रविवार 20 अक्तूबर को आरक्षण समर्थकों की महापंचायत के चलते उत्तर प्रदेश के शहर आजमगढ़ का माहौल काफी गरम था और यहां से 100 किलोमीटर दूर लखनऊ-फैजाबाद हाइवे पर बने टोल प्लाजा पर फैजाबाद के उपजिलाधिकारी भारी पुलिस फोर्स लेकर मौजूद थे.
इतनी बड़ी नाकाबंदी अयोध्या जा रहे विश्व हिंदू परिषद के नेताओं के लिए नहीं, बल्कि उस युवा महिला नेता के लिए की गई थी, जिसने पूर्वांचल में पिछड़ों की राजनीति को एक नई दिशा दी है. यह शख्स हैं अपना दल पार्टी की महासचिव 32 वर्षीया अनुप्रिया पटेल. उस दिन सुबह 11 बजे आजमगढ़ जाते हुए अनुप्रिया की गिरफ्तारी के बाद ही महापंचायत रोकने की प्रशासन की कोशिशें अपना कुछ असर दिखा सकीं.
यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर इलाहाबाद समेत यूपी के पूर्वी जिलों में सुलग रहे आक्रोश से एक ओर जहां सूबे की सभी पार्टियां अपना नफा-नुकसान देखकर दूरी बनाए हुए हैं, वहीं अनुप्रिया अपनी पार्टी के साथ सीधे इस आंदोलन में कूद पड़ी हैं. पिछले एक माह के दौरान यह तीसरा मौका था, जब उन्होंने इस आंदोलन को धार देने के लिए आरक्षण समर्थकों के साथ अपनी गिरफ्तारी दी है.
आगरा विवि में मैनेजमेंट विभाग के डीन डॉ. लवकुश मिश्र बताते हैं कि सपा के साथ जुड़ीं पटेल, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य, सैनी, राजभर जैसी जातियां पार्टी के भीतर अपनी उपेक्षा और बढ़ते यादववाद से नाराज हैं. वे कहते हैं, ''सपा के भीतर इन बिरादरियों का नेतृत्व न होने के कारण ये दूसरे दल का रुख कर सकती हैं, बशर्ते उनके पास नेतृत्व हो. आरक्षण समर्थक आंदोलन में कूदकर अनुप्रिया इन्हीं नाराज जातियों को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रही हैं. ''
पूर्वांचल में विशेष रूप से कुर्मी बिरादरी में पैठ रखने वाली पार्टी अपना दल आरक्षण समर्थकों के साथ खड़े होकर सपा और बीएसपी से नाराज पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को एकजुट करने के प्रयास में है. अगस्त में जब सपा सरकार ने आरक्षण के समर्थन में प्रदर्शन करने पर अनुप्रिया पर आधा दर्जन मुकदमे दर्ज किए तो अपना दल ने पूर्वांचल के सभी जिलों में तीन दिन का अनशन किया.
प्रदेश की आबादी में पिछड़ी जातियां 54 फीसदी हैं. इनमें भी पिछड़ा व अति पिछड़ा वर्ग की दो श्रेणियां अस्तित्व में आ चुकी हैं. वर्ष 2001 में यूपी सरकार की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के अनुसार सूबे की आबादी में करीब 27 फीसदी भागीदारी रखने वाली यादव व कुर्मी जातियां पिछड़ा वर्ग में आती हैं, जबकि लोध से लेकर दर्जी तक की जातियां अति पिछड़ा में शुमार की जाती हैं.
पिछड़ों में 19.40 प्रतिशत यादव आबादी के बाद सर्वाधिक संख्या 7.46 फीसदी कुर्मियों की है. कुर्मी मतदाताओं के सियासी सरोकारों पर नजर डालें तो यह अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग नेताओं व पार्टियों के साथ लामबंद होते रहे हैं. कुर्मियों का वोट बरेली में बीजेपी के संतोष गंगवार को लंबे समय तक जिताता रहा तो आंबेडकर नगर में बीएसपी नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री लालजी वर्मा का सियासी कद तैयार करने में इन वोटों की खासी भूमिका रही.
बीएसपी के संस्थापक काशीराम के साथ सियासत करने वाले सोनेलाल पटेल जब बीएसपी से अलग हुए तो उन्होंने कुर्मी वोटों के सहारे अपनी राजनीति को उड़ान देने के लिए अपना दल का गठन किया था. मगर कानपुर से लेकर इलाहाबाद और बनारस के कुछ इलाकों के अलावा अपना दल कोई प्रभाव नहीं दिखा सका. अनुप्रिया पटेल की रैलियों को लेकर अब सपा सरकार इसलिए चिंतित है क्योंकि इससे सपा का ओबीसी जनाधार प्रभावित हो सकता है.
आंखों में खटक रही हैं अनुप्रियापूर्वांचल के देवरिया में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आर.पी.एन. सिंह कुर्मियों के नेता हैं तो बांदा में ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल को कुर्मियों ने अपना समर्थन दिया है. वहीं बेनी प्रसाद वर्मा के राजनैतिक कद के पीछे बाराबंकी, गोंडा, बहराइच और आसपास के जिलों की कुर्मी बिरादरी का ही हाथ है. इन्हीं कुर्मी वोटों को अपनी ओर खींचने के लिए सपा ने आंबेडकर नगर के राममूर्ति वर्मा को दुग्ध विकास विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया है.
