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वही सत्र, वही सदन, वही NDA सरकार, वही अविश्वास, क्या दोहराया जाएगा इतिहास?

वाजपेयी संसद के सदन में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ हुई वोटिंग में जीत गए थे, लेकिन कुछ महीने के बाद हुए चुनाव में उन्हें सत्ता से विदा होना पड़ गया था. अब बारी पीएम मोदी की है, जिनके सामने सदन की अग्निपरीक्षा पास करने के साथ-साथ कुछ महीने में होने वाले विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद को साबित करने की चुनौती होगी.

अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, नरेंद्र मोदी अटल बिहारी वाजपेयी, एलके आडवाणी, नरेंद्र मोदी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 5:10 PM IST

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की तर्ज पर ही विपक्ष मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है. लोकसभा अध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर करते हुए शुक्रवार का दिन चर्चा और वोटिंग के लिए मुकर्रर किया है. वाजपेयी संसद के सदन में अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ हुई वोटिंग में जीत गए थे, लेकिन कुछ महीने के बाद हुए चुनाव में उन्हें सत्ता से विदा होना पड़ गया था. अब बारी पीएम मोदी की हैं, जिनके सामने सदन की अग्निपरीक्षा पास करने के साथ-साथ कुछ महीने में होने वाले विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में खुद को साबित करने की चुनौती होगी.

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मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ऐसे समय आया है, जब चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा हुआ है. एनडीए के पास पर्याप्त नंबर है, ऐसे में सरकार के सामने किसी तरह का संकट फिलहाल नहीं दिखा रहा है. ऐसे ही वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के पास भी 2003 में बहुमत के आकड़े थे. बावजूद इसके कांग्रेस विपक्ष के साथ मिलकर 2003 में अटल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाई थी, क्योंकि उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस को रक्षा मंत्रालय का जिम्मा सौंपा था.

वाजपेयी के नेतृत्व में पहली ऐसी गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी जिसने अपने कार्यकाल को पूरा किया था. इसके बाद अब दूसरी सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में है, जो अपने पांच साल के कार्यकाल को पूरा करती दिख रही है. वाजपेयी सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव को एनडीए ने आसानी से पार कर लिया था. जबकि उस समय बीजेपी के पास बहुमत से कम सीटें थी, लेकिन मौजूदा समय में बीजेपी के खुद के 273 सांसद हैं.

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2003 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को एनडीए ने बहुत ही आराम से विपक्ष को वोटों की गिनती में हरा दिया था. एनडीए को 312 वोट मिले थे जबकि विपक्ष 186 वोटों पर सिमट गया था.

अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से तमिलनाडु की एआईडीएमके और फारुक अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने खुद को अलग रखा था. जबकि बसपा ने वाजपेयी सरकार के पक्ष में वोट किया था.

वाजपेयी के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान तत्कालीन विपक्ष की नेता और कांग्रेस की उस समय अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी ने सदन में हिंदी में भाषण दिया था और उन्होंने वाजपेयी सरकार को कई मोर्चों पर अस्थिर बताया था.

इसी तरह से मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर होने के बाद सोनिया गांधी से जब पूछा गया कि क्या आपके पास पर्याप्त नंबर हैं तो उनका जवाब था कि कौन कहता है कि हमारे पास नंबर नहीं हैं?

वाजपेयी सरकार के खिलाफ संसद में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव में कांग्रेस को सदन में हार गई. इस जीत से उत्साहित होकर वाजपेयी ने लोकसभा चुनाव को समय से पहले कराया था. लेकिन चुनावी मैदान में वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए को वो नहीं जिता सके और उन्हें सत्ता से विदा होना पड़ा.

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2003 में वाजपेयी सरकार के खिलाफ आए अविश्वास प्रस्ताव के कुछ दिनों के बाद ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे. इसके बाद अगले साल 2004 में लोकसभा चुनाव हुए. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों पर इसका प्रभाव पड़ा. बीजेपी यहां बेशक जीत गई लेकिन उसकी सीटें पहले से कम हो गईं. इसके बाद साल 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए को जीत मिली.

मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का समय भी वैसा ही है. हालांकि इस बार कांग्रेस के द्वारा लाए अविश्वास प्रस्ताव को मंजूर नहीं किया गया है, बल्कि टीडीपी द्वारा आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेट्स के लिए लाया गया है. बावजूद इसके अविश्वास प्रस्ताव लाने की टाइमिंग वही है. कुछ महीनों के बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने हैं. तीनों राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. कांग्रेस इन राज्यों में सत्ता की वापसी की उम्मीद लगाए हुए है.

एक साल के बाद 2019 का लोकसभा चुनाव होने हैं. लेकिन माना जा रहा है कि पीएम मोदी भी अटल की तरह लोकसभा चुनाव को समय से पहले करा सकते हैं, जबकि कांग्रेस उन्हें मात देने के लिए विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करके चुनावी मैदान में उतरना चाहती है. कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जिस तरह से 2004 में अटल को मात देने के लिए कई दलों को मिलाया था. अब राहुल भी उसी फार्मूले पर आगे बढ़ रहे हैं. देखना होगा कि 2003 का इतिहास फिर से दोहराया जाता है या फिर मोदी 2019 में लिखेंगे नई इबारत.

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