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किस करवट बैठेंगे नवजोत सिंह सिद्धू

क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिद्धू का अगला कदम पंजाब के चुनावों की धारा बदल सकता है.

25 जुलाई को इस्तीफा देने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए जाते सिद्धू 25 जुलाई को इस्तीफा देने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए जाते सिद्धू
असित जॉली
  • नई दिल्ली,
  • 03 अगस्त 2016,
  • अपडेटेड 2:12 PM IST

पंजाब के मोगा जिले के अजितवाल गांव की बात है. 8 दिसंबर, 2006 को यहां शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी की रैली में नवजोत सिद्धू बोलने के लिए खड़े हुए, तो पूरी तरह छा गए. क्रिकेटर और टीवी के हंसोड़ से सियासतदां बने सिद्धू ने अपने शानदार भाषण से 20 एकड़ के पंडाल के बाहर तक फैली भीड़ पर जादू-सा कर दिया. चुटीली उक्तियों की जिस 'सिद्धूवाणी' के लिए वे मशहूर हैं, उसके नायाब नगीने इसमें भरे पड़े थे. 20 मिनट के भाषण के बाद भीड़ में किसी और को सुनने का धैर्य नहीं रहा, यहां तक कि बुजुर्ग प्रकाश सिंह बादल को भी नहीं, जिनकी 80वीं सालगिरह पर यह रैली आयोजित थी, और सुखबीर बादल को तो कतई नहीं. सिद्धू का भाषण खत्म होते ही भीड़ छंटने लगी. इससे बादल पिता-पुत्र को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. पर मंच पर बैठे सिद्धू पुरसुकून दिखाई दे रहे थे.

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चुनाव की तैयारी कर रहे पंजाब में सत्ताधारी एसएडी-बीजेपी गठबंधन, जिसे लगातार दो कार्यकाल की अपनी सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी रुझान का सामना करना पड़ रहा है, और करिश्माई नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुआई में फिर से उभरने की उम्मीद कर रही कांग्रेस—दोनों मानती हैं कि इस पूर्व सलामी बल्लेबाज में ऐसा बहुत कुछ है जिससे उन्हें डरने की जरूरत है.

सिद्धू ने बढ़ाई बीजेपी, अकाली दल और कांग्रेस की घबराहट
अगर सिद्धू अपने उस लोकप्रिय आकर्षण को थोड़ा भी कायम रख पाते हैं, जिसे उन्होंने अमृतसर का सांसद रहते हुए पेश किया था, तो 18 जुलाई को बीजेपी के मनोनीत सदस्य के तौर पर राज्यसभा से इस्तीफा देने के नाटकीय फैसले के बाद आम आदमी पार्टी (आप) में उनका जाना पंजाब के चुनावों की दशा-दिशा बदल सकता है. इससे न केवल एसएडी-बीजेपी या कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी, बल्कि अरविंद केजरीवाल की 'राष्ट्रीय' फलक पर छाने की महत्वाकांक्षा में नई जान आ जाएगी. पूर्व पत्रकार और अब राज्य में आप की कोर टीम में शामिल चंदर सुता डोगरा कहती हैं, ''इस खबर भर से कि सिद्धू हमारी पार्टी में आ रहे हैं, पूरे पंजाब में पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह की लहर दौड़ गई.''

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सिद्धू सियासत में अपने अगले मुकाम को लेकर खासे चौकन्ने रहे हैं, पर आप के नेता ऐसा कोई संकोच या हील-हवाला प्रदर्शित नहीं कर रहे हैं. दिल्ली में आप के बड़े ओहदेदार संजय सिंह उन सबसे पहले लोगों में से थे जिन्होंने कहा था कि सिद्धू पंजाब में पार्टी की जंग का हिस्सा होंगे. जल्दी ही मनप्रीत रंधावा (नौकरी छोड़कर आप से जुडऩे वाले पंजाब के दर्जन भर पत्रकारों में से एक) ने इसकी तस्दीक कर दी. उन्होंने कहा, ''उनका औपचारिक तौर पर पार्टी में शामिल होना बस कुछ वक्त की बात है.''

