Advertisement

अहिल्याः सिनेमा का बदलता चेहरा

एक बंगाली फिल्म है. जिसके सबटाइटल्स अंग्रेजी में है. लेकिन उसकी कहानी, सस्पेंस और ट्रीटमेंट इतना जबरदस्त है कि वह चौदह मिनटों तक आपको बांधे रखती है और आप हर पल यह सोचते हैं कि आगे क्या होने वाला है. यही वजह भी है कि इसे अभी तक यूट्यूब पर तीन लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं. और यह सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चर्चा का विषय बनी हुई है.

शॉर्ट फिल्म 'अहिल्या' का एक सीन शॉर्ट फिल्म 'अहिल्या' का एक सीन
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2015,
  • अपडेटेड 9:50 PM IST

एक बंगाली फिल्म है. जिसके सबटाइटल्स अंग्रेजी में है. लेकिन उसकी कहानी, सस्पेंस और ट्रीटमेंट इतना जबरदस्त है कि वह चौदह मिनटों तक आपको बांधे रखती है और आप हर पल यह सोचते हैं कि आगे क्या होने वाला है. यही वजह भी है कि इसे अभी तक यूट्यूब पर तीन लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं. और यह सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर चर्चा का विषय बनी हुई है.

Advertisement

इसी तरह की कोशिशों के लिए तो कहते हैं, अगर आपके पास कहने के लिए बेहतरीन कहानी है और उसे पेश करने का आला तरीका तो आपको तीन घंटे और सिनेमाघर के बड़े परदे की दरकार नहीं है. इस बात को शॉर्ट फिल्म अहिल्या ने सिद्ध कर दिया है.

फिल्म को कहानी के डायरेक्टर सुजॉय घोष ने डायरेक्ट किया है और यह जबरदस्त थ्रिलर है. मजेदार यह कि उन्होंने रामायण की पात्र अहिल्या को अपनी कहानी के केंद्र में रखा है. अहिल्या गौतम ऋषि की युवा पत्नी थीं, जो बेहद ही खूबसूरत थीं. एक दिन इंद्र गौतम ऋषि का छद्म रूप धर के अहिल्या के पास आते हैं. जब गौतम ऋषि को पता चलता है कि उनकी पत्नी के किसी से संबंध है तो वह अहिल्या को श्राप देते हैं और पत्थर में तब्दील कर देते हैं.

Advertisement

फिल्म में भी एक 78 वर्षीय शख्स सौमित्र चटर्जी हैं जिनकी युवा और खूबसूरत पत्नी राधिका आप्टे हैं. उनके पास एक पत्थर है और जिसके वह जादुई होने का दावा करते हैं और फिर शुरू होती है एक दिलचस्प कहानी है. इन 14 मिनट में डायरेक्टर सस्पेंस, राधिका का कातिलाना अंदाज और थ्रिलर का जबरदस्त छौंक लगा देते हैं. यही नहीं, ऐक्टिंग के मामले में राधिका आप्टे ने सिद्ध किया है कि वे अपने हल्के अंदाज से काफी कुछ कर सकती हैं.


आज जब सिनेमा हॉल में ढाई से तीन घंटे गुजारकर भी एक अच्छी कहानी बमुश्किल देखने को मिल रही है सुजॉय ने सिद्ध किया है कि माध्यम कोई-सा भी क्यों न हो अगर आपके सिनेमा की समझ और कहानी को देखने की नजर है और उसे कहने का अंदाज तो आप कहीं भी कहर ढाह सकते हैं. बंगाली भाषा की इस फिल्म को उन्होंने कोलकाता में बनाया है. वाकई अगर इस तरह की शॉर्ट फिल्म हो और वह भी फ्री में देखने को मिल जाए तो सिनेमाघरों तक दर्शकों को खींचने के लिए बॉलीवुड को भारी जुगत लगानी होगी.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement