
अव्वल टायर निर्माता कंपनी सिएट के प्रबंध निदेशक तथा आरपीजी समूह के 18,000 करोड़ रु. के कारोबार के वारिस 33 वर्षीय अनंत गोयनका अक्सर अपने स्टाफ से एक ही सवाल पूछा करते हैः आपने अपने काम के दायरे में क्या सुधार किया? वे बताते हैं कि बस यही एक सवाल उनके कर्मचारियों में काम का जज्बा भर देता है. गोयनका कहते हैं, “आज के प्रतिस्पर्धी माहौल में आप अगर कारोबार में लगातार सुधार नहीं ला सकते तो कोई तीर नहीं मार सकते.”
भारतीय कंपनी घरानों का यही नया मंत्र हैः प्रतिस्पर्धा के माहौल में लगातार सुधार और हरदम कुछ नया देने की चाहत. इन्हीं के जिम्मे देश का 90 फीसदी औद्योगिक उत्पादन और देश के कुल रोजगार का करीब 25 फीसदी है. उद्योगपति हर्ष गोयनका के बेटे अनंत कहते हैं, “हम उन्हीं क्षेत्रों में हाथ डालते हैं जिनमें हम कामयाब हो सकते हैं.” उन्होंने सिएट के परंपरागत व्यावसायिक वाहनों के बदले दोपहिया और उपयोगी वाहनों पर फोकस किया. उनकी देखरेख में मुंबई स्थित सिएट ने दोपहिया टायरों के बाजार में 25 फीसदी हिस्सेदारी हासिल कर ली है जबकि 2012 में जब उन्होंने जिम्मेदारी ली थी तब वह 11 फीसदी ही था. उपयोगी वाहनों के बाजार में भी सिएट की हिस्सेदारी उनके तहत 7 फीसदी से बढ़कर 14 फीसदी हो गई है.
उनके पिता कहते हैं, “ह्वार्टन और केलॉग में पढ़ाई-लिखाई के अलावा अनंत को यूनीलीवर और मॉर्गन स्टेनली जैसी कंपनियों में काम का ठोस अनुभव भी मिला है.” वे यह भी बताते हैं कि अनंत अपने काम पर फोकस करते हैं, हर बारीकी का ख्याल रखते हैं और अपनी आक्रामकता जाहिर नहीं होने देते.
कारोबार इतिहासकार और बिजनेस महाराजाज की लेखक गीता पीरामल कहती हैं, “हर नई पीढ़ी के अगुआ के लिए पुराने में सुधार लाना पहली शर्त है. अगर पुराने का फायदा नहीं उठा सकते तो नया क्या कर सकते हैं?”
विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी के बड़े बेटे 38 वर्षीय रिशाद प्रेमजी हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए हैं और उन्हें कंपनी के बोर्ड में 1 मई, 2015 को शामिल किया गया. इस तरह वे सीईओ के पद के एक कदम करीब पहुंच गए. रिशाद ने विप्रो में 2007 से काम करना शुरू कर दिया और कंपनी के विविध क्षेत्रों के काम का अनुभव प्राप्त किया. बोर्ड में निदेशक बनाए जाने के पहले मुख्य रणनीतिक अधिकारी के नाते वे विलय और अधिग्रहणों के साथ-साथ नए-नवेले क्षेत्रों में उतरने वाली कंपनियों में निवेश का मामला भी देखते रहे हैं. विप्रो के बोर्ड में नामांकन समिति के अध्यक्ष अशोक गांगुली का कहना है कि रिशाद एकदम नए किस्म का रणनीतिक नजरिया, तकनीकी क्षेत्रों की समझदारी और विविध कारोबारी विशेषज्ञता लेकर आए.
रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष मुकेश अंबानी के बेटे 23 वर्षीय आकाश अंबानी ब्राउन यूनिवर्सिटी से अंडरग्रेजुएट हैं, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया, “अर्थशास्त्र की पढ़ाई से मैं (रिलायंस) जियो के कारोबार में सैद्धांतिक रवैए के साथ उतरा हूं. जिओ में मैंने प्रबंधन कौशल के मामले में जो कुछ सीखा, उससे मेरा नजरिया बड़ा हुआ है. असली कारोबारी स्थितियों से आप पुराने विचारों, फौरन फैसले लेने और टीम निर्माण के ज्यादा सबक सीख सकते हैं.”
