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अस्पतालों के निजीकरण के प्रस्ताव पर छ्त्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का इंकार

गैर-भाजपा शासित राज्यों में नीति आयोग के स्वास्थ्य क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने के प्रस्ताव पर उठ रहे सवाल. स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण की आशंका के बीच छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने प्रस्ताव को मानने से किया इनकार. दिल्ली और झारखंड में भी उम्मीदें कम

फोटो सौजन्यः इंडिया टुडे फोटो सौजन्यः इंडिया टुडे
संध्या द्विवेदी
  • नई दिल्ली,
  • 29 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 6:41 PM IST

स्वास्थ्य सेवाओं को घर-घर तक पहुंचाने के लिए दिल्ली सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक का मॉडल स्थापित किया. इस मॉडल से झारखंड की नई सरकार इतना प्रभावित हुई कि उसने चयन के तुरंत बाद राज्य में मोहल्ला क्लीनिक के मॉडल को लागू करने की घोषणा कर दी. लेकिन दूसरी तरफ नीति आयोग ने स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को सौंपा है. इस प्रस्ताव के मुताबिक राज्य सरकारें अगर स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार चाहती हैं तो उन्हें सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल को लागू करना चाहिए. आयोग का मानना है कि 60 साल तक इस मॉडल को राज्य में लागू करने से स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त किया जा सकता है.

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स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए काम करने वाले संगठनों ने इसका जमकर विरोध शुरु कर दिया है. 

संगठनों का कहना है कि केंद्र स्वास्थ्य जैसी सेवाओं को निजी हाथों में नहीं सौंप सकता. ऐसा करने से इलाज आम आदमी से कोसों दूर हो जाएगा. 

दूसरी तरफ गैर भाजपा सरकारों वाले राज्यों की तरफ से इसे हरी झंडी मिलने की संभावना कम ही दिख रही है. छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश सरकार ने तो पत्र लिखकर इस सुझाव को नामंजूर भी कर दिया. उधर दिल्ली और झारखंड सरकार जिस तरह से मोहल्ला क्लीनिक के मॉडल को अपनी सफलता का सीढ़ी बनाने में लगी हैं, उससे इन दोनों राज्यों में भी नीति आयोग के प्रस्ताव को स्वीकारे जाने की कम ही उम्मीद है.

मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने साफ लफ्जों में कहा, ‘‘जिला अस्पतालों को निजी हाथों में सौंपने का सवाल ही नहीं उठता. स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपकर कमाई का जरिया नहीं बनाया जा सकता.’’ दूसरी तरफ छतीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा, ‘‘भाजपा दरअसल अपने कुछ धनी मित्रों को फायदा पहुंचाना चाहती है. लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे. निजी हाथों में स्वास्थ्य सेवाओं को सौंपने का मतलब आम आदमी की जेब में सीधा हमला करना है.’’ 

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झारखंड के स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्रों की माने तो इस प्रस्ताव पर नामंजूरी का पत्र केंद्र को राज्य जल्द ही सौंपने वाला है.

केंद्रीय आयोग के इस प्रस्ताव के बाद यह चर्चा जोरों से हो रही है कि कहीं, स्वास्थ्य व्यवस्था को केंद्र सीधा अपने अधीन करने की कोई योजना तो नहीं बना रहा है? लेकिन इस सवाल के जवाब में जन स्वास्थ्य अभियान के राष्ट्रीय सह संयोजक अमूल्य निधि ने कहा यह संभव नहीं है, क्योंकि आर्टिकल 47 स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी राज्य को सौंपता है. फिर भी केंद्र ऐसा करने की सोचता भी है तो यह सीधे नागरिक अधिकारों का हनन होगा.

हालांकि अभी नीति आयोग के प्रस्ताव का दो राज्यों ने ही जवाब दिया है बाकी राज्यों से जवाब आना बाकी है.

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