
नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) पर संसद में सरकार का साथ देने वाले सहयोगी दल, विधेयक पास होने के बाद आंदोलन की तीव्रता को देखते हुए कदम पीछे खींचने लगे हैं. सहमे हुए सहयोगी दलों में से कुछ तो इस कानून का सीधे तौर पर विरोध करने में जुट गए हैं तो कुछ नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआरसी) की आड़ लेते हुए विरोध कर रहे हैं. उत्तर-पूर्वी भारत में तो कमोबेश रूप से एनडीए के तमाम सहयोगी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ मैदान में डट गए हैं.
दक्षिण भारत में विपक्षी डीएमके तो इसके विरोध में थी ही, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी अन्नाद्रमुक, डीएमडीके और पीएमके जैसे दलों ने भी यू टर्न ले लिया. भाजपा ने यहां बड़ी उम्मीद के साथ सीएए के समर्थन में इन दलों के साथ रैली निकालने का कार्यक्रम रखा. पर भाजपा यह नहीं भांप पाई कि यहां के क्षेत्रीय मित्र दल देश का मूड भांपते हुए अपने रुख को बदल चुके हैं. नतीजा यह हुआ कि भाजपा की रैली में न तो अन्नाद्रमुक न ही पीएमके या डीएमडीके का कोई प्रतिनिधि शामिल हुआ. भाजपा का यह कार्यक्रम बस औपचरिकता भर बन कर रह गया.
असम गण परिषद (एजीपी), मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ), बोडोलैंड पीपुल्स पार्टी (बीपीएफ), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम), नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), इंडिजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आइपीएफटी), जैसे दल तो सीधे तौर पर सीएए के खिलाफ मैदान में आ डटे हैं. उत्तर-पूर्व के ये राज्य ऐसे हैं जहां सीएए को लेकर सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है. इन राज्यों के सियासी दल सीएए का विरोध इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इन्हें लगता है कि बाहरी मुल्कों से आने वाले लोगों की वजह से राज्यों के मूल निवासियों के अधिकार तथा रोजगार पर असर पड़ेगा और उनकी मूल पहचान और परंपरा प्रभावित होगी. अकाली दल और जेडी (यू) जैसे भाजपा के पुराने सहयोगियों के सुर भी बदल गए हैं.
जेडी (यू) के महासचिव के.सी. त्यागी कहते हैं, ''हमने संसद में सीएबी के समर्थन में वोट किया. हमारा स्टैंड क्लियर था. लेकिन बेहतर होता यदि सरकार किसी धर्म विशेष का नाम लिए बिना यह कहती कि बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को जो भारत में 2014 तक आ गए हैं उन्हें नागरिकता देगी. इतना बवाल सीएए और एनआरसी के घालमेल से हो रहा है.'' त्यागी कहते हैं, ''रही बात एनआरसी की तो जेडी (यू) खुले रूप से विरोध में है.
हम यह भी चाहेंगे कि सरकार हमारी बात मानते हुए प्रताडि़त अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल करे और इसके लिए कानून में जरूरी बदलाव किया जा सकता है.'' अकाली दल नेता नरेश गुजराल कहते हैं कि सीएए के तहत मुसलमानों को बाहर रखना ठीक नहीं है. हालांकि अकाली दल ने भी जेडी (यू) की तरह संसद में सीएबी के समर्थन में वोट किया था.
सबसे दिलचस्प स्थिति उत्तर-पूर्वी राज्यों के सियासी दलों की है. एजीपी ने संसद में सीएबी के समर्थन में वोट किया था. लेकिन सीएए का जिस तरीके से विरोध होना शुरू हुआ उसे देखते हुए एजीपी तुरंत डैमेज कंट्रोल में लग गई.
एजीपी के नेता सीएए को चुनौती देने सर्वोच्च अदालत पहुंच गए. एनपीएफ ने सीएबी के समर्थन में वोट देने के लिए अपने राज्यसभा के सदस्य के.जी. केन्ये को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया.
एमएनएफ के सांसद लाल रोसंगा ने सीएबी के समर्थन में वोट किया लेकिन उनकी पार्टी सीएए के विरोध में सड़कों पर उतरी हुई है. रोसंगा कहते हैं, ''मैंने सीएबी को पास कराने के लिए वोट दिया यह सचाई है लेकिन यदि हमारी पार्टी इसका विरोध कर रही है तो इसका उत्तर पार्टी दे सकती है.''
सीएए के खिलाफ आइपीएफटी भी मैदान में डट गई है. पार्टी के प्रवक्ता मंगल देववर्मा कहते हैं, ''सीएए को पूरी तरह से समाप्त किया जाए या फिर त्रिपुरा को इसके दायरे से पूरी तरह बाहर रखा जाए.'' देववर्मा दावा करते हैं कि हम आंदोलन में उतरे हैं और इससे पीछे हटने वाले नहीं हैं. आइपीएफटी, त्रिपुरा में भाजपा सरकार की सहयोगी है. बीपीएफ भी सीएए के खिलाफ मैदान में डट गया है.
पार्टी के नेता विश्वजीत डायमेरी कहते हैं, ''हम सीएए का विरोध करते हैं. उत्तर-पूर्वी राज्यों में तो भाजपा के लोग भी सीएए के समर्थन में हैं कि नहीं, यह कहना मुश्किल है.''
उत्तर-पूर्वी राज्य ही नहीं, दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में भी भाजपा के सहयोगी सीएए को लेकर पैर पीछे खींच रहे हैं. भाजपा ने चेन्नै में अपने सहयोगी दलों अन्नाद्रमुक, डीएमडीके और पीएमके के साथ सीएए के समर्थन में एक रैली का आयोजन किया था. लेकिन इस रैली में सहयोगी दलों का कोई भी नेता शामिल नहीं हुआ.
यहां तक कि सहयोगी दलों के कार्यकर्ता भी रैली में शामिल नहीं हुए. हालांकि भाजपा की प्रदेश इकाई ने साफ किया है कि यह रैली भाजपा की थी इसलिए सहयोगी दलों के नेता इसमें शामिल नहीं हुए लेकिन सीएए के समर्थन में जो बैनर लगाए गए थे, उसमें सहयोगी दलों के नेताओं की तस्वीर भी थी.
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