पुणे में 32 वर्षीय आलोक किर्लोस्कर ने ठहर-से गए किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (केबीएल)का फोकस केमिकल और पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्रीज के लिए उच्च क्षमता वाले पंप की ओर करके नई तेजी ला दी. यह कंपनी क्रलूइड मैनेजमेंट सोल्यूशन प्रदान करती है और पंप बनाती है. केबीएल के अध्यक्ष संजय किर्लोस्कर के बेटे आलोक ने कंपनी के नॉलेज मैनेजमेंट टूल “डॉल्फिन” का भी प्रभार संभाला, जो बिक्री का आंकड़ा मुहैया कराता है और उसके कामकाज के समय को काफी हद तक घटा दिया. उनके पिता कहते हैं, “आलोक सबका प्रिय है और उसे नई तकनीक तथा नॉलेज मैनेजमेंट में विशेष रुचि है. उसे अपनी विरासत का पूरा ख्याल है और यह भी एहसास है कि समाज में अपना योगदान देना है.”
गोयनका, अंबानी और किर्लोस्कर की तरह कारोबार घरानों की नई पीढ़ी अपने क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तरह-तरह के तरीके ईजाद कर रही है. तकनीक तेजी से बदल रही है और कारोबार के नए-नए दायरे खुल रहे हैं जबकि कई प्रमुख उत्पाद और कंपनियां पुरानी पड़ती जा रही हैं.
इन नए कारोबारियों को अपनी चुनौतियों की न सिर्फ बेहतर समझ है, बल्कि कई तो दो कदम आगे बढ़कर अपने पुराने कारोबार की ताकत से कामयाबी की नई दास्तान लिखने की दिशा में बढ़ गए हैं. करीब 11,000 करोड़ रु. के कारोबार वाली लुपिन के सीईओ और एमडी क्रमशः 47 वर्षीया विनिता और 41 वर्षीय नीलेश गुप्ता ने मुंबई स्थित दवा कंपनी के कारोबार को इन पदों पर पहुंचने से पहले ही कई गुना बढ़ा दिया. विनिता ने कंपनी के अमेरिका बाजार में आक्रामक रणनीति अपनाई तो नीलेश रिसर्च और डेवलपमेंट पर फोकस करते रहे. लिहाजा, कंपनी जेनरिक दवाइयों में अग्रणी हो गई, जबकि पहले वह ज्यादातर टीबी की दवा का उत्पादन और बिक्री ही किया करती थी. अब वह अपनी कमाई का 44 फीसदी अमेरिकी बाजार से हासिल करती है. एक बातचीत में नीलेश ने बताया कि वे हमेशा ही अपने पिता विश्वबंधु गुप्ता के साए से निकलना चाहते थे और रिसर्च पर ही ज्यादा से ज्यादा फोकस करना चाहते थे. आखिरकार उन्होंने वही किया.
इसी तरह सेरम इंस्टीट्यूट के सीईओ 35 वर्षीय अदर पूनावाला ने वैक्सीन के निर्यात बाजार पर आक्रामक तौर पर फोकस किया. नतीजतन, उनकी कंपनी की 85 फीसदी कमाई अब विदेशों से होती है. लंदन की वेस्टमिंस्टर यूनिवर्सिटी के इस ग्रेजुएट ने अपने परिवार के कारोबार में 15 साल में ही कई कीर्तिमान जोड़ दिए हैं. इनमें एक सेरम इंस्टीट्यूट का ओरल पोलियो वैक्सीन भी है.
पढ़ाई से मिली बढ़त
हैदराबाद के इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में कारोबार घराना तथा संपत्ति प्रबंधन के थॉमस स्मीदनी पीठ के प्रोफेसर कविल रामचंद्रन कहते हैं, “उद्योग घरानों की अगली पीढ़ी ज्यादा पढ़ी-लिखी है, उसका वैश्विक अनुभव भी बड़ा है और महत्वाकांक्षाएं भी बड़ी हैं.”
मसलन, किर्लोस्कर अमेरिका की कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग और फाइनांस में ग्रेजुएट हैं. टीवीएस मोटर कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक 25 वर्षीय सुदर्शन वेणु ब्रिटेन के वारविक मेन्यूफैक्चरिंग ग्रुप से इंटरनेशनल टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री लिए हुए हैं. इसी दौरान उन्होंने सुंदरम क्लेटॉन लिमिटेड के डाइ कास्टिंग डिविजन और टीवीएस में ट्रेनिंग भी ली.