सिद्धू को सही वक्त का इंतजार
उधर अमृतसर, जिसे सिद्धू ने 2004 में पटियाला से आकर अपने सियासी गृहक्षेत्र के तौर पर चुना था और 2014 में अरुण जेटली के हक में सीट खाली करने के लिए मजबूर किए जाने से पहले जिसकी उन्होंने 11 साल तक लोकसभा में नुमाइंदगी की थी, में खुशी और उम्मीद दिखाई देती है. अमृतसर में लंबे वक्त से उनके एक समर्थक कहते हैं, ''शेरी (सिद्धू का उपनाम) सही वक्त का इंतजार कर रहे हैं. वे यह झलक नहीं देना चाहते कि वे बेताब हैं.'' सिद्धू के इस समर्थक को रत्ती भर शक नहीं है कि पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी आप में शामिल होंगे और पंजाब में पार्टी की ओर से सीएम पद का चेहरा भी होंगे.

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सिद्धू के समर्थक 'स्पष्ट' संकेतों की ओर भी इशारा करते हैं. वे बताते हैं कि 25 जुलाई की प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिद्धू बसंती पगड़ी पहनकर आए थे जो आप की पहचान है, जो उनके इरादों का पता देती है. यह भी किसी की नजर से नहीं छिप सकी कि मौजूदा मॉनसून सत्र के पहले दिन 18 जुलाई को जब वे इस्तीफा सौंपने संसद गए, तब भी उन्होंने वही पगड़ी पहन रखी थी.

ज्यादातर सियासी विश्लेषक मुतमइन हैं कि आप ही उनके लिए सबसे ज्यादा मुफीद विकल्प है. यहां तक कि उनकी पत्नी नवजोत कौर भी यह बात खुलकर कुबूल करती हैं. लेकिन इसके बाद भी यह अभी आखिरी फैसला नहीं भी हो सकता है. सिद्धू के राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद 19 जुलाई को खुद केजरीवाल की प्रतिक्रिया को ही लीजिए, ''... मैं उनकी दिलेरी की दाद देता हूं. वे अच्छे आदमी हैं. मेरी राय है कि सभी अच्छे लोगों को बीजेपी से इस्तीफा दे देना चाहिए. फिलहाल इससे ज्यादा कुछ नहीं है. वे अभी हमारे साथ नहीं आए हैं. अगर कोई आप में शामिल होना चाहता है, तो उन्हें पहले आम आदमी बनना पड़ेगा. अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. कुछ भी तय नहीं हुआ है.''

सिद्धू से AAP को मिलेगा कितना फायदा?
केजरीवाल ने अपनी बात बहुत सावधानी से नाप-तौलकर कही थी. इसके पीछे जाहिरा तौर पर इरादा यह था कि अगर पंजाब के पार्टी नेतृत्व के मन में दूर-दूर तक चर्चित इस कदम को लेकर कोई शक-सुबहा रहा हो तो वह दूर हो जाए. जहां पार्टी को इस पूर्व क्रिकेटर के आने का फायदा मिलना तय है, वहीं चारों तरफ उत्साह के साथ-साथ पुरजोर खंडन भी किया जा रहा है कि उनका आना इस बात पर मुनहसर नहीं है कि सिद्धू को आप के मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया ही जाए. यह बात राज्य के एक से ज्यादा बड़े पार्टी ओहदेदार कह रहे हैं. उनमें से हरेक की शायद अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं.

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आप के पंजाब संयोजक और पूर्व अकाली मंत्री सुच्चा सिंह छोटेपुर, जो पार्टी के सबसे ज्यादा दिखाई देने वाले पंजाबी चेहरे हैं, संगरूर के लोकसभा सदस्य बलवंत सिंह मान और पार्टी की घोषणापत्र समिति के मुखिया पूर्व पत्रकार कंवर संधू, सभी ने इन अफवाहों को खारिज कर दिया कि सिद्धू पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे. जहां संधू ने यह चेतावनी दी कि अगर ऐसा हुआ तो इसका आप कार्यकर्ताओं के 'मनोबल पर प्रतिकूल' असर पड़ेगा, वहीं छोटेपुर यह कहते हुए रूठ गए, ''अगर सिद्धू पार्टी में आते हैं तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे.''

