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Exclusive: नए टेरर ग्रुप के डिजिटल फुटप्रिंट्स का पाकिस्तान से कनेक्शन

भारतीय खुफिया सूत्रों का भी मानना है कि TRF एक छद्म पहचान है जिसे घाटी में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के पुराने एक्टर्स को कवर करने और आउटसोर्स आतंकवाद को घरेलू पहचान देने के लिए खड़ा किया गया.

इमरान खान, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री (फोटो- पीटीआई) इमरान खान, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री (फोटो- पीटीआई)
अंकित कुमार
  • नई दिल्ली,
  • 09 मई 2020,
  • अपडेटेड 10:11 PM IST

  • घरेलू नहीं है TRF संगठन
  • पाकिस्तान दे रहा है मदद

सात महीने पुराना कश्मीरी आतंकवादी ग्रुप ‘द रेसिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) खुद को घरेलू जमीन पर पनपा बताता है, लेकिन ऐसे कई सबूत हैं जो इस संगठन को पाकिस्तान सरकार से भरपूर खाद-पानी मिलने की निशानदेही करते हैं. इंडिया टुडे ओपन सोर्स इंटेलीजेंस (OSINT) टीम की जांच से ये सच सामने आया है.

OSINT ने विभिन्न संगठनों के आतंकवादी प्रोपेगेंडा, पाकिस्तान पीएम दफ्तर और पाक इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) के पूर्व चीफ मेजर जनरल आसिफ गफूर के बयानों को खंगाला.

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इंटरनेट बैन के दौरान जन्मा TRF

12 अक्टूबर 2019 को TRF ने एन्क्रिप्टेड चैट प्लेटफॉर्म टेलीग्राम के जरिए अपने ऑनलाइन आने का एलान किया. यह वह समय था जब पिछले साल अगस्त में धारा 370 को हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट को प्रतिबंधित कर दिया गया था.

फिर भी, स्पष्ट संकेत थे कि इस ग्रुप के असली कर्ताधर्ता इंटरनेट पर असीमित पहुंच के साथ सीमा पार से सक्रिय थे. इस स्व-घोषित कश्मीरी समूह ने अक्टूबर में बनाए गए कई ट्विटर खातों के जरिए अपने डिजिटल फुटप्रिंट्स को बढ़ाया.

सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आने के बाद TRF के टेलीग्राम और ट्विटर हैंडल बाद में ब्लॉक हो गए.

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ग्रेनेड हमले की जिम्मेदारी लेते हुए 12 अक्टूबर, 2019 को टेलीग्राम पर पोस्ट किए गए TRF के पहले संदेश को देखिए.

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तब ग्रुप ने अपने ऑनलाइन प्रोपेगेंडा के जरिए घाटी में होने वाले आतंकी हमलों की जिम्मेदारी ली. और जब कोई हमला नहीं हो रहे थे तो यह भारत सरकार और कश्मीर में भारत-समर्थक सिविल सोसाइटी के सदस्यों को धमकियां देने में अपना वक्त बिताने लगा.

टीआरएफ ने हिंसक आतंकवादी गतिविधियों को राजनीतिक रंग देने की भी कोशिश की.

अल-हिन्द ब्रिगेड

इंडिया टुडे OSINT टीम ने अल-हिंद ब्रिगेड नाम के एक और ऑनलाइन ग्रुप पर भी फोकस किया. ये भी समान प्रोपेगेंडा के साथ समान ही अवधि में सामने आया.

इस ग्रुप ने भी खुद के भारतीय जमीन पर ही देसी जिहादी संगठन होने का दावा किया. इसने खराब हिंदी में बयान तक जारी किए.

लोगों की नजर में आने के लिए अल-हिंद ब्रिगेड ने उन घटनाओं की भी जिम्मेदारी लेने का दावा किया जिनका उससे दूर तक कोई वास्ता नहीं था.

हिंदू समाज पार्टी के नेता कमलेश तिवारी की हत्या की झूठी जिम्मेदारी लेने के बाद इसने अयोध्या पर कोर्ट फैसले के साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश की. साथ ही निर्लज्ज धमकियां भी दीं.

दोनों ऑनलाइन एक ही वक्त में उगे, दोनों का प्रोपेगेंडा ले-आउट भी एक जैसा था. अक्सर एक ही फोंट का इस्तेमाल किया गया. साथ ही एक-दूसरे के कंटेंट को क्रॉस-पोस्ट किया जाता था. OSINT जांच से पता चलता है कि दोनों आउटफिट समान एक्टर्स की ओर से ही चलाए जाते थे.

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दमदार सबूत

उनके पीछे एक साझा हाथ होने का मजबूत सबूत भी जल्द ही सामने आ गया.

टेलीग्राम पर लगातार ब्लॉकिंग का सामना करने की वजह से TRF और अल-हिंद दोनों ने एक साथ बैकअप बनाने के लिए अन्य प्लेटफार्म्स का रुख किया. इनमें से एक एन्क्रिप्टेड रूसी मैसेजिंग प्लेटफॉर्म टैम टैम भी था.

एक्टर्स और डायरेक्टर्स

इंडिया टुडे की डिजिटल फोरेंसिक टीम ने तब पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान के 3 जनवरी के ट्वीट का विश्लेषण किया. इसमें उन्होंने एक फर्जी वीडियो पोस्ट करने के साथ उसे "यूपी में मुसलमानों के खिलाफ भारतीय पुलिस का अत्याचार" बताया.