नौकरियों में भर्ती की परामर्शदाता फर्म टीमलीज के संस्थापक मनीष सभरवाल कहते हैं, “विदेशी डिग्री ही अहम नहीं है, बल्कि दूसरी दुनिया का अनुभव ज्यादा मायने रखता है.” कारोबारी घरानों के ये बच्चे जब विदेशी विश्वविद्यालयों से पढ़कर लौटे तो देखा कि कारोबार की पूरी जमीन ही बदल गई है. हालांकि कारोबार और प्रबंधन पर कई किताबों के लेखक हेनरी मिंट्जबर्ग का कहना है कि एमबीए से समझ तो बनती है लेकिन नेतृत्व क्षमता नहीं मिलती और कई बार तो ये डिग्रियां बोझ भी साबित हो सकती हैं, क्योंकि इससे आप में भावनात्मक सूझबूझ दब सकती है. लेकिन जहां तक नई पीढ़ी के इन वारिसों का लोगो, ब्रांड, टेक्नोलॉजी और नवाचार में निवेश करने का मामला है, विदेशी अनुभव काम का साबित हो सकता है. सभरवाल कहते हैं, “पिछले दस साल में भारत ने दिखा दिया कि आधुनिक होने केलिए पश्चिम जाने की जरूरत नहीं है.”
लकीर के फकीर नहीं
कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें अवसर तो विरासत में मिला लेकिन उन्होंने अपनी इस ताकत को नए विचारों को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल किया. यस बैंक के राणा कपूर की बेटी 30 वर्षीया राधा कपूर मध्य मुंबई के लोअर परेल को नवाचार और डिजाइन के हब में बदल देना चाहती हैं. इसके लिए उन्होंने अपने पुराने स्कूल न्यूयॉर्क के पार्सन्स द न्यू स्कूल फॉर डिजाइन के साथ मिलकर 2013 में इंडियन स्कूल ऑफ डिजाइन ऐंड इनोवेशन की स्थापना की. राधा कहती हैं, “आज किसी भी संगठन के लिए डिजाइन अहम है और ऐसे संस्थान में निवेश करने से बेहतर उद्यमशीलता क्या हो सकती है.” उन्होंने 2009 में नई रचनात्मक और नवाचार संबंधी अवधारणाओं को आगे बढ़ाने के लिए एक होल्डिंग कंपनी डू इट क्रिएशंस की शुरुआत की. उन्होंने मीडिया कारोबार में भी हाथ आजमाया. उनके डू इट क्रिएशंस ने बिजनेस वल्र्ड पत्रिका में 40 फीसदी शेयर खरीदे. राधा ने प्रो कबड्डी लीग और हॉकी इंडिया लीग में भी शेयर खरीदे हैं. उनकी छोटी बहन राखी कपूर ह्वार्टन बिजनेस स्कूल से एमबीए हैं. उन्होंने कृषि कारोबार में हाथ आजमाने केलिए रूरल एग्री वेंचर्स इंडिया की स्थापना की है.
इसी तरह रजनीकांत की बेटी 30 वर्षीया सौंदर्या आर. अश्विन ने ओकर प्रोडक्शंस की स्थापना की है और तमिल फिल्मों के निर्माण और वितरण के लिए वार्नर ब्रदर्स से समझौता किया है. बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म कोचादैयान भारत की “पहली मोशन कैप्चर फोटो-रियलिस्टिक 3डी एनिमेटेड फिल्म है.”
इसके अलावा कुछ ऐसे भी हैं जो अपने घरेलू कारोबार में हाथ आजमाने के बाद उस “लकीर” से हट गए. बड़ी एफएमसीजी कंपनी मैरिको के चेयरमेन हर्ष मारिवाला की बेटी 35 वर्षीया राजवी मारिवाला अपने पिता की कंपनी में दो साल काम करने के बाद कुत्तों के ट्रेनर का काम शुरू कर दिया. मारिवाला के बेटे 34 वर्षीय ऋषभ ने मैरिको में तीन साल काम करने के बाद 2011 में काया स्कीन क्लिनिक खोल लिया. वे मैरिको को ब्यूटी सैलून के कारोबार में ले आए और हाथ से बने साबुन के उद्यमी बन गए. हर्ष मारिवाला ने एक बातचीत में कहा, “मैं नहीं समझता कि बच्चों पर वही करने का दबाव डाला जाना चाहिए जो उनके मां-बाप करते रहे हैं. वे कोई दूसरा काम करना चाहते हैं तो यह सही ही है.”
