
कॉलेज और यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर को आरक्षण मामले पर आरजेडी प्रमुख लालू यादव अपनी जीत बता रहे हैं. लालू यादव ने दो दिन पहले ही ये दावा किया था कि यूजीसी की तरफ से विश्वविद्यालयों को स्पीड पोस्ट से आदेश भेजा गया है कि प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर के पदों पर ओबीसी का आरक्षण खत्म कर दिया जाए. उससे बाद लालू यादव ने इसको लेकर आसमान सिर पर उठा लिया.
यूजीसी ने लालू के दावों को नकारा
लालू यादव ने आरोप लगाया कि सरकार ये सब संघ के इशारे पर कर रही है और मोहन भागवत ने पहले ही आरक्षण खत्म करने की बात कही थी. लालू यादव ने कहा कि वो आरक्षण खत्म करना कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे और इसके लिए आंदोलन करेंगे. जब मामले ने तूल पकड़ा तो यूजीसी ने इस बारे में स्पष्टीकरण जारी किया और कहा कि आरक्षण के बारे में नीतियों में कोई बदवाल नहीं हुआ है. बस फिर क्या था यूजीसी के इसी स्पष्टीकरण को आधार बनाकर लालू ने जीत का दावा कर दिया और ट्वीट करके कहा, 'ये लालू की नहीं देश के 85 फीसदी बहुसंख्यकों की दमदार आवाज का असर है. केन्द्र को कल ही चेताया था और कल ही रोल बैक कर लिया'.
यूजीसी का तर्क- नियम में कोई बदलाव नहीं
लेकिन सच्चाई कुछ और है. यूजीसी के वाइस चेयरमैन एच देवराज ने 'आज तक' से खास बातचीत में साफ कहा कि कोई रोलबैक नहीं हुआ है. पहले की तरह ही असिस्टेंट प्रोफेसर को छोड़कर किसी भी स्तर पर आरक्षण लागू नहीं है. एच देवराज ने साफ किया कि 2007 से लेकर अबतक यूजीसी में आरक्षण को लेकर कोई बदलाब हुआ ही नहीं है इसलिए रोलबैक का कोई सवाल ही नहीं पैदा होता.
2006 बने कानून अब भी जारी
गौरतलब है कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के तीन पद होते हैं. सबसे शुरुआती असिस्टेंट प्रोफेसर जिसे पहले लेक्चरार कहा जाता है. उसके बाद एसोसिएट प्रोफेसर और फिर प्रोफेसर होते हैं. अनुसूचित जाति के लोगों को इन तीनों पदों पर आरक्षण का लाभ मिलता है और वो अभी भी जारी है. 2006 में यूपीए ने सबसे शुरुआती पद, यानी असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था जिसे 2007 से लागू कर दिया गया, तभी से यही व्यवस्था वैसे ही चली आ रही है. इसलिए लालू यादव यूजीसी के जिस फैसले को रोलबैक कराने की बात कर रहे हैं वो फैसला दरअसल हुआ ही नहीं है.