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4 साल बाद फिर NDA के हुए नीतीश, BJP के मिशन 2019 के लिए क्या है मायने

शरद के समर्थकों ने नीतीश के घर के बाहर प्रदर्शन किया और पटना में ही अलग मीटिंग कर शरद गुट ने खुद को असली पार्टी बताया और कहा कि महागठबंधन अभी भी जारी है

नीतीश में भविष्य देख रही है बीजेपी नीतीश में भविष्य देख रही है बीजेपी
साद बिन उमर
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  • 19 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST

सितंबर 2013 में नरेंद्र मोदी को बीजेपी का पीएम उम्मीदवार बनाए जाने पर एनडीए को सबसे बड़ा सियासी झटका देने वाले नीतीश कुमार आखिरकार शनिवार को फिर एनडीए के हो गए. नीतीश कुमार ने 4 साल बाद एनडीए में दोबारा शामिल होने का ऐलान किया. पटना में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाकर नीतीश ने यह ऐलान किया. हालांकि, शरद यादव नीतीश से अलग राह पर चल पड़े हैं. शरद के समर्थकों ने नीतीश के घर के बाहर प्रदर्शन किया और पटना में ही अलग मीटिंग कर शरद गुट ने खुद को असली पार्टी बताया और कहा कि महागठबंधन अभी भी जारी है.

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नीतीश में भविष्य देख रही है बीजेपी

नीतीश कुमार पिछले 13 साल से एनडीए के साथ हैं. अटल सरकार में वे मंत्री थे, लेकिन सितंबर 2013 में उन्होंने मोदी को बीजेपी की कमान मिलने को सेक्युलर नीतियों के खिलाफ बताते हुए एनडीए छोड़ी थी. फिर बिहार में महागठबंधन बना और अब वे लालू परिवार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उनका साथ छोड़ एनडीए का हिस्सा बन गए. हाल तक जेडीयू नीतीश को मोदी के खिलाफ सबसे विश्वसनीय चेहरा बता रही थी. अटकलें तो 2019 के चुनाव में उन्हें पीएम कैंडिडेट बनाने को लेकर भी थी, लेकिन कांग्रेस से सहमति की कम ही गुंजाइश थी. फिर सोनिया गांधी से मुलाकात में नीतीश ने साफ कर दिया कि वे पीएम पद की रेस में नहीं हैं, लेकिन पिछले महीने तेजी से बदले घटनाक्रम में नीतीश ने विपक्ष का साथ छोड़ दिया और अब एनडीए का हिस्सा भी बन गए. 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए ने 40 में से 33 सीटें जीती थीं. नीतीश की पार्टी को सिर्फ दो सीटें मिली थीं. बीजेपी 2019 में नीतीश के साथ की बदौलत जीत का ये रिकॉर्ड बिहार में बरकरार रखना चाहेगी. इसलिए नीतीश का साथ उसके मिशन 2019 के लिए काफी अहम है.

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BJP के मिशन 2019 पर क्या होगा असर?

मोदी की दूसरी पारी यानी मिशन 2019 को सुनिश्चित करने में लगी शाह-मोदी की जोड़ी के लिए नीतीश का इस खेमे में आना बड़ी राहत है. बीजेपी को ऐसा उम्मीद है कि नीतीश कुमार का उनके साथ आना विपक्ष के राष्ट्रीय महागठबंधन के लिए बड़ा झटका साबित होंगे. यूपी में हाल ही में बीजेपी को बड़ी जीत मिली है, लेकिन 2015 के चुनाव में बिहार में मिली हार बीजेपी के लिए भविष्य के चुनाव के लिए बड़ा खतरा हो सकता था. विपक्षी दल बीजेपी को घेरने के लिए बिहार के महागठबंधन के फॉर्मूले और बिहार की हार का लगातार उदाहरण देकर एकजुटता की कोशिशों में लगे थे. तरीका जो भी हो, लेकिन नीतीश के रूप में बीजेपी को विपक्षी खेमे में सेंध लगाने का बड़ा मौका मिला और ये शाह की रणनीति के लिए बूस्टर का काम कर सकता है.

नए साथियों पर नजर

नीतीश के आने के बाद अब बीजेपी की निगाह गठबंधन के नए साथियों को जोड़कर उन क्षेत्रों में पैठ बनाने की होगी, जहां बीजेपी अभी कम असरदार रही है. तमिलनाडु में एआईएडीएमके के दोनों धड़ों को साथ लाकर दक्षिण के इस सबसे बड़े राज्य की सियासत में एंट्री के लिए बीजेपी बातचीत कर ही रही है. वहीं पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और अन्य स्थानीय निकाय चुनावों में टीएमसी के बाद सबसे प्रभावी प्रदर्शन कर बंगाल में बीजेपी ने अपनी उम्मीदें जिंदा की है. राष्ट्रपति चुनाव के दौरान त्रिपुरा में टीएमसी के सभी 6 विधायक बीजेपी के खेमे में आ गए. यहां भी अब पार्टी की उम्मीदें बढ़ी हैं. पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय दक्षिण में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु में नए सहयोगियों को जोड़ने की दिशा में अब बीजेपी काम करेगी.

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महागठबंधन का भविष्य

नीतीश के जाने से भले ही विपक्षी दल कह रहे हों कि कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन विपक्ष की ओर से राष्ट्रीय महागठबंधन बनाने का सपना जरूर टूटेगा. नीतीश से बगावत पर उतरे शरद यादव ने गुरुवार को दिल्ली में 17 दलों की बैठक बुलाई थी, जिसमें राहुल गांधी, सीताराम येचुरी समेत तमाम दलों के नेता भी शामिल हुए. राहुल ने सभी दलों ने साथ आने की अपील की. विपक्षी दल पिछले कई महीनों से राष्ट्रीय महागठबंधन की संभावनाओं पर बात कर रहे हैं, लेकिन कोई ठोस पहल अभी तक सामने नहीं आ पाई है.

 

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