बड़े कॉर्पोरेट वकील जिया मोदी की बेटी 28 वर्षीया अंजलि मोदी ने कह दिया कि वकालत उन्हें “बोर्य” करती है. रोड्स आइलैंड स्कूल ऑफ डिजाइन से औद्योगिक डिजाइनिंग में फाइन आर्ट्स में स्नातक करने के बाद उन्होंने मुंबई में फर्नीचर डिजाइन स्टुडियो जोस्मो खोल लिया.
जीवट का इम्तिहान
रामचंद्रन उन दोनों वारिसों में साफ फर्क करते हैं, जो पहले खुद को काम में खटाकर फिर कमान संभालते हैं और जो पैराशूट की तरह सीधे कंपनी के बोर्ड में नमूदार हो जाते हैं. वे कहते हैं, “जो नौजवान सीधे कंपनी के बोर्ड में दाखिल होते हैं, वे परिवार के ही किसी शख्स से या पेशेवर से सीखने का मौका गंवा देते हैं.”
अडाणी समूह के 27 वर्षीय करण अडानी ने कड़ी मेहनत से यह सब सीखा है. छह महीनों तक उन्होंने अडानी पोर्ट्स ऐंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एपीएसईजेड) में काम का व्यावहारिक तजुर्बा हासिल किया और वहां अपने साथियों को अपना उपनाम भी पता नहीं लगने दिया. सीधे काम करते हुए इस तरह प्रशिक्षण लेने से करण को नई प्रक्रियाओं और प्रणालियों के बारे में ज्यादा गहरी समझ हासिल हुई. करण अब एपीएसईजेड के कार्यकारी निदेशक हैं.
लॉजिस्टिक कंपनी एससीए समूह की कार्यकारी निदेशक 35 वर्षीया भैरवी जैन के बारे में भी यही सच है. उनसे कहा गया कि पारिवारिक व्यवसाय में दाखिल होने से पहले वे एक कंपनी खोजें और उसे आगे बढ़ाएं. ओहायो स्थित मियामी यूनिवर्सिटी से बिजनेस साइंस में स्नातक भैरवी ने 17 साल की उम्र में घरेलू कंपनी ब्लू डार्ट के संचालन विभाग में मुंबई में ग्रीष्म प्रशिक्षण लिया और 19 साल की उम्र में उन्होंने वाशिंगटन डी.सी. में केपीएमजी कंसल्टिंग के साथ दो साल काम किया. वे कहती हैं, “वहां मैंने जाना कि लोगों को काम करने को प्रेरित करने के लिए कैसा शख्स होना पड़ता है.”
जब 38 वर्षीय विशाल कंपानी ने 2011 में अपने पिता निमेश कंपानी से जेएम फाइनेंशियल के रोजमर्रा के कामों की कमान अपने हाथ में ली, तब उन्हें इस भूमिका के लिए पहले ही तैयार किया जा चुका था. वह जेएम मॉर्गन स्टेनली के निवेश बैंकिंग विभाग में बतौर सीनियर बैंकर काम कर चुके थे. लेकिन उन्होंने अपने सबसे जानदार सबक एक बच्चे के तौर पर सीखे, जब वे अपने पिता को फोन पर ग्राहकों से अंतहीन बातचीत करते सुना करते थे. विशाल कहते हैं, “मैंने मर्चेंट बैंकिंग के कारोबार में भरोसे और गोपनीयता की अहमियत अपने पिता से सीखी.”
टीवीएस लॉजिस्टिक्स में जन सेवाओं के प्रेसिडेंट ई. बालाजी कहते हैं, “पारिवारिक कारोबारों में खानदानी वारिस दोनों किस्म के फायदे लेकर आते हैं. वे जिम्मेदारी समझते हैं, अपने पुरखों की कड़ी मेहनत को करीब से जानते हैं और परिवार की मशाल को आगे बढ़ाते हैं. वे ज्यादा बड़ी भूमिकाएं अख्तियार करने से पहले बिजनेस के अलग-अलग पहलुओं में अपने हुनर को सान पर चढ़ाते हैं.”