AAP के सीएम उम्मीदवार पर सवाल
पार्टी की प्रवक्ता डोगरा जोर देकर कहती हैं, ''मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार पेश करने की तो अभी कोई बात भी नहीं है. फिलहाल हमारा पूरा ध्यान चुनाव अभियान पर, लोगों के लिए अच्छा और मुफीद एजेंडा तैयार करने पर है.'' आप के कई बड़े नेता बताते हैं कि पार्टी किसी चेहरे के बगैर ही समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज और आधार तैयार करने में कामयाब हो गई है, और इसलिए किसी को पेश करने का कोई दबाव नहीं होना चाहिए. हालांकि पार्टी के प्रवक्ता ने माना कि आप की 'सोच' से पूरी तरह मेल खाने वाले सिद्धू 'बादल परिवार के खिलाफ मुकम्मल हथियार होंगे. वे पार्टी को जाट-सिख चेहरा तो देंगे ही जिसकी उसे बेहद दरकार है, साथ ही वे व्यापक पंजाबी मतदाताओं में आप की अपील को फैलाने में भी शानदार तरीके से समर्थ होंगे.

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लेकिन एक दूसरी राय भी है. चंडीगढ़ के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट ऐंड कम्युनिकेशन के डायरेक्टर प्रमोद कुमार कहते हैं, ''सिद्धू से आप को कोई फायदा नहीं होगा, जैसा कि उछाला जा रहा है.'' उन्होंने तीन दशकों से पंजाब की सियासत को करीब से देखा है. वे कहते हैं, ''उनकी जो भी अपील है वह कॉमेडियन और टीवी होस्ट के तौर पर है.'' और यह भी कि अमृतसर (जहां कांग्रेस के 'बदनाम' हो चुके चेहरों को ही उन्होंने ललकारा था) के बाहर उनकी परख अभी होनी है. प्रमोद सिद्धू में सियासी विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता की कमी पर भी सवाल उठाते हैं. वे कहते हैं, ''मुख्यधारा के सियासतदानों को गालियां देना और भ्रष्टाचार और नशे की बुराई के खिलाफ नारे लगाना बहुत अच्छी बात है. पर उनके पास ऐसी किसी योजना का सबूत दिखाई नहीं देता कि वे इनसे आखिर कैसे निपटेंगे.'' आने वाले महीनों में चाहे जो हो, सिद्धू ने आप के भीतर और बाहर, दोनों जगह पक्के तौर पर कोहराम तो मचा ही दिया है.

सूत्र बताते हैं कि पंजाब कांग्रेस के मुखिया अमरिंदर सिंह भी सिद्धू को लुभाने में जुटे हैं. अमरिंदर ने 26 जुलाई को इंडिया टुडे से कहा, ''वह (सिद्धू) अच्छा लड़का है.'' उन्होंने सिद्धू के लिए हकीकत में लाल कालीन बिछाते हुए कहा, ''हमारा बड़ा पुराना रिश्ता रहा है. उनकी मां निर्मल भागवत कौर ने दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, जबकि उनके पिता हरभगवान सिद्धू ने 1980 में कांग्रेस सरकार के साथ बतौर एडवोकेट-जनरल काम किया था.''

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मुफीद ग्रह नक्षत्रों का इंतजार
फिलहाल पंजाब में इंतजार का खेल चल रहा है. करीबी जानकार दावा करते हैं कि सिद्धू आखिरकार आप में शामिल होंगे और वे केवल 'मुफीद ग्रह नक्षत्रों' का इंतजार कर रहे हैं. आप की खातिर उम्मीद करनी चाहिए कि वे बहुत देर होने तक छकाएंगे नहीं.

 

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