरी का कोई प्रावधान न हो? यह मजाक नहीं और न ही कोई पहेली है. यह हकीकत है उन औरतों की जो बिना छुट्टी दिन-रात घर में खाना पकाने, साफ सफाई, बच्चा पालने समेत कई अन्य कामों में व्यस्त रहती हैं. इन घरेलू औरतों को काम के बदले वेतन तो छोड़ो सम्मान भी नहीं मिलता.
2017 में मिस वर्ल्ड मानुषी छिल्लर प्रतियोगिता के दौरान एक सवाल पूछा गया था, सबसे ज्यादा सैलरी किसे मिलनी चाहिए? इस सवाल के जवाब दुनियाभर में खूब सुर्खियां बटोरी थीं. दरअसल, उनका जवाब था, एक मां को सबसे ज्यादा सैलरी मिलनी चाहिए. हालांकि उन्होंने सैलरी को पैसों की जगह इज्जत और सम्मान मिलने से जोड़ा था. लेकिन 2017 में दिया गया मानुषी का यह जवाब एक बार फिर उस मसले को हवा दे गया जिसे पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री कृष्णा तीरथ ने उठाया था. 2012 में उन्होंने घरेलू औरतों को उनके पतियों से वेतन दिए जाने के लिए एक प्रावधान बनाने की पेशकश की थी. उन्होंने बकायदा एक प्रस्ताव भी तैयार किया कि किस कमा के लिए कितना वेतन दिया जाए. जैसे दो बच्चों को पालने के बदले 12,000 रु., दो लोगों का खाना बनाने के बदले 4000 रु. पर इस पर कोई बात आगे नहीं बढ़ी.
इन कारणों से औरतें करती हैं आत्महत्याः
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो, 2018 की रिपोर्ट ने एक बार फिर इस मसले को तूल दे दी है. रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या करने वाले कुल आंकड़ों में दैनिक वेतन भोगी मजदूरों के बाद घरेलू औरतों का ही नंबर आता है. देश में आत्महत्या के कुल आंकड़ों में से 22.4 फीसद दैनिक वेतन भोगी हैं तो 17.1फीसद घरेलू औरतें हैं.
रिपोर्ट में दर्ज आंकड़े कहते हैं, देश में रोजना 63 औरतें खुदकुशी कर रही हैं. वर्ष 2001 में एनसीआरबी की रिपोर्ट में यह आंकड़ा सालाना 20,000 था. यानी रोजाना तकरीबन 56-57 औरतों आत्महत्या कर रही थीं. यानी आत्महत्या का यह सिलसिला दशकों से लगातार चल रहा है. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कहता है कि इसका सबसे बड़ा कारण अवसाद है.
दरअसल, घरेलू औरतें काम की लंबी शिफ्ट करने के बाद भी अपनी उपयोगिता सिद्ध नहीं कर पातीं. वजूद से लगातार जूझती रहती हैं. वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक प्रतिभा यादव कहती हैं, ''मनोवैज्ञानिक के साथ बायोलोजिकल कारण भी घरेलू औरतों के आत्महत्या करने की बड़ी वजह है. खासतौर पर उस उम्र में जब पीरियड्स होने की कगार पर होता है.
औरतों में अवसाद के लक्षणों का होना आम बता है. उस वक्त एक औरत को मानसिक सपोर्ट की जरूरत होती है. ऐसे में कई बार औरतों के मन में अपने वजूद और जीवन के मूल्यांकन को लेकर सवाल उठते हैं. उस वक्त उन्हें अगर घर के लोगों द्वारा आशावादी जवाब मिलते हैं तो उनके उबरने के मौके बढ़ जाते हैं.
मगर नहीं मिलते तो यह अवसाद बढ़ता ही जाता है.'' प्रतिभा कहती हैं, खासतौर पर आजकल जब घरेलू औरतों खुद की तुलना कामकाजी औरतों से करती हैं तो वे खुद का जीवन व्यर्थ समझने लगती हैं.
घरों में अक्सर पुरुषों द्वारा या फिर घर की दूसरी औरतों द्वारा कामकाजी औरतों के रहन-सहन, उनके व्यक्तित्व, रूप-रंग को लेकर सराहा जाता है. यह तुलना भी घरेलू औरतों के मन में निराशा पैदा करती है.
राष्ट्रीय महिला आयोग ने किसी भी तरह की घरेलू हिंसा से गुजर रही औरतों के लिए घर में ही काउंसलिंग शुरू की है. ऑन लाइन काउंसलिंग का भी प्रावधान है. लेकिन आयोग के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि औरतों कुछ बोलने को तैयार नहीं होतीं. ससुराल या पति के खिलाफ बोलने से वे लगातार बचती रहती हैं.
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