इन सभी कुर्मी नेताओं की आंखों में अनुप्रिया इस समय खटक रही हैं. पिछड़ों और विशेष रूप से कुर्मियों की राजनीति में अनुप्रिया की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता को दूसरे नेता पचा नहीं पा रहे. राममूर्ति वर्मा की प्रतिक्रिया इसी गुस्से की बानगी है. वे कहते हैं, ''प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनने के बाद से पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के बीच सपा की पैठ बढ़ी है और छोटे दल लगातार हाशिए पर पहुंच गए हैं. अपनी पार्टी का वजूद बचाए रखने के लिए अनुप्रिया पटेल एक असफल कोशिश कर रही हैं. ''
पॉलिटिक्स में आने की सोची नहीं थी2012 के विधानसभा चुनाव में महज एक प्रतिशत वोट पाने वाले अपना दल को एक नया तेवर देने वाली रोहनिया, वाराणसी से विधायक अनुप्रिया पटेल ने सोचा नहीं था कि वे कभी राजनीति में भी आएंगी. कानपुर में 12वीं तक पढ़ाई करने के बाद उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन और नोएडा की एमिटी यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में एमए किया.
उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से एमबीए की डिग्री भी ली. अनुप्रिया की मां कृष्णा पटेल कहती हैं, ''अनुप्रिया के पिता अपनी चारों बेटियों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहते थे. उनका किसी भी बेटी को राजनीति में लाने का इरादा नहीं था. ''
लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. 17 अक्तूबर, 2009 को सड़क दुर्घटना में सोने लाल पटेल की असामयिक मौत के बाद सबकुछ बदल गया. इस घटना के 15 दिन पहले ही अनुप्रिया का विवाह लखनऊ के एक सिविल इंजीनियर आशीष कुमार से हुआ था.
चार बहनों में तीसरे नंबर की अनुप्रिया ने पिता की मृत्यु के सदमे से उबरकर 26 अक्तूबर, 2009 को लखनऊ के रवींद्रालय में पार्टी की तरफ से आयोजित शोकसभा में शिरकत की. इस मौके पर अनुप्रिया के भावनात्मक भाषण ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को इस कदर प्रभावित किया कि सभी ने एक स्वर से प्रस्ताव पारित कर उन्हें अपना नेता चुन लिया.
पार्टी के नए तेवरअनुप्रिया संगठन को मजबूत करने में लगी हैं. उन्होंने पार्टी के तेवर और तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव किया है. पार्टी के बयानों में एकरूपता रहे, इसके लिए वे हर मुद्दे पर सभी नेताओं को बाकायदा पत्र भेजकर पार्टी की रणनीति की आधिकारिक जानकारी देती हैं. उनकी इस रणनीति के बारे में बीजेपी के वरिष्ठ कुर्मी नेता संतोष गंगवार कहते हैं, ''यह समय राजनीति में बदलाव का है.
अनुप्रिया केवल एक जाति को पकड़कर आगे नहीं बढ़ सकतीं. अगर वे वाकई बदलाव चाहती हैं तो उन्हें समाज के अन्य तबकों को भी अपने साथ जोडऩा होगा. '' अनुप्रिया को शायद राजनीति की इन जरूरतों का आभास हो चुका है और अब वे अपनी पार्टी की क्षेत्रीय और जातीय बेडिय़ों को तोड़कर आगे बढऩे का प्रयास कर रही हैं.
17 अक्तूबर को सोनेलाल पटेल की पुण्यतिथि पर मिर्जापुर के छानबे विधानसभा क्षेत्र मं7 एक बड़ी रैली करके उन्होंने पूर्वांचल में अपनी धमक दिखा दी. एंड्रॉएड फोन पर लगातार अपने कार्यकर्ताओं से अपडेट लेने और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली अनुप्रिया के लिए रैली में जमकर नारे लगे: 'गरीबों, पिछड़ों की एक मसीहा, अनुप्रिया-अनुप्रिया-अनुप्रिया. '
सामाजिक न्याय की योद्घाअपना दल की पहचान भले ही पूर्वांचल के कुछ जिलों में कुर्मी जाति में पैठ रखने वाले दल के रूप में हो, लेकिन अनुप्रिया पटेल पिछड़ा, पसमांदा और दलित भागीदारी पर आधारित सामाजिक न्याय और भागीदारी के सिद्घांत को लेकर आगे बढ़ रही हैं. यादव जाति के युवाओं के बीच भी उनकी पहुंच बनी है. उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह महत्वपूर्ण बदलाव है. वे कहती हैं, ''उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश या फिर गुजरात में मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग से आते हैं.
बावजूद इसके उत्तर भारत में सत्ता और इससे जुड़े केंद्रों में पिछड़ों का प्रतिनिधित्व बेहद कम है, जो राजनीति का एक संक्रमण काल है. '' महिला सशक्तिकरण भी अनुप्रिया के एजेंडे में ऊपर है और महिला उत्पीडऩ के खिलाफ वे काफी मुखर रही हैं.
आरक्षण समर्थकों के साथ खड़े होकर अनुप्रिया ने युवाओं के बीच भी खासी लोकप्रियता बटोरी है. निस्संदेह अनुप्रिया भारतीय समाज में हाशिए पर ढकेल दिए गए लोगों की सशक्त आवाज बनकर उभर रही हैं.