नए कामों की चिनगारी
बिल्कुल अनूठी और लीक से हटकर सोच कुछ वारिसों को दूसरों से अलग करती है. अपने उत्पादों में गोदरेज जैसे ग्राहक केंद्रित व्यावसायिक समूह के लिए सबसे बड़ी चुनौती लगातार नए-नए काम करके अपने प्रतिस्पर्धियों से हमेशा आगे रहना है. मुंबई स्थित गोदरेज ऐंड बॉयस कंपनी के बोर्ड में कार्यकारी निदेशक 33 वर्षीय नवरोज गोदरेज का पूरा ध्यान उथल-पुथल मचा देने वाले बिल्कुल नए-नए, लीक से हटकर कामों पर रहता है, जो नए बाजारों का निर्माण करने के लिए काम के तरीकों को बेहतर बनाने वाली टेक्नोलॉजी है. शिकागो स्थित आइआइटी इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से डिजाइन की मास्टर डिग्री हासिल करने वाले नवरोज ने गोदरेज ऐंड बॉयस में स्ट्रैटजी और इनोवेशन की कमान संभाल रखी है. पारिवारिक व्यवसाय में वे 2005 से ही हैं, जब प्रबंधन प्रशिक्षु के तौर पर कंपनी में दाखिल हुए थे.
भारती एंटरप्राइजेज के सुनील मित्तल के बेटे कविन मित्तल का बीच का नाम इनोवेशन ही होना चाहिए. इंपीरियल कॉलेज लंदन में अपने आखिरी साल की पढ़ाई कर रहे कविन ने कक्षा में अपने सहपाठी नमित चड्ढा के साथ ऐपस्टार्क नाम की कंपनी खड़ी की, जो मोबाइल के लिए ऐप बनाने वाली स्टार्टअप कंपनी है. एक साल बाद ऐपस्टार्क ने मूवीजनाऊ की शुरुआत की, यह ऐसा ऐप है जिससे रास्ते चलते फिल्म के टिकट खरीदे जा सकते हैं. इसे एप्पल ने आइफोन के लिए फिल्म देखने जाने वालों के लिए अनिवार्य 10 ऐप में शुमार करके मान्यता दी थी. लेकिन कविन को बड़ी कामयाबी 2012 में मिली, जब उन्होंने भारत की देश में निर्मित इंस्टेंट मैसेंजर सेवा हाइक शुरू की, जो भारती एंटरप्राइजेज और जापानी टेक्नोलॉजी की दिग्गज कंपनी सॉक्रटबैंक कॉर्प का संयुक्त उद्यम है. जनवरी में कविन ने अमेरिका की जिप फोन को खरीदकर अपना पहला अधिग्रहण किया, जो उन्हें हाइक पर मुफ्त वॉइस कॉलिंग सेवा देने में मदद करेगी.
जब अरविंद मिल्स ने पिछले साल एक कस्टम क्लॉथिंग ब्रांड “किएट” के साथ फैशन ई-टेलिंग के क्षेत्र में कदम रखा, तो यह अरविंद मिल्स के कार्यकारी निदेशक और संजय लालभाई के बेटे 28 वर्षीय कुलिन लालभाई के लिए बड़ी शुरुआत थी. उनके दिमाग में यह तभी से पक रहा था, जब कुछ साल पहले वे हार्वर्ड में बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रहे थे.
