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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीयू नेता नीतीश कुमार अब खुलकर आमिर खान की फिल्म 'पीके' के समर्थन में आ गए हैं. बुधवार को फिल्म देखने के बाद उन्होंने फेसबुक पर लिखा कि फिल्म पाखंड पर चोट करती है, आस्था पर नहीं. उन्होंने अपनी ओर से फिल्म को 'दस में से दस' नंबर दिए और बिहार सरकार से इसे टैक्स फ्री करने की अपील भी की.
गौरतलब है कि आरएसएस से जुड़े कुछ संगठन फिल्म को 'हिंदू विरोधी' बताकर लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और फिल्म पर प्रतिबंध की मांग कर रहे हैं. ऐसे में 'पीके' के पक्ष में उतरकर नीतीश ने बीजेपी पर ही हमला किया है. PK के खिलाफ बजरंग दल का प्रदर्शन
उन्होंने फेसबुक पर लिखा, 'आज वर्ष के अन्तिम दिन, आमिर ख़ान अभिनीत फिल्म PK देखने का अवसर प्राप्त हुआ. फिल्म बहुत ही अच्छी है और इसमें बहुत ही सहज ढंग से एक संदेश है. इस फिल्म में कहीं भी आस्था पर चोट नहीं थी, पाखंड पर चोट है. पाखंडी ही इसका विरोध कर सकते हैं, आस्थावान नहीं.'
नीतीश कुमार ने लिखा कि यह फिल्म सबको देखनी चाहिए. उन्होंने लिखा, 'देश में ये पाखंडी लोग जिस ढंग से धर्म के नाम पर लोगों को बांटना चाहते हैं और ठेकेदारी कर रहे हैं वो रॉन्ग नम्बर (wrong number) है और इस फिल्म का ये साफ संदेश है कि रॉन्ग नम्बर मत डायल कीजिए और उससे सावधान रहिए. और ये होते कौन हैं जो विरोध कर रहे हैं इसका?'
उन्होंने फिल्म का विरोध कर रहे लोगों को आड़े हाथों लेते हुए लिखा, 'हम भी हिन्दू हैं! सारे जो फिल्म देखनेवाले जितने लोग हैं उसमें से अधिकांशतः हिन्दू होंगे स्वभाविक है, हिन्दुओं की आबादी सबसे ज़्यादा है. तो क्या इन लोगों ने उन्हें अधिकार दिया है? या पूरे देश में जो हिन्दू समाज के लोग हैं, धर्म में जिनका विश्वास है, क्या उन्होंने उनको कोई अधिकार पत्र सौंपा है? इन पाखंडी लोगों को! किसी ने कोई अधिकार पत्र नहीं सौंपा है. हम भी हिन्दू हैं!'
इसके आगे नीतीश कुमार का पोस्ट, उन्हीं के शब्दों में
एक कलाकार है, उसकी कला को देखना चाहिए कि उसके मजहब को देखना चाहिए? और ये लोग अगर उसपर सवाल उठाना चाहते हैं, तो मैं तो पूछना चाहता हूँ कि बहुत पॉपुलर सीरियल था महाभारत. उस महाभारत सीरियल का स्क्रिप्ट किन्होंने लिखा था, डायलॉग किसने लिखा था? सबको मालूम है कि राही मसूम रज़ा ने लिखा था. और कितनी ख़ूबसूरती से, महाभारत की जो बातें हैं, जो संदेश है, उसका उन्होंने स्क्रिप्ट लिखा था. ये किनका लिखा हुआ था? राही मसूम रज़ा बहुत बड़े साहित्यकार, लेखक; लेकिन उनका धर्म तो इस्लाम था! तो जब राही मसूम रज़ा, महाभारत का स्क्रिप्ट लिखते हैं, डायलॉग लिखते हैं तो कोई ऐतराज़ की बात नहीं है. उस समय किसी को क्यों नहीं लगा कि एक जो हिन्दू नहीं है वो कैसे महाभारत के मर्म को जानेगा? बहुत सराहा गया, ख़ूब प्रशंसा हुई! किसी ने इस सवाल को नहीं उठाया.
और आज आमिर खान अगर कोई अभिनय करते हैं, कलाकार हैं, उनका काम है अभिनय करना. और इतना ख़ूबसूरत... स्वाभाविक है, बहुत अच्छे कलाकार हैं और उनकी जो कला है वो देखने लायक़ है और उनका अभिनय देखने लायक़ है. हर फिल्म ही हमलोग देखते हैं. 3 इडियट्स भी हमने देखा. तो आख़िरकार उसमें तो किसी को ऐतराज़ नहीं था. आज एक कलाकार के मजहब को लेकर... और वो तो पाखंड के जितने भी रूप हैं, चाहे वो किसी मजहब का हो, सब पर चोट है! तो इसलिए इस फिल्म के माध्यम से यह बहुत अच्छे ढंग से कही गई है. ये बात कि भगवान हैं, भगवान पर विश्वास है, लेकिन ये भगवान के बारे में लोगों को डराकर, लोगों के मन में अंधविश्वास भरके, ये अपनी रोटी सेंकते हैं और राजनीति में भी यही करने की कोशिश कर रहे हैं. इसलिए इस फिल्म का संदेश है - मैं तो सब को कहूंगा कि बहुत बड़ी संख्या में लोग देख रहे हैं, लोग देखें, और जब ये उपलब्ध हो जाएगा आमतौर पर लोगों के लिए, तो हमलोग चाहेंगे कि लोग गांव-गांव में लोग देख लें और वो फर्क समझ जाएंगे. फर्क पता चल जाएगा. इसपर तो टैक्स-फ्री करना चाहिए! मैं तो बिहार सरकार को सलाह दूंगा कि बिहार में इसको टैक्स-फ्री कर दीजिए.
इस फिल्म को दस में दस नम्बर!!!