
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लंबे समय बाद ‘मन की बात’ कही है. उन्होंने पटना के एक कार्यक्रम में कहा कि उनकी सरकार 'थ्री सी’ के फॉर्मूले पर चल रही है. उन्होंने कहा, 'काम करते जाइए, काम की प्रतिबद्धता है और हम काम करते रहेंगे. हम कभी भी क्राइम (अपराध), करप्शन (भ्रष्टाचार) और कम्युनलिज्म (सांप्रदायिकता) से समझौता नहीं करेंगे.'
गौरतलब है कि नीतीश कुमार राज्य में बीजेपी के सहयोग से सरकार चला रहे हैं और मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी के युवा नेता और राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव उन्हें हर मौके पर घेर रहे हैं. तेजस्वी जब भी बोलते हैं. जब भी ट्वीट करते हैं तो उनके निशाने पर राज्य के मुखिया होते हैं. तेजस्वी, नीतीश सरकार को उन्हीं मोर्चों पर घेरते हैं जिन पर किसी तरह का समझौता न करने वाला बयान नीतीश कुमार ने दिया है.
नीतीश कुमार, सही मौके पर सही बात कहने के लिए जाने जाते हैं. वो कम बोलते हैं लेकिन जब बोलते हैं तो उनके एक बयान के कई शिकार होते हैं. इसी वजह से लालू यादव कहते थे कि नीतीश कुमार के मुंह में नहीं, पेट में दांत हैं. पेट में दांत होने का मतलब है, बहुत ही शातिर होना.
नीतीश के इस बयान के भी कई मतलब देखे जा रहे हैं. सीधे तौर पर तो यह कहा जा रहा है कि नीतीश ने अपने बयान में विपक्षी पार्टी की तरफ से लग रहे आरोपों का जवाब दिया है लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि इस एक बयान से नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ-साथ अपनी सहयोगी बीजेपी को भी साफ संदेश दिया है जिसके कुछ नेता बिहार में अक्सर सांप्रदायिक बयान देते रहते हैं.
खैर, अगर हम नीतीश कुमार के बयान को सच्चाई के तराजू पर तर्कों के वजन से तौलें तो स्थिति उल्ट दिखती है. नीतीश कुमार के इस बयान के अगले दिन ही खबर आई कि गोपालगंज से मैट्रिक की परीक्षा की लगभग 40 हजार कॉपियां गायब हो गई हैं. पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और जांच चल रही है.
इसी महीने एक बड़ा मामला मुज्जफरपुर से भी सामने आया. यहां सरकार द्वारा संचालित बालिका गृह में शरण लेने वाली लड़कियों के यौन शोषण का खुलासा हुआ. पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया कि इस बालिका सुधार गृह से नेताओं और अधिकारियों के यहां लड़कियों की सप्लाई की जाती थी.
इसके अलावा बिहार से ऐसे छह वीडियो वायरल हो चुके हैं जिनमें लड़कियों के साथ कुछ लड़के जबदस्ती करते हुए, मार-पीट करते हुए और गाली-गलौज करते हुए दिखे.
अगर बात दूसरे 'सी’ करप्शन की करें तो भी ऐसा नहीं लगता कि बिहार की मौजूदा सरकार बेदाग है. अधिकारियों के द्वारा किए जा रहे करप्शन में सबसे ताजा मामला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) विवेक कुमार का है. विवेक कुमार के सरकारी आवास पर दो दिनों तक छापेमारी में भारी मात्रा में कैश बरामद किया गया.
इसके अलावा मई में तेजस्वी यादव ने राज्य के उप मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए थे. जिसका न तो सरकार की तरफ से और ना ही सुशील मोदी की तरफ से कोई जवाब दिया गया.
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में आए ही इस नारे के साथ थे कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाएगी और ऐसा कहा जाता है कि अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने बिहार में बहुत हद तक सुशासन स्थापित भी कर दिया था. लेकिन धीरे-धीरे स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली हो गई.
पिछले डेढ़ दशक से भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान में अबतक 1700 से अधिक लोकसेवकों को न केवल घूसखोरी करते रंगे हाथों पकड़ा गया, बल्कि उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी. करीब डेढ़ दर्जन बड़े नौकरशाहों की 20 करोड़ से भी अधिक की काली कमाई को सरकार ने जब्त कर लिया है.
अब बात तीसरे 'सी’ यानी कि कम्युनलिज्म की. बिहार में नीतीश कुमार की असल लड़ाई आरजेडी से थी. आरजेडी से लड़ने के लिए नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. चुनाव जीते और पांच सालों तक सरकार चली. लेकिन 2016 में नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गए और आरजेडी-जदयू में महागठबंधन हुआ. चुनाव जीत गए लेकिन गठबंधन टूट गया और एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश कुमार ने राज्य में सरकार बनाई.
साल 1989 में हुए भागलपुर दंगों के बाद छिटपुट घटनाओं को छोड़ कमोबेश बिहार ने सांप्रदायिक हिंसा का दौर नहीं देखा. चाहे नीतीश कुमार की सरकार रही हो या लालू प्रसाद यादव की. दोनों के शासनकाल में सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल बना रहा. यह पहली बार है जब क़ानून-व्यवस्था पर समझौता नहीं करने का दावा करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बेबस दिख रहे हैं. हमेशा शांति से मनाए जाने वाले रामनवमी जैसे त्योहार के मौके पर राज्य के कई जिलों में सांप्रदायिक तनाव देखने को मिला. इस दौरान कई जगहों पर आगजनी, दो संप्रदायों के बीच झड़प और कई दिनों तक लगने वाले कर्फ्यू को राज्य और देश ने देखा है.
अब सवाल उठता है कि ये सब अचानक क्यों हुआ और क्या नीतीश कुमार की सरकार ने माहौल को सही तरीके से हैंडल किया. इस बारे में राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी ने कुछ समय पहले बीबीसी से बात करते हुए कहा था, 'नीतीश कुमार ने साल 2005 से 2013 तक भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार चलाई. लेकिन उन्होंने कभी भी कानून व्यवस्था से समझौता नहीं किया. भाजपा से अलग होने के बाद भी कांवड़ यात्रा के दौरान दंगे भड़काने की कोशिशें हुईं, पर प्रशासन कड़ाई से उससे निपटता रहा. लेकिन पहली बार ऐसा हो रहा है कि वही भाजपा है, वही नीतीश कुमार हैं पर कार्रवाई नहीं की जा रही.'