नए पंख पखेरू
फिर इससे भी ज्यादा नौजवान वारिस हैं, जो बगैर ज्यादा तजुर्बे के कारोबार में उतर रहे हैं, लेकिन कंपनी बोर्ड के तजुर्बे की संपदा से लाभ उठाने के लिए तैयार हैं. जब मुकेश अंबानी के बच्चों ईशा अंबानी और उनके जुडवां भाई आकाश अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमि. (आरआइएल) की दो समूह कंपनियों के बोर्डों में शामिल किया गया, तब विश्लेषकों ने यह कहने में जरा देर नहीं लगाई कि इस फैसले के बाद पैतृक कंपनी के बोर्ड में शामिल होने से वे महज एक कदम दूर हैं. पिछले साल अक्तूबर में दोनों भाई-बहन को भारत भर में सैकड़ों स्टोर चलाने वाली समूह कंपनी रिलायंस रिटेल और समूह के नए 4जी टेलीकॉम उद्यम रिलायंस जियो इन्फोकॉम के बोर्डों में शामिल किया गया. इससे कुछ महीने पहले जून में मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी को आरआइएल के बोर्ड में निदेशक के तौर पर शामिल किया गया था. ईशा येल यूनिवर्सिटी से अंडरग्रेजुएट हैं और उन्होंने मनोविज्ञान तथा एशियन स्टडीज में दोहरी उपाधियां ली हैं. टेक्नोलॉजी में गहरी दिलचस्पी लेने वाले आकाश रिलायंस जियो में उत्पाद और डिजिटल सेवा ऐप्लिकेशंस विकसित करने के कामों से जुड़े रहे हैं. दूसरी तरफ ईशा कंसल्टिंग फर्म मैककिंजी ऐंड कंपनी में बतौर बिजनेस एनालिस्ट काम कर चुकी हैं. पिछले साल अक्तूबर की मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, रिलांयस रिटेल और रिलांयस जियो इन्फोकॉम, दोनों का मूल्य 75,000 करोड़ रु. आंका जाता है. इन दोनों को आरआइएल के कारोबार को आगे बढ़ाने वाली अग्रणी कंपनियों के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि अपने गैस अन्वेषण कारोबार और पेट्रोकेमिकल व्यवसाय में समूह वैसे भी अनिश्चतताओं का सामना कर चुका है. ईशा अंबानी कहती हैं, “जियो में हम एक खास मुकाम पर हैं जहां एक स्टार्टअप और एक विशाल कॉर्पोरेशन एक जगह मिल रहे हैं. अपने पिता के साथ काम करना और उनसे सीखना मेरे काम का सबसे दिलचस्प हिस्सा है&उनका अनुशासन और सोचने का पैमाने जबरदस्त प्रेरणा जगाने वाला है.”
इस बीच अनिल अंबानी के बड़े बेटे 23 वर्षीय जय अनमोल अंबानी समूह की कंपनी रिलांयस कैपिटल में जुलाई 2014 में शामिल हुए और दो वरिष्ठ अफसर वाइस चेयरमैन और समूह एमडी अमिताभ झुनझुनवाला और सीईओ सैम घोष उन्हें तैयार कर रहे हैं. जय अनमोल ब्रिटेन के वारविक बिजनेस स्कूल की डिग्री से लैस हैं. उनके छोटे भाई 20 वर्षीय जय अंशुल अभी विदेश में पढ़ाई कर रहे हैं.
कोलकाता स्थित आरपी-संजीव गोयनका समूह के चेयरमैन संजीव गोयनका की बेटी 29 वर्षीया अवर्णा जैन हमेशा से जानती थीं कि वे क्या चाहती हैं. वे कहती हैं, “मैं ऐसे काम में जाना चाहती थी जिसका वास्ता ग्राहकों से हो, मैंने पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से कम्युनिकेशन की पढ़ाई का फैसला किया.” पेनसिल्वेनिया में अपनी पढ़ाई के दिनों में ही वे अमेरिका स्थित अऊ बोन पेन का चस्का लग गया. वे कहती हैं, ये “अमेरिका में पढ़ रहे एक स्टुडेंट के लिए यह बहुत ही कम विकल्पों में से था जहां कम कीमतों पर अच्छा खाना मिल जाता था.” अवर्णा को यह इतना पंसद आया कि उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें इस समूह को भारत में लाना ही है. देश भर में अब इसके 27 बिक्री केंद्र हैं. गर्व से भरे उनके पिता कहते हैं, “वह बहुत समझदार है, वक्त की साज-संभाल कर सकती है और अपने विचारों के बलबूते अगुआई करती है.” गोयनका के 25 वर्षीय बेटे शाश्वत ने व्हार्टन बिजनेस स्कूल से ग्रेजुएट किया है और पिछले दो साल से समूह की रिटेल शृंखला स्पेंसर की कमान संभाल रहे हैं.
