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अमर्त्य सेन के फैसले से झटका लगा: नीतीश कुमार

बिहार के भावी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि उन्हें यह जानकर झटका लगा कि सेन नालंदा के लिए काम नहीं करना चाहते. उधर, केंद्र सरकार ने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार नहीं चाहती कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर बने रहें. सरकार ने कहा कि सेन के कार्यकाल में कटौती करने का कोई प्रयास नहीं है और दावा किया कि उसे नालंदा विश्वविद्यालय के संचालक बोर्ड से मंजूर मिनट्स नहीं प्राप्त हुए हैं.

अमर्त्य सेन (फाइल फोटो) अमर्त्य सेन (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 20 फरवरी 2015,
  • अपडेटेड 9:56 PM IST

बिहार के भावी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि उन्हें यह जानकर झटका लगा कि अमर्त्य सेन नालंदा विश्वविद्यालय के लिए काम नहीं करना चाहते. उधर, केंद्र सरकार ने नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन की उन दलीलों को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार नहीं चाहती कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर बने रहें. सरकार ने कहा कि सेन के कार्यकाल में कटौती करने का कोई प्रयास नहीं है और दावा किया कि उसे नालंदा विश्वविद्यालय के संचालक बोर्ड से मंजूर मिनट्स नहीं प्राप्त हुए हैं.

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विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैय्यद अकबरुद्दीन ने कहा कि मंत्रालय कार्रवाई नहीं कर सकता, क्योंकि उसे नालंदा विश्वविद्यालय के संचालक बोर्ड की बैठक में मंजूर मिनट्स नहीं प्राप्त हुए हैं जो पिछले महीने हुई थी. बहरहाल, सेन ने कहा कि मिनट्स लगभग पंद्रह दिन पहले भेज दिये गए थे और सभी ने मिनट्स को मंत्रालय के लिए मंजूरी प्रदान कर दी थी.

अमर्त्य सेन लम्बे समय से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आलोचक रहे हैं. सेन ने जीबीएनयू को लिखे पत्र में नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर के दूसरे कार्यकाल के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस लेने की बात कही थी और अपने नाम पर विश्वविद्यालय के विजिटर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मुहर के लिए सरकार से मंजूरी मिलने में देरी का आरोप लगाया था, जबकि सिफारिश एक महीने पहले भेजी का चुकी थी.

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नाम लिया वापस
अमर्त्य सेन ने चांसलर के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के लिए यह कहते हुए अपना नाम वापस ले लिया है कि मोदी सरकार नहीं चाहती कि वह पद पर बरकरार रहें. पत्र में उन्होंने लिखा है, ‘सरकार की तरफ से कार्रवाई नहीं करना बोर्ड के फैसले को पलटने के लिए समय बर्बाद करने का एक तरीका है. ऐसे में जब सैद्धांतिक आधार पर सरकार के पास कार्रवाई करने या न करने का अधिकार है, तो मेरे लिए यह निष्कर्ष निकालना मुश्क‍िल नहीं है कि सरकार जुलाई के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के चांसलर के तौर पर मेरे कार्यकाल को खत्म करना चाहती है और तकनीकी तौर पर उसे ऐसा करने का अधिकार है.’

उन्होंने लिखा है, ‘इसलिए मैंने फैसला किया है कि मुझे जुलाई के बाद भी इस पद पर बनाए रखने की सर्वसम्मत सिफारिश और गवर्निंग बोर्ड के अनुरोध के बावजूद नालंदा विश्वविद्यालय की बेहतरी के लिए अपना नाम वापस ले लेना चाहिए.’

-इनपुट भाषा से

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