प्रधानमंत्री के कार्यालय को ट्वीट हटाना था, लेकिन इससे पहले वो बांग्लादेश के एक पुराने वीडियो को भारत का बताकर आलोचना के घेरे में आ गए.

कई लोगों ने इमरान खान की ओर से फैलाई गई जानकारी के स्रोत पर सवाल उठाया. इससे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को अंतर्राष्ट्रीय शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा.

जब इंडिया टुडे OSINT ने उसी वक्त अल-हिंद की प्रोपेगेंडा सामग्री को स्कैन किया तो पाया कि ग्रुप ने उसी फर्जी कंटेंट को गलत जानकारी के साथ इस्तेमाल किया था. उसके कुछ ही घंटे बाद इमरान खान ने इसे अपने आधिकारिक हैंडल से ट्वीट किया था.

ये सब बताता है कि TRF और अल-हिंद ब्रिगेड को किसी इकलौती यूनिट की ओर से संचालित किया जा रहा था और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने उसके दुष्प्रचार वाले कंटेंट का इस्तेमाल किया.

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अल-हिंद की हिंदी

अल-हिंद ब्रिगेड ने खुद को भारतीय हार्टलैंड से जिहादी संगठन बताया. लेकिन इसकी सामग्री में इस्तेमाल की जाने वाली हिंदी भाषा का स्तर बहुत खराब है जो इसके ग्रुप के विदेशी मूल का होने की ओर संकेत देता है.

बता दें कि TRF उर्दू और अंग्रेजी प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल किया. और अगर इन्हीं लोगों ने सरहद पार से हिन्दी का इस्तेमाल किया तो उसका स्तर बहुत ही दयनीय दिखा.

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कुछ साल पहले पाकिस्तान स्थित एक और आतंकवादी संगठन, जमात-उद-दावा ने भी सोशल मीडिया पर हिंदी प्रोपेगेंडा का इस्तेमाल किया था लेकिन उस भाषा का स्तर त्रुटिरहित था.

अल-हिंद कंटेंट का बारीकी से विश्लेषण और बहुत कुछ साफ करता है. मिसाल के लिए अल-हिंद के एक पोस्टर में बैकग्राउंड में ब्लर तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है. इंडिया टुडे OSINT टीम की जांच से सामने आया कि ये पैमफ्लेट में इस्तेमाल की गई तस्वीर कश्मीर की नहीं थी. इस तस्वीर का असल में ओरिजन तुर्की से जुड़ा पाया गया. जहां साइनबोर्ड पर "ब्रदर्स रियल एस्टेट", "हीटिंग कूलिंग इंडस्ट्रियल" को तुर्की भाषा में पढा जा सकता है.

तुर्की में सरकार समर्थित मजबूत प्रोपेगेंडा मशीनरी है जो नियमित रूप से पाकिस्तान के भारत विरोधी प्रचार की गूंज को बढ़ाती है.

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पिछले साल तुर्की के हैकरों ने भारत की कई जानी-मानी हस्तियों के सोशल-मीडिया अकाउंट्स को टारगेट किया. साथ ही वहां पाकिस्तान समर्थक संदेश पोस्ट किए. तुर्की का एक सरकारी ब्रॉडकास्टर भी काफी समय से भारत विरोधी प्रोपेगेंडा चला रहा है.

अल-हिंद पोस्टर को नवंबर 2019 के दूसरे सप्ताह में जारी किया गया था. इससे कुछ हफ्ते पहले ही पाकिस्तान के आसिफ गफूर ने तुर्की के सरकारी मीडिया आउटलेट्स का दौरा किया था.

तब पाकिस्तानी सेना के प्रोपेगेंडा विभाग के प्रमुख गफूर ने खुद अपने तुर्की में मौजूद होने का ऐलान किया था.

गफूर की यह यात्रा असाधारण थी क्योंकि पीआर विंग के प्रमुख के रूप में वह अपने सेना प्रमुख के साथ आधिकारिक विदेश यात्राओं पर जाते रहे थे. लेकिन उनकी तुर्की की वो यात्रा पाक सेना प्रमुख जनरल बाजवा के साथ आधिकारिक नहीं थी.

आईएसपीआर से जुड़े सोशल-मीडिया प्रोपेगेंडा चैनल्स ने उनकी यात्रा को "स्पेशल टास्क" बताया था.

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पाकिस्तान की आलोचना की थी कि वो दुष्प्रचार कैंपेन के जरिए आतंकवाद के वायरस को फैला रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘’जब दुनिया Covid-19 से लड़ रही है तब कुछ लोग समुदायों और देशों को बांटने के लिए आतंकवाद, फेक न्यूज, फर्जी वीडियोज जैसे अन्य घातक वायरस फैलाने में लगे हैं.”

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भारतीय खुफिया सूत्रों का भी मानना है कि TRF एक छद्म पहचान है जिसे घाटी में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के पुराने एक्टर्स को कवर करने और आउटसोर्स आतंकवाद को घरेलू पहचान देने के लिए खड़ा किया गया.

साक्ष्य बताते हैं कि TRF पाकिस्तानी इस्टेबलिशमेंट के टॉप से जुड़ी री-ब्रैंडिंग की कोशिश है.

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संयुक्त राष्ट्र की ओर से आतंकी संगठन घोषित किए गए लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद को पाकिस्तान की ओर से समर्थन दिए जाने की जांच फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ओर से की जा रही है. ऐसे संगठनों ने TRF के तस्वीर में आने के बाद आतंकी हमलों की जिम्मेदारी लेने से बचना शुरू कर दिया है.

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