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नोटबंदी के बाद भी कैशलेस नहीं देश, बचत योजनाओं में पहले से ज्यादा नकदी जमा

नोटबंदी के पक्ष में सरकार का एक तर्क यह भी था कि इससे अर्थव्यवस्था कैशलेस होगी, लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़ों से ऐसा होता नहीं दिखता. आंकड़ों से पता चलता है कि नोटबदी के बाद बचत योजनाओं में नकदी जमा में बढ़त हुई है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो-PTI) प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो-PTI)
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 30 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 11:26 AM IST

नोटबंदी के पक्ष में सरकार द्वारा सबसे बड़ा तर्क यही दिया गया था कि इससे भारत एक कैशलेस अर्थव्यवस्था बन जाएगा. लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़े कुछ और ही कहानी कहते हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि नोटबंदी के बाद बचत योजनाओं में नकद जमा का अनुपात रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा है.

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, नोटबंदी के बाद साल 2017-18 में नकद में बचत बढ़कर ग्रॉस नेशनल डिस्पोजबल इनकम (GNDI) का 2.8 फीसदी तक पहुंच गया, जो कि पिछले सात साल में सबसे ज्यादा है.

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आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2014-15 में नकद बचत जीएनडीआई का एक फीसदी और 2015-16 में इसमें 1.4 फीसदी की बढ़त हुई है. साल 2016-17 में इसमें 2 फीसदी की गिरावट आई थी.

बचत भी ज्यादा और करेंसी भी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक करेंसी में सकल बचत बढ़ने के बावजूद जनता के पास मौजूद करेंसी भी नोटबंदी के पहले के स्तर से ज्यादा देखी गई. 28 अक्टूबर, 2016 (नोटबंदी से पहले) को जनता के पास कुल नकदी 17.01 लाख करोड़ रुपये थी, जबकि 3 अगस्त, 2018 को यह 18.46 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई.

पिछले सात साल के आंकड़ों को देखें तो इस दौरान बैंकों में जमा नकदी में गिरावट आई है, जबकि शेयरों और डिबेंचर में निवेश बढ़ा है. जानकारों का कहना है कि ब्याज दरों में गिरावट की वजह से बैंक जमा में कमी आई है. पिछले वर्षों में शेयर बाजारों में आई मजबूती की वजह से लोग शेयरों में ज्यादा निवेश करने लगे हैं.

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नोटबंदी के पहले और बाद छह मद में फीसदी बढ़त या कमी 

 मद    साल 2016-17 साल 2017-18
करेंसी     -2     2.8
जमा योजना   6.3 2.9
शेयर एवं डिबेंचर    0.2      0.9
बीमा फंड       2.3      1.9
प्रोविडेंट एवं पेशन फंड         2     2.1 

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