मुमकिन है दूसरी दुनिया भी
कुछ वारिसों ने उन लोगों के सपनों को साकार करने का बीड़ा उठाया है, जो उनके जैसे खुशकिस्मत नहीं हैं. 40,000 करोड़ रु. के एचसीएल कॉर्पोरेशन की कार्यकारी निदेशक और सीईओ रोशनी नाडर मल्होत्रा ऐसी ही एक वारिस हैं. वे शिव नाडर फाउंडेशन की ट्रस्टी हैं और विद्याज्ञान संस्था चलाती हैं, जो सुविधाहीन बच्चों को मुफ्त शिक्षा देती है.
टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के वाइस चेयरमैन विक्रम किर्लोस्कर की बेटी 25 वर्षीया मानसी किर्लोस्कर बरसों से वंचित तबके के बच्चों के साथ काम कर रही हैं. किर्लोस्कर सिस्टम्स की निदेशक होने के अलावा वे साकरा वर्ल्ड हॉस्पिटल्स के संचालन से भी जुड़ी हैं, जो फिलहाल बेंगलूरू में एक अस्पताल चलाता है और पुणे तथा दिल्ली में एक-एक अस्पताल और खोलने की योजना बना रहा है.
इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज के संस्थापक और एमडी अमित टंडन कहते हैं, “सवाल जो पूछे जाने चाहिए, वे हैः क्या आप कारोबार को चलाने के लिए सही लोगों को ला रहे हैं? परिवार का सदस्य उस पेशेवर शख्स के मुकाबले कहां खड़ा है जिसे आप समान मेहनताने पर रख रहे हैं?”
कुछ कंपनियां अपने परिवार के नौजवान नातजुर्बेकार सदस्यों को बोर्ड में लाने के लिए इसलिए बाध्य हो सकती हैं ताकि यह संकेत दे सकें कि उनके यहां उत्तराधिकार की योजना तैयार है. लेकिन उन्हें ज्यादा बड़ी जिम्मेदारियां सौंपने से पहले काम में खटाने से हमेशा मदद मिलती है. निवेश सलाहकार एस.पी. तुलसियान कहते हैं, “प्रोमोटर-डायरेक्टरों से उम्मीद की जाती है कि उन्हें अपने क्षेत्र, घरेलू और ग्लोबल प्रतिस्पर्धा और सरकार के साथ कैसे मेलजोल करें, इस सबकी पूरी जानकारी हो.” वे कहते हैं कि जरूरत यह भी है कि उन्हें संस्था के भीतर के पेशेवर लोग स्वीकार करें. टीमलीज के सभरवाल कहते हैं कि अभी यह फैसला होना है कि पेशेवर सीईओ पारिवारिक सदस्यों से बेहतर कामकाज का प्रदर्शन करते हैं.
2013 में प्राइसवॉटरहाउसकूपर्स (पीडब्ल्यूसी) ने बिजनेस घरानों का एक सर्वे किया, जिसमें उन कुछ मुद्दों की पड़ताल की जिनके बारे में इंडिया इंक में गहन सोच-विचार चल रहा है. सर्वे ने इनोवेशन को कंपनियों के जिंदा रहने के लिए सबसे अहम माना. कंपनियों को चाहिए कि वे आधुनिक बनने में निवेश करें, ऐसी कार्य संस्कृति को बढ़ावा दें जिसमें गलतियां करने की छूट हो और अपने कामगारों के मन में यह बात गहराई से बिठाएं कि जिंदा रहने के लिए इनोवेशन या नित नए काम करते रहना बेहद जरूरी है. दूसरा, सही प्रतिभाओं को आकर्षित करें और रोककर रखें. तीसरा, अगली पीढ़ी के वारिसों और अगुआओं को गढ़ें और तैयार करें. और चैथा, उन्हें नई टेक्नोलॉजी और तरक्कियों के हिसाब से ढलने की जरूरत है.
इंडिया इंक की अगली पीढ़ी को ये मुद्दे अप्रत्याशित के अलावा चुनौती भरे भी लगेंगे, जो कारोबार को संभालते हुए हमेशा उनके सामने आ सकते हैं. लेकिन लगता है, उनका दिलोदिमाग सही जगह पर हैं, जो शेयरधारकों, कर्मचारियों और इंडस्ट्री के लिए बेशक अच्छी खबर है.
(साथ में उदय माहूरकर, कौशिक डेका, अदिति पै, अरविंद गौड़ा, कविता मुरलीधरन, सुहानी सिंह, जे. बिंदुराज और मालिनी